Winter Solstice Today: आज है साल का सबसे छोटा दिन, जानिए इससे जुड़ी खास बातें
नई दिल्ली। आज यानी 21 दिसंबर साल का सबसे छोटा दिन है, आज साल की सबसे लंबी रात रहेगी क्योंकि आज दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य की धरती से दूरी सबसे ज्यादा होगी। आपको बता दें कि पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के दौरान साल में एक दिन ऐसा आता है, जब दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य की धरती से दूरी सबसे ज्यादा होती है तो उस वक्त दिन और रात पर फर्क पड़ता है, इस दिन को 'विंटर सोलस्टाइस' कहा जाता है। कुछ सालों से इस दिन की तारीखों पर फर्क आ रहा है, कभी ये 21 दिसंबर को होता है तो कभी 22 या 23 को, फिलहाल खगोल वैज्ञानिकों के मुताबिक ये अवधि 20 से 23 दिसंबर के बीच ही होती है।
21 दिसंबर
21 दिसंबर को सूर्य के पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूर होने के कारण धरती पर किरणें देर से पहुंच रही हैं, जिस वजह से तापमान में भी कुछ कमी दर्ज की गई है। इसलिए अक्सर आपने अपने बुजुर्गों से सुना होगा कि दिसंबर के अंतिम दिन आ गए हैं, अब तो प्रचंड जाड़ा पड़ने वाला है, तो इसके पीछे वजह सूर्य की पृथ्वी से दूरी ही है।
समर सोलस्टाइस
'विंटर सोलस्टाइस' के ठीक विपरीत 20 से 23 जून के बीच 'समर सोलस्टाइस' भी मनाया जाता है, जब दिन सबसे लंबा और रात सबसे छोटी होती है तो वहीं 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन और रात का समय बराबर होता है।
कैमोस उत्सव
इस दिन को लोग सेलिब्रेट भी करते हैं, आपको बता दें कि चीन में लोग 21 दिसंबर के दिन को'पॉजिटिव एनर्जी' का प्रतीक मानते हैं। चीन के अलावा ताइवान में इस दिन को लोग 'ट्रेडिशनल फूड डे' के रूप में मनाते हैं तो वहीं पाकिस्तान के नॉर्थ वेस्टर्न क्षेत्र में रहने वाली जनजाति कलाशा आज के दिन 'कैमोस उत्सव' मानती है तो वहीं जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैंड के कई क्षेत्रों में 'द फिस्टऑफ जूल फेस्टिवल' मनाया जाता है।
धार्मिक महत्व
तो वहीं इसका धार्मिक महत्व भी है, 21 नवंबर से 21 दिसंबर के महीने को 'धनुमास' कहा जाता है, कुछ लोग इसे 'वास्तविक संक्राति' से जोड़ देते हैं क्योंकि ऐसा मानना है कि 1700 साल पहले आज के ही दिन 'मकर संक्रान्ति' मनाई जाती थी जो कि खिसककर अब 14 जनवरी हो गई है।
आज रात लंबी है इसलिए
आज रात लंबी है, इसका मतलब ये हुआ कि अंधकार ज्यादा होगा इसलिए कई जगहों में आज अंधकार की नकारात्मकता को कम करने के लिए धार्मिक कार्य किए जाते हैं । उत्तर भारत में आज भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाने और गीता पाठ करने की प्रथा है, वहीं राजस्थान के कुछ हिस्सों में 'पौष उत्सव' की शुरूआत होती है।
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