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Ban on PFI: कर्नाटक हाईकोर्ट ने पॉपुलर फ्रंट पर प्रतिबंध को सही बताया, जानिए पीएफआई का हिंसक इतिहास

पॉपुलर फ्रंट की स्थापना करने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि सरकार ने इस्लामिक सेवक संघ, नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, नेशनल डिफेंस फ्रंट, सिमी आदि विदेशी धन पर पलने वाले इस्लामिक आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।

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Karnataka High Court justified the ban on Popular Front, know the violent history of PFI
केंद्र सरकार द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर लगाए गए प्रतिबंध को फ्रंट के कर्नाटक प्रमुख नासिर अली ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। 30 नवंबर को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पॉपुलर फ्रंट पर प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया है।

याचिकाकर्ता के वकील जय कुमार पाटिल ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि पॉपुलर फ्रंट को गैरकानूनी घोषित करना एक असंवैधानिक कदम था। उन्होंने कहा कि सरकार के आदेश में इस बात का उल्लेख नहीं था कि इस संगठन को गैरकानूनी क्यों घोषित किया गया है?

केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीएफआई गैरकानूनी गतिविधियों को संचालित कर रहा था और उसने देश में हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए आतंकवादी संगठनों के साथ हाथ मिला लिया था।

इससे पहले अक्टूबर महीने में केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट पर प्रतिबंध की पुष्टि के लिए एक न्यायाधिकरण का गठन किया था, जिसका प्रमुख दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा को मनोनीत किया गया था। पॉपुलर फ्रंट पर प्रतिबंध यूएपीए एक्ट 1967 की धारा तीन के तहत लगाया गया है। इस एक्ट के तहत, केंद्र सरकार द्वारा यदि किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसकी पुष्टि एक न्यायाधिकरण करता है, जिसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।

गौरतलब है कि 28 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट और उससे संबंधित आठ अन्य संगठनों पर पांच वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। इससे पूर्व देशव्यापी छापों में इन संगठनों से जुड़े हुए सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया था। पॉपुलर फ्रंट के अतिरिक्त जिन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल विमेंस फ्रंट, जुनियर फ्रंट, एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं।

सरकार का दावा है कि पॉपुलर फ्रंट का संबंध प्रतिबंधित संगठन सिमी, बांग्लादेश के आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन और आईएसआईएस से है और इस संगठन को आतंकवाद की ज्वाला भड़काने के लिए विदेशों से फंड प्राप्त होते थे। जबकि 2006 में बनने वाला पॉपुलर फ्रंट यह दावा करता है कि उसका लक्ष्य देश के गरीब और पिछड़े हुए लोगों के कल्याण के लिए काम करना और उनके शोषण को रोकना है।

क्या है पॉपुलर फ्रंट?

पॉपुलर फ्रंट का पूर्ववर्ती नाम नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट था, जो 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वस्त किए जाने के एक वर्ष बाद केरल में बना था। बाद में इसमें कई अन्य संगठन भी शामिल हो गए।
पॉपुलर फ्रंट की स्थापना करने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि सरकार ने इस्लामिक सेवक संघ, नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, नेशनल डिफेंस फ्रंट, सिमी आदि विदेशी धन पर पलने वाले इस्लामिक आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। कानून के चंगुल से बचने के लिए इन इस्लामिक आतंकवादी तत्वों ने पॉपुलर फ्रंट का गठन करने की घोषणा की।

खास बात यह है कि यह संगठन गत 16 वर्षों से प्रचार की चकाचौंध से दूर रहकर देश भर में अपने पैर पसार रहा था। अपने आतंकवादी इरादों पर पर्दा डालने के लिए इसने अल्पसंख्यकों और वंचित वर्ग के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास के कार्यक्रम का चोला ओढ़ रखा था। यह संगठन युवकों, महिलाओं, छात्रों और बुद्धिजीवियों के क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नामों से अपना जाल फैला रहा था।

2009 में पॉपुलर फ्रंट ने महिलाओं को जिहाद की ओर प्रेरित करने के लिए नेशनल विमेंस फ्रंट की स्थापना की थी। छात्रों में अपना पैर फैलाने के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया बनाया गया। इस संगठन के लोगों के शातिराना दिमाग का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वे यह भलीभांति जानते थे कि उनकी देशद्रोही गतिविधियों के कारण पुलिस उन पर किसी न किसी रूप में शिकंजा कसेगी। इसलिए उन्होंने अपना एक मानवाधिकार संगठन भी बना रखा था, जिसका नाम नेशनल कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन रखा गया। पॉपुलर फ्रंट ने अपना एक राजनीतिक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया भी बना रखा है, जिस पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है।

पॉपुलर फ्रंट का हिंसक इतिहास

2010 में पॉपुलर फ्रंट से संबंधित कुछ कार्यकर्ताओं ने केरल के एक कॉलेज के ईसाई प्राध्यापक टी.जे. जोसफ का हाथ इसलिए काट दिया था, क्योंकि उन्होंने एक ऐसा प्रश्नपत्र तैयार किया था, जिसमें कथित तौर पर पैगम्बर मोहम्मद का अपमान किया गया था।

2012 में केरल सरकार ने केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका देकर इस बात पर जोर दिया था कि पॉपुलर फ्रंट की गतिविधियां देश में आतंकवाद और पृथकतावाद को बढ़ावा दे रही हैं और इसके कैडर में प्रतिबंधित सिमी का खतरनाक कैडर भी मौजूद है। केरल पुलिस ने उच्च न्यायालय में एक शपथपत्र दिया, जिसमें इस बात का दावा किया गया था कि पॉपुलर फ्रंट का संबंध तालिबान और अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से है। इस आरोप के प्रमाण के रूप में उन्होंने पॉपुलर फ्रंट के कार्यालयों से बरामद किया गया साहित्य भी अदालत में पेश किया था।

कहा जाता है कि जब केरल और कर्नाटक सरकार ने पॉपुलर फ्रंट पर शिकंजा कसने की तैयारी की तो इसका मुख्यालय केरल से गुप्त तरीके से देश की राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में शिफ्ट कर लिया गया।

पॉपुलर फ्रंट की आतंकवादी गतिविधियों के कारण ही 2018 में झारखंड सरकार ने इसे प्रतिबंधित संस्था घोषित किया था, मगर सरकारी एजेंसियों द्वारा पॉपुलर फ्रंट के खिलाफ पुख्ता प्रमाण पेश नहीं करने के कारण उच्च न्यायालय में यह प्रतिबंध टिक नहीं पाया।

2019 में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भी पॉपुलर फ्रंट ने सक्रिय भूमिका निभाई। इस सिलसिले में इसके नेता अमीनुल हक को असम पुलिस ने गिरफ्तार किया। वहां पर इस संगठन से जुड़े हुए अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था।

इसी दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने भी यह रहस्योद्घाटन किया था कि नागरिकता कानून के खिलाफ राज्य में जो दंगे भड़के हैं, उनके पीछे