जब सुप्रीम कोर्ट में येदुरप्पा और डीके शिवकुमार के बीच दिखी एकता, दोनों ने किया विरोध
नई दिल्ली: कर्नाटक के सियासी रण में एक दूसरे के खिलाफ खड़े होने वाले कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा और कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री डीके शिवकुमार सुप्रीम कोर्ट में एक साथ खड़े दिखाई दिए। जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की बेंच के सामने इन दोनों ने वापस ली गई याचिका पर दोबारा हस्तक्षेप को लेकर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट में येदुरप्पा की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी और कांग्रेस के शिवकुमार की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी थे। रोहतगी ने कहा कि जब याचिका एक साल पहले वापस ले ली गई है, तो ऐसे में हस्तक्षेपकर्ता द्वारा याचिका दायर की गई है। उसकी चिंता क्या है? सिंघवी ने भी यही चिंता दोहराई। ये दोनों साल 2010 के एक भूमि अधिग्रहण मामले को फिर से खोलने की याचिका का विरोध कर रहे थे।
येदुरप्पा और शिवकुमार के बीच दिखी एकता
इस मामले में हस्तक्षेपकर्ता के तौर पर मौजूद सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दोबारा खोलने की मांग की। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने बिना किसी सूचना के याचिका वापस ले ली। शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि वो ये तय करेगा कि तीसरा पक्ष मामले में दखल दे सकता है कि नहीं। उन्होंने कहा कि हम किसी के भी नाम या किसी भी तरह से प्रभावित नहीं है। जस्टिस की टिप्पणी के बाद प्रशांत भूषण जो कि एनजीओ समाद परिवर्तन समुदाय का कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उन्होंने येदुरप्पा को राज्य के अगले संभावित सीएम के रूप में पेश किया वहीं कुछ मिनट बाद येदुरप्पा के लिए सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने नए सीएम के तौर पर पेश किया। डीके शिवकुमार इस दौरान कोर्ट में मौजूद थे।
'एनजीओ बेवजह उठा रहा है मामला'
येदुरप्पा के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि एनजीए बेवजह भ्रष्टाचार के मामले को खुलवाने की कोशिश कर रहा है, जिसे कर्नाटक हाईकोर्ट ने साल 2015 में खारिज कर दिया था। शिवकुमार के वकील सिंघवी ने कहा कि कबलेगौड़ा ने 21 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका वापस ले ली थी। उस समय प्रशांत भूषण उनके वकील थे और वो अब याचिका वापस लेने के बाद एनजीओ के पक्ष में स्थानांतरित हो गए हैं। भूषण ने कहा कि कबलेगौड़ा के साथ समझौता किया गया। इसके बाद उनका केस सुप्रीम कोर्ट से अचानक वापस ले लिया गया।
क्या है पूरा मामला?
ये मामला पांच एकड़ से अधिक की जमीन का है। तत्कालीन क्रेता ने चार एकड़ से अधिक की भूमि को कृषि उपयोग से औद्योगिक उपयोग में बदलने का फैसला किया। बैंगलोर विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने 1986 में भूमि का अधिग्रहण किया। अधिग्रहण के बावजूद डीके शिवकुमार ने 2003 में मूल मालिक से ये जमीन 1.62 करोड़ रुपये में जमीन खरीदी। शिव कुमार उस समय शहरी विकास मंत्री थे। शिकायत ये है राजस्व दस्तावेजों के होने के बावजूद जमीन का रजिस्ट्रेशन किया गया। साल 2010 में सीएम रहते हुए येदुरप्पा ने सराकरी जमीन को डीनोटिफाई कर दिया। आरोप है कि उन्होंने डीके शिवकुमार की अवैध रूप से जमीन कब्जाने में मदद की। सामाजिक कार्यकर्ताओं टीजे अब्राहम और कबलेगौड़ा ने विशेष लोकायुक्तकोर्ट के समक्ष अलग-अलग शिकायतें दर्ज कीं और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। साल 2017 में टीजे अब्राहम और साल 2018 में बलेगौडा ने केस को वापस ले लिया था।
येदियुरप्पा ने चौथी बार ली सीएम की शपथ
गौरतलब है कि बीएस येदियुरप्पा शनिवार को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वो 76 साल के हैं और बीजेपी में 75 साल के ऊपर होने के बावजूद शासन करने के तौर पर अपवाद हैं। इस पर नड्डा ने कहा कि वह राज्य में बीजेपी विधायक दल के नेता थे और वो मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी की पसंद होना स्वाभाविक था। पिछले साल मई में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 224 विधानसभा वाली कर्नाटक में बीजेपी 8 सीट से बहुमत हासिल करने से चुक कई थी। 17 मई 2018 को बीएस येदियुरप्पा ने तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली थी। लेकिन वे बहुमत साबित करने का जादुई आंकड़ा नहीं जुटा सके। 23 मई को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद कांग्रेस के सहयोग से जेडीएस के कुमारस्वामी सीएम बने।
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