क्या है कावेरी विवाद, जानें क्यों मचा है हंगामा?
बेंगलुरु। कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में लोगों के प्रदर्शन ने हिंसक रुख अख्तियार कर लिया है। इसके बाद बंगलुरु में धारा 144 लगा दी गई है ,कई बसों को आग के हवाले कर दिया गया है तो कहीं से भारी पथराव की खबर है।
तमिलनाडु को कावेरी का पानी छोड़ने के SC के आदेश के बाद आज कर्नाटक बंद
जब से सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है उस दिन से ही हंगामा मचा है। लेकिन आखिर ये कावेरी विवाद है क्या.. क्यों हो रहा है बवाल.. आईये जरा इस विषय पर नजर डालते हैं विस्तार से...
इतिहास
कावेरी एक अंतर्राज्यीय नदी है, कर्नाटक और तमिलनाडु इस कावेरी घाटी में पड़नेवाले प्रमुख राज्य हैं, इस घाटी का एक हिस्सा केरल में भी पड़ता है जबकि सागर में मिलने से पहले ये नदी कराइकाल से होकर गुजरती है जो पांडिचेरी का हिस्सा है, इसलिए इस नदी के जल बंटवारे को लेकर हमेशा बवाल होता रहता है।
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अंग्रेजों के जमाने से छिड़ा है विवाद
कावेरी जल का मसला आज का नहीं है, ये बात अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। कहते हैं कि यह बवाल 19वीं शताब्दी में मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच में शुरू हुआ था। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ, इस समझौते में बाद में केरल और पांडिचेरी भी शामिल हो गये थे।
कर्नाटक एक रियासत थी
लेकिन बाद में कर्नाटक को इस समझौते पर एतराज हो गया क्योंकि उसका मानना है कि अंग्रेज़ों की हुकूमत के दौरान कर्नाटक एक रियासत थी जबकि तमिलनाडु सीधे ब्रिटिश राज के अधीन था इसलिए 1924 में कावेरी जल विवाद पर हुए समझौते में उसके साथ न्याय नहीं हुआ और इस कारण आज वो पानी के बंटवारे पर शोर मचा रहा है।
अड़ गया कर्नाटक
कर्नाटक ये भी मानता है कि यहां कृषि का विकास तमिलनाडु की तुलना में देर से हुआ और इसलिए भी क्योंकि वो नदी के बहाव के रास्ते में पहले पड़ता है, उसे उस जल पर पूरा अधिकार बनता है।
चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट
इस मामले में 1972 में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट किया गया, जिसकी घोषणा संसद में हुई थी और साल 1990 में तमिलनाडु की मांग पर एक ट्रिब्यूनल का भी गठन हुआ था जिसमें ये फैसला किया गया था कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा लेकिन बाद में कर्नाटक ने इससे भी इंकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताते हुए कहता हैै कि 1924 के समझौते के अनुसार, जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी वही मिले इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट के पास गया था और इस बार कोर्ट ने उसके हक में फैसला सुना दिया।
भड़की हिंसा
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को 15 हजार क्यूसेक पानी 10 दिन तक तमिलनाडु को देने का निर्देश दिया जिसके चलते राज्यों में विरोध प्रदर्शन होने लगे जिसके बाद 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी मामले पर सुनाया अपना फैसला बदल दिया । नए फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए रोजाना 12000 क्यूसेक पानी छोड़ना होगा। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 20 सितंबर तक लागू रखने का आदेश दिया है लेकिन इसके बाद भी कर्नाटक-तमिलनाडु में हिंसा भड़क गई है।