Terror Funding: क्या है? आखिर क्या है आंतकियों की कमाई का जरिया?
देश और दुनिया में जो आतंकी हमले होते हैं, उनके लिए आतंकियों के पास इतने गोला-बारूद, गन, हाईटेक गैजेट्स और खाने-रहने के पैसे कहां से आते हैं? कौन करता है उनकी फंडिंग?
दुनियाभर में आतंकी फंडिंग (Terror Funding) को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। लेकिन ये टेरर फंडिंग आखिर है क्या? दरअसल आतंकी गतिविधियों के लिए जो पैसा इकट्ठा किया जाता है, चाहे वो वैध तरीके से हो या अवैध तरीके से, उसे ही टेरर फंडिंग कहते हैं। वैध तरीकों का मतलब किसी व्यक्ति द्वारा किया गया दान, बिजनेस या धार्मिक संगठनों के नाम पर लिया गया पैसा। जबकि अवैध तरीके के कई स्रोत हैं- ड्रग्स का कारोबार, हथियारों की खरीद-बिक्री, तस्करी, धोखाधड़ी, अपहरण और जबरन वसूली, कालाबाजारी ऐसे कई तरीके हैं।
PM मोदी का संदेश- नो मनी फॉर टेरर
टेरर फंडिंग को लेकर भारत का रूख बिल्कुल स्पष्ट रहा है। अभी पिछले महीने 18 नवंबर 2022 को पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आतंकी फंडिंग के खिलाफ 'नो मनी फॉर टेरर' अंतरराष्ट्रीय मंत्रीस्तरीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि दशकों तक हमारे देश को आतंकवाद ने चोट पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन हमने बहादुरी से इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी। हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं हो जाता। यह सभी जानते हैं कि आतंकी संगठनों को किन स्रोतों से धन मिलता है। इसका एक स्रोत किसी एक देश का समर्थन भी है। कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं। वे उन्हें राजनीतिक, वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
टेरर फंडिंग पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों की राय
आतंकवादी समूहों और आतंकवादियों पर वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) और संयुक्त राष्ट्र की सूची के अनिवार्य मानकों को प्रभावी ढंग से कैसे लागू किया जाए, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है।
टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के लिए केवल भारत, अमेरिका, फ्रांस ही नहीं बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय संगठन भी लगे हुए हैं। चाहे वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, FATF या NATO (North Atlantic Treaty Organization) जैसी संस्थाएं हो।
बीते साल ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ये कहा गया था कि आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है जिससे कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। अलकायदा, ISIS (Islamic State of Iraq and Syria) और उनके सहयोगी आतंकवादी समूहों के धन स्रोतों को रोकना होगा। वहीं इसके लिए FATF की भूमिका अहम होगी।
वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 में अमेरिका ने जानकारी के आधार पर 14 बैंक खातों को सीज किया था। ये बैंक खाते आतंकियों के लेन-देन में लगातार उपयोग में लाए जा रहे थे। इन 14 बैंक खातों से 140 मिलियन यूएस डॉलर जब्त किए थे। गौर करने वाली बात ये कि तब इस्लामिक स्टेट (ISIS) की कुल संपत्ति लगभग 1.7 बिलियन डॉलर के लगभग मानी गई थी। फिलहाल कोई स्पष्ट आंकड़ा सामने नहीं आया है।
FATF की भूमिका अहम क्यों?
FATF पेरिस में विकसित देशों की जी-7 बैठक में 1989 में स्थापित वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण निगरानी संस्था है। इसका उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए लाया गया था, बाद में जब 9/11 हमला हुआ तब इस संस्था को 2001 में आतंकियों की फंडिंग पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी दी गई। FATF के पास अधिकार है कि वो शक के आधार पर किसी संगठन के अकाउंट को फ्रीज कर सकता है।
साथ ही किसी देश पर आतंकी सहायता (टेरर फंडिंग) मामले में शक होने पर उसे ब्लैक या ग्रे लिस्ट में भी डलवा सकता है। ग्रे लिस्ट के तहत उन देशों को शामिल किया गया है जो मनी लॉन्ड्रिंग या टेरर फंडिंग के लिए सुरक्षित जगह माने जाते हैं। ग्रे लिस्ट वाले देश को एक तरह की चेतावनी होती है कि वह सुधर जाए। फिलहाल ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान, तुर्की, जार्डन और माली जैसे देश शामिल हैं। ग्रे लिस्ट में शामिल देशों को IMF, विश्व बैंक और ADB से आर्थिक सहायता मिलने पर भी प्रतिबंध है। जबकि ब्लैक लिस्ट में डाले गए देशों पर हर तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
टेरर फंडिंग की सजा?
यहां सवाल ये है कि टेरर फंडिंग में शामिल लोगों को भारत या विदेशों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से क्या सजा मिलती है। अगर कोई शख्स जायज या नाजायज स्रोत से धन उपलब्ध कराता है, तो उसे सजा देने का प्रावधान है। उस शख्स को आजीवन या कम से कम 5 वर्ष की जेल और जुर्माना दोनों लगाया जा सकता है।
आतंकी हमले में मरने वालों का डाटा
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (Global Terrorism index) के मुताबिक साल 2021 में पूरे दुनिया में आतंकवादी हमलों के 5,226 लोगों की मौतों हुईं हैं। गौर करने वाली बात ये है कि इतने मौतों के बावजूद 1.2% की मामूली गिरावट दर्ज की गई है। यहां गौर करने वाली बात ये है कि साल 2000 में आतंकवाद से होने वाले मौत के आंकड़े 3,329 दर्ज किए गए थे जबकि 2015 में यह संख्या बढ़ कर 32,658 दर्ज की गई। यह संख्या वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2015 की रिपोर्ट में सामने आई थी। जबकि साल 2014 में आतंकवाद से होने वाली मौतों की संख्या में 59 प्रतिशत की कमी आई है। खासकर इराक, सीरिया और नाइजीरिया जैसे देशों में। वहीं पश्चिम के देशों में भी आतंकवादी हमलों में 68% की कमी आई है। जबकि अमेरिका ने 2012 के बाद से अब तक सबसे कम मौतें दर्ज की। वहीं इस्लामिक स्टेट (IS) और तालिबान को 2021 में दुनिया के सबसे घातक आतंकवादी समूह के रूप में सूचित किया गया।
आतंकियों की कमाई का जरिया
आतंकी संगठनों को कई स्रोतों के माध्यमों से पैसा इकट्ठा करते हैं। चैरिटी (इस्लाम की रक्षा, इस्लाम का विस्तार, जिहाद, मस्जिदों की रक्षा, कौम का उत्थान), ब्लैक मार्केटिंग, ड्रग्स और अफीम की खेती, अपहरण, सिनेमा, क्रिकेट और खेलों में सट्टा, तेल (पेट्रोल) की अवैध बिक्री के जरिए आतंकवाद फैलाने के लिए फंड इकट्ठा करते हैं।
News18 India की एक रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि अफीम की खेती से आतंकी संगठनों को हर साल करीब 65 अरब डॉलर मिलते हैं। वहीं दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP का करीब 10 फीसदी पैसा आतंकी गतिविधियों में खर्च होता है। वहीं एक इतालवी पत्रकार लॉरेटा नेपॉलियोनी ने अपने एक लेख में कहा था कि आतंकियों की आय का प्रमुख जरिया अफीम व दूसरे ड्रग्स की खरीद-बिक्री है।
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