सम्राट अशोक को लेकर बिहार में सक्रिय बीजेपी, नज़र कुर्मी-कोइरी वोट पर तो नहीं?
बीजेपी ने हाल ही में पटना में सम्राट अशोक की जयंती मनाई. जानकार कहते हैं, एक राजनीतिक रणनीति के तहत अशोक को याद किया जा रहा है.
राजनीति में ऐतिहासिक शख़्सियतों के नाम को भुनाना कोई नई बात नहीं है, आम तौर पर ऐसी कोशिशों के मूल में किसी जाति विशेष को ख़ुश करके उसके वोट हासिल करने का इरादा होता है. बिहार में इन दिनों सम्राट अशोक को याद किया जा रहा है.
सम्राट अशोक के बाद स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुँवर सिंह की बारी है. 23 अप्रैल को बीजेपी भोजपुर के जगदीशपुर में वीर कुंवर सिंह जयंती मनाएगी जिसमें शामिल होने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आएँगे, इससे पहले जाने-माने कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती ऐसे ही मनाई गई थी जिसका मक़सद भूमिहार जाति के वोटरों को रिझाना माना गया था.
भारतीय जनता पार्टी ने सम्राट अशोक की जयंती पटना के बापू सभागार में आठ अप्रैल यानी शुक्रवार को मनाई. इस आयोजन में केंद्रीय श्रम मंत्री और बिहार प्रदेश के प्रभारी भूपेंद्र यादव और उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य शामिल हुए.
उसके अगले दिन बिहार सरकार में गठबंधन की साथी जेडीयू ने पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया.
बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा, "अगले साल ये कार्यक्रम गांधी मैदान में होना चाहिए जिसमें कुशवाहा समाज के एक लाख से ज़्यादा लोगों को इकठ्ठा कीजिए. लव-कुश भगवान राम से अलग नहीं जा सकते. जहां राम होंगे वहीं लव-कुश रहेंगे."
बिहार में कृषि से जुड़ी जातियों कुर्मी-कोइरी के लिए बोलचाल में 'लव-कुश' शब्द का इस्तेमाल होता है.
1994 में नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में लव-कुश सम्मेलन किया था जो ख़ुद कुर्मी जाति से आते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन कहते हैं, "बीजेपी को उम्मीद है कि आज नहीं तो कल, जेडीयू बिखरेगा. जब वो बिखरेगा तो उसका वोट बैंक फिसलेगा. इस फिसले हुए वोट बैंक को अपने पाले में लाने की तैयारी बीजेपी की है."
हालाँकि अब तक वीर कुंवर सिंह जयंती को अपने स्तर से मनाने वाले बीजेपी नेता अरविंद सिंह बीजेपी की वोट बैंक 'आकांक्षा' से इनकार करते हैं.
बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, " हमलोग किसी महापुरुष की जयंती को जाति के चश्मे से नहीं देखते हैं. वीर कुंवर सिंह की जयंती को पार्टी आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत में मना रही है."
सम्राट अशोक : ग्रेटेस्ट ऑफ़ किंग्स
ऐसे में ये सवाल अहम है कि सम्राट अशोक को लेकर राजनीतिक दलों में बेचैनी क्यों है?
इसकी दो वजहें बताई जाती हैं. पहली बात तो ये कि सम्राट अशोक को कुर्मी-कोइरी जातियों के लोग अपनी जाति का मानते हैं. यह कहा जाता है कि सम्राट अशोक का संबंध कुशवाहा जाति से था हालाँकि यह कहना मुश्किल है कि इसके ऐतिहासिक प्रमाण क्या हैं?
सम्राट अशोक को मौर्य वंश का महानतम शासक कहा जाता है. अपने शासनकाल ( 298-272 ईसा पूर्व) के आरंभ में उन्होंने पहले विस्तारवादी नीति को अपनाया. 261 ईसा पूर्व के कलिंग युद्ध का भीषण नरसंहार देखकर उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया.
अपनी किताब 'ए शार्ट हिस्ट्री ऑफ़ द वर्ल्ड' में लेखक एचजी वेल्स सम्राट अशोक को 'ग्रेटेस्ट ऑफ़ किंग्स' यानी राजाओं में सबसे महान बताते हैं.
जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा कहते हैं, "हमारे नेता नीतीश कुमार सम्राट अशोक के आदर्शों को लेकर बिहार को कुशल नेतृत्व दे रहे हैं."
दरअसल, सम्राट अशोक की विरासत पर दावा जताने की होड़ लगी है और इसी बहाने संभवत: कुर्मी-कोइरी वोट को अपने पाले में करने का जतन हो रहा है.
बिहार बीजेपी के नेता साल 2018 में ही सम्राट अशोक की तुलना नरेन्द्र मोदी से कर चुके हैं. उस वक्त बीजेपी नेता मंगल पांडे ने कहा था, "शौर्य, करुणा, विकास के जो गुण सम्राट अशोक में थे, वही नरेंद्र मोदी में भी हैं."
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'जाति ही पूछो अशोक की'
दोनों पार्टियां इस बात का दावा कर रही हैं कि उन्होंने सबसे पहले सम्राट अशोक की जयंती मनानी शुरू की.
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के उमेश सिंह कुशवाहा कहते हैं, "सबसे पहले सम्राट अशोक क्लब ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को साल 2014 में उत्तर प्रदेश में हुए एक कार्यक्रम में न्योता दिया था. वहां से लौटकर उन्होंने साल 2015 में अशोक जयंती को राजकीय अवकाश घोषित किया जिसके बाद से अलग-अलग संगठनों के सहयोग से पार्टी ने सम्राट अशोक की जयंती मनाती थी. इस बार पार्टी ने फ़ैसला लिया कि पार्टी ख़ुद सम्राट अशोक की जयंती मनाएगी."
तथ्यों पर नज़र डालें तो राज्य में सम्राट अशोक की जयंती जातीय संगठन मनाते रहे हैं. बीजेपी नेता सूरज नंदन कुशवाहा ने साल 2014 में 'मौर्य अशोक यात्रा' का आयोजन किया था.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा कहते हैं, "सूरज नंदन जी ने अपने स्तर पर ये यात्रा निकाली, इसका प्रचार-प्रसार किया. लेकिन बाद में ये आइडिया जेडीयू-बीजेपी दोनों को रास आया. इसके बाद हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को राजकीय अवकाश घोषित किया गया."
बाद में सम्राट अशोक पर डाक टिकट भी जारी हुआ और पटना के गांधी मैदान में सम्राट अशोक कन्वेंशन सेंटर भी बनाया गया. केन्द्रीय स्तर पर बात करें तो बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य अशोक जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश की मांग करती रही हैं.
बीजेपी नेता सूरज नंदन कुशवाहा जिनकी तीन साल पहले मृत्यु हो गई, उन्होंने सम्राट अशोक की जाति को कुशवाहा बताया था, हालांकि 1960 में स्थापित कुशवाहा विकास मंच, सम्राट अशोक की जयंती पूरे राज्य में मनाता रहा है.
कुशवाहा विकास मंच के प्रभाव को इसी बात से समझा जा सकता है कि जेडीयू के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष इस मंच के भी प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं.
संगठन के महासचिव देवेन्द्र प्रसाद सिंह बताते हैं, "हमलोगों का स्पष्ट मानना है कि सम्राट अशोक कुशवाहा थे इसलिए राज्य भर के कुशवाहा आश्रम ये जयंती बहुत पहले से मनाते आए हैं. बाकी जब राजनीतिक दल इस तरह से जाति बताने लगते हैं तो एक महान सम्राट जातीय नेता बनकर रह जाता है."
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यादवों की ताक़त के बरक्स कुशवाहा
बिहार की जातिगत बुनावट में देखें तो कुर्मी-कोइरी या कुशवाहा को राजनीतिक शब्दावली में लव-कुश कहा जाता है. उन्हें लेकर राजनीतिक दल लगातार गोलबंदी करते रहे हैं.
जानकारों के मुताबिक़ इस गोलबंदी का मक़सद आरजेडी के यादव वोट बैंक के मुकाबले अन्य पिछड़ा वर्ग में लव-कुश को अपने पक्ष में एकजुट रखना है, राज्य में यादव आबादी तक़रीबन 15 प्रतिशत है जो ओबीसी वोट बैंक में कुशवाहा संख्या-बल से बड़ी है.
