UP Assembly Election 2017: डैमेज कंट्रोल में जुटी भाजपा, जानिए क्या है प्लान !
लखनऊ। 'न गुंडागर्दी, न भ्रष्टाचार, अबकी बार.....सरकार' हालांकि इस खाली जगह को बीजेपी ने पहले ही भर लिया है। जबकि चुनावी नतीजों के आधार पर यह तय होना अभी बाकी है कि सूबे की जनता किस पार्टी का, किस आधार पर चुनाव करेगी। वहीं संघ भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए तैयारियों में जोरदार तरीके से जुट गया है।
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सियासी नफा तलाशने का एक प्लान
संघ ने 18 अगस्त को रक्षाबंधन के मौके पर सियासी नफा तलाशने का एक प्लान बनाया है। जिसके तहत स्वयंसेवकों को दलित बहनों से राखी बंधवाने और उनके घर जाकर बातचीत के निर्देश दिए गए हैं। ताकि रोहित वेमुला प्रकरण, उना की घटना पर वे लोगों की राय को समझ सकें। और उन्हें दिए गए निर्देशों के आधार पर उन्हें फिर से भाजपा के पक्ष में जुटाने का हर संभव प्रयास करें। साथ ही संघ अपने संपर्क के संगठनों पर नजर रखने की भी रणनीति बनाने में जुटा है। जिससे सामाजिक सद्भाव का माहौल फिर से बनाया जा सके।
बयानबाजी पर नियंत्रण रखने के निर्देश
बीजेपी के एक्शन प्लान में बयानबाजी पर नियंत्रण सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी की टीम को पहले ही इस बात की चेतावनी दे दी है कि बयानबाजी पर नियंत्रण रखा जाए। वहीं प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या भी इस चेतावनी को प्रदेश स्तर पर सभी लोगों के बीच दोहरा चुके हैं। पर, इस चेतावनी का कितना प्रभाव पड़ता है ये तो वक्त पर ही निर्भर है।
ये कैसा डैमेज कंट्रोल ?
डैमेज कंट्रोल के लिए भरसक प्रयास कर रही बीजेपी अपने ही प्यादों की वजह से बार-बार कटघरे में खड़ी नजर आती है। कभी बहुजन समाज पार्टी में मायावती के बेहद खास रहे स्वामी प्रसाद मौर्या को भाजपा ने जिस उद्देश्य के लिए शामिल किया है, कहीं न कहीं स्वामी उस राह से शुरूआती कुछ कदमों के बाद ही भटकते नजर आ रहे हैं। दरअसल भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद है कि स्वामी दलित मतदाताओं को लोकसभा की तर्ज पर फिर से भाजपा के लिए जुटाएंगे लेकिन ये रणनीति कितनी कारगर होगी देना दिलचस्प होगा।
गंदी मूर्ति पर माला मत पहनवाया कीजिए
पिछले दिनों गाजीपुर के मरदह बाजार में मौर्या का कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया, साथ ही आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने का अनुरोध किया। पर, चौकाने वाली बात यह रही कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने साफ-साफ मना कर दिया, और कहा कि पहले धुलवा लीजिए। गंदी मूर्ति पर माला मत पहनवाया कीजिए। सवाल ये है कि ये सियासत में पार्टी लाइन में चलने वाला गंदा है या फिर धूल मिट्टी वाला। हालांकि पार्टी की खातिर जब दलित इतने महत्वपूर्ण हैं तो स्वामी के लिए गंदे कैसे ? बहरहाल स्वामी के इस बयान के बाद दलित खेमे की नाराजगी बढ़नी जायज है।
योजनाओं के जरिए बताया जाएगा हमदर्द
दलित वोटबैंक पर पूरी तरह से कंसन्ट्रेट करते हुए यूपी बीजेपी ने अपने सभी 17 दलित सांसदों को सद्भावना समारोह करने और दलित क्षेत्रों में प्रवास बढ़ाने का निर्देश दिया है। अलग अलग स्तरों पर अलग अलग रणनीति के तहत भाजपा अपनी योजना को आगे ले जाने की दिशा में कार्य कर रही है। इस रणनीति में उज्जवला योजना, स्टैंड-अप, केंद्र की अन्य योजनाओं तहत दलितों को दिए गए फायदे के आंकड़े हैं।
केंद्र सरकार दलितों के साथ
जिससे यह संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि केंद्र सरकार दलितों के साथ है, साथ ही यूपी में सत्तारूढ़ होते ही दलितों के पुनरूत्थान के लिए कार्य किए जाएंगे। जबकि मायावती के पारिवारिक वोटबैंक माने जाने वाले जाटव वोट के लिए बीजेपी यह पूरी तरह से स्वीकार कर चुकी है कि इस वोटबैंक को तोड़ना उसके बस की बात नहीं है, जिसे देखते हुए बीेजेपी ने अपना पूरा ध्यान गैरजाटव वोटबैंक पर लगाया है।
विश्लेषकों की राय
भाजपा की इस रणनीति पर विश्लेषकों ने अपनी राय रखते हुए कहा है कि बीजेपी जिस तर्ज पर दलित वोटबैंक को तवज्जो दे रही है, कहीं न कहीं उससे ज्यादा उसे अपनी पहचान माने जाने वाले वर्गों को जोड़े रखना होगा। किसी भी वर्ग की नाराजगी सियासत में कदम अस्थिर कर सकती है। साथ ही जिन नेताओं की हाल ही में भाजपा में एंट्री हुई है वे बीजेपी की रणनीति के उलट होकर यदि काम करेंगे तो भी भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।