हिमाचल: इस जंगल में पेड़ क्यों नहीं काटते वन माफिया और लोग, जानिए रहस्य
शिमला। हिमाचल प्रदेश में वन माफिया की अपनी हकूमत चलती है। माफिया के आगे सरकारी कानून कोई मायने नहीं रखते। जो कोई कानून का पाठ भी पढ़ाना चाहे उसे फोरेस्ट गार्ड होशियार सिंह की तरह सदा के लिये नींद में सुला दिया जाता है। यही वजह है कि प्रदेश में जहां एक ओर जंगल खत्म होने के कगार पर हैं तो दूसरी ओर जिला शिमला के रोहड़ू में एक इलाका ऐसा भी है, जहां लोग देवता की इजाजत के बिना पत्ता भी हिलाना मुनासिब नहीं समझते।
देवता करते हैं जंगल की सुरक्षा
इसी के चलते आज रोहड़ू तहसील के दुमरेड़ा, माथला, मघाड़ा, जैनाड़ी व शिवाड़ी पांच ऐसे गांव हैं, जहां इंसान की नहीं देवता का जंगलों पर राज है। वन माफिया यहां पेड़ सपने में भी नहीं काट सकता। इस इलाके के ग्रामीणों का मानना है कि अगर वह अपने जंगल में पेड़ काटेंगे तो इससे देवता नाराज हो जाएंगे और उन्हें श्राप दे देंगे। ग्रामीण जंगल तो जाते हैं मगर यहां की लकड़ी का कभी जलाने या अन्य घरेलू काम में उपयोग नहीं करते हैं और तो जंगल में गिरी पड़ी सूखी लकड़ी भी नहीं उठाते। अगर जरूरत पड़े भी तो लकड़ी पड़ोस के जंगल से ही लाई जाती है। नतीजा ये है कि जहां ऊपरी शिमला के कई जंगल खत्म होने की कमार पर हैं वहीं, इन गांवों के आसपास का जंगल आज भी हरा-भरा है। ये गांव है दुमरेड़ा, माथला, मघारा, जैनाड़ी और शिवाड़ी। इनकी आबादी करीब 2500 है।
जंगल में घुसने का साहस नहीं जुटा पाते
ग्रामीणों का कहना है कि जंगल में पूजा कैसे होती है, वहां क्या है, उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। देवता के गूर याानि मुख्य पुजारी जब भी उन्हें पूजा के लिये कहते हैं तो सभी लोग एकत्रित हो जाते हैं लेकिन जंगल की ओर तीन लोग ही जाते हैं। इनमें दो रास्ते में ही रह जाते हैं। मात्र एक दूवता का गूर ही जंगल में जाकर पूजा करता है। गूर भी बोल नहीं पाता। जिस कारण वह नहीं बता पाता कि पूजा कैसे हुई। रोहड़ू के नरेन्दर चौहान बताते हैं कि अभी तक यहां जो भी देवता का गूर बनता आया है वह बोल ही नहीं पाता है। यानि शारीरिक रूप से मूक है। इसी वजह से इस बारे में लोगों को खास जानकारी इस बारे में नहीं मिल पाई है व जंगल के अंदर जाने का साहस भी कोई जुटा नहीं पाता।
20 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला जंगल
जानकारी के मुताबिक, यह जंगल समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर 20 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जंगल की कच्ची व सूखी लकड़ी तक को कोई नहीं उठाता। यह परंपरा कब से चल रही है। इसकी पुख्ता जानकारी ग्रामीणों के पास नहीं है। स्थानीय रेंज फोरेस्ट आफिसर नरेन्दर सिंह देष्टा बताते हैं कि यहां वन विभाग के पास अभी कोई भी शिकायत अवैध कटान को लेकर नहीं आई है। न ही यहां अवैध कब्जे की आज-तक एक भी शिकायत रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है।
गाय का दूध भी नहीं पीते थे
इस जंगल की पैमाइश भी नहीं की गई है। मंदिर के मोहतबीन, मंदिर कमेटी के प्रमुख भाग चंद बताते हैं कि पहले इस गांव के लोग गाय का दूध भी नही पीते थे। 1983 के बाद ही लोग दूध पीने लगे। यही नहीं इस गांव में विवाह शादियों के दौरान मदिरा पान भी निषेध है। कुछ चुनिंदा लोग ही शराब पी सकते हैं। वह भी गांव के पास ही बह रहे नाले के पास जाकर। गांव की महिला मंडल की प्रधान दीपना देवी कहती हैं कि यहां लोग शराब व नशे से दूर रहते हैं।