पत्रकार रमाकांत कहते है, "एनडीए के दल बीजेपी-जेडीयू जब गठबंधन देखते हैं तो कोशिश रहती है कि लव-कुश का वोट गठबंधन को ही मिले ताकि आरजेडी के यादव वोट बैंक का मुकाबला किया जा सके. लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ दोनों पक्षों की कोशिश ये भी रहती है कि उनकी राजनैतिक ताक़त के लिए इस समाज के वोट पर उनका अधिकार हो."
जाति को नकारते हैं इतिहासकार
मशहूर इतिहासकार रोमिला थापर अपनी किताब 'अशोका एंड डिक्लाइन ऑफ़ मौर्याज़' में सम्राट अशोक की जाति से संबंधित दावे को नकार चुकी हैं.
पटना विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर और इंडियन कांउसिल ऑफ़ हिस्टॉरिकल रिसर्च की कार्यकारी परिषद के सदस्य रहे ओपी जायसवाल इस बात को विस्तार देते हैं.
बीबीसी से बातचीत में वो कहते है, "पहले समाज सिर्फ़ चार वर्णों में बंटा हुआ था - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. लेकिन लॉ मेकर्स जैसे नारद, याज्ञवल्क्य, मनु आते गए, इन चार वर्गों में जातियां बनती गईं और ये वर्गीकरण खान-पान, रहन-सहन आदि के आधार पर हुआ. इसलिए मौर्य काल में कुर्मी या कुशवाहा जैसी कई जातियां थीं, ये स्पष्ट नहीं है क्योंकि उस वक्त तो ज़्यादातर लोग आदिवासी थे."
वो बताते हैं, "जातीय पहचान खोजने की कोशिश 19वीं सदी में तेज़ हुई. जब अंग्रेजों से संघर्ष शिखर पर था तो समुदाय चाहते थे कि उनकी उपस्थिति अलग जातीय पहचान के साथ दर्ज हो. बाद में इन अलग-अलग समुदायों ने अपने पूर्वज ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं में ढूंढे. मसलन, चंद्रवंशी समाज ने जरासंध को, कुशवाहों ने चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक को, बनियों ने भामाशाह को अपना पूर्वज बताना शुरू किया."
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स्थानीय गीतों में अशोक
वैसे ये पहली दफ़ा नहीं है जब सम्राट अशोक को लेकर बीजेपी-जेडीयू में खींचतान हुई हो. इसी साल जनवरी माह में लेखक दया प्रकाश सिन्हा के नाटक 'सम्राट अशोक' को लेकर जेडीयू-बीजेपी में खींचतान हुई थी.
पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा ने अपने एक इंटरव्यू में अशोक की तुलना औरंगजे़ब से की थी.
लेखक का संबंध बीजेपी से बताए जाने के बाद बिहार बीजेपी और जेडीयू के वरिष्ठ नेता उपेन्द्र कुशवाहा सहित तमाम नेता आक्रामक मुद्रा में आ गए थे.
नतीजा ये हुआ कि बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल को दया प्रकाश सिन्हा के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराकर ये कहना पड़ा था कि दया प्रकाश का बीजेपी से कोई संबंध नहीं है.
माना जा रहा है कि सम्राट अशोक की जयंती पार्टी मनाकर बीजेपी कुशवाहा वोटों का 'डैमेज कंट्रोल' कर रही है.
राजनीति की पथरीली जमीन से इतर सम्राट अशोक को लेकर बीते तीन-चार सालों में सम्राट अशोक के जीवन के इर्द-गिर्द गीत लिखे और गाए जा रहे हैं. साफ़ है कि ये एक तरह का 'योजनाबद्ध प्रयास' है.
गायक धनंजय कुशवाहा ने भी 'सम्राट अशोक क्लब' के कहने पर अशोक के जीवन पर पाँच गीत गाए हैं.
बीबीसी से बातचीत में वो कहते है, "हम अपनी जाति को लेकर कोई फूहड़ गीत तो गा नहीं रहे हैं. हम सम्राट अशोक के गीत गाकर अपने मौर्य समाज को जागरुक कर रहे है. इसमें कोई बुराई नहीं."
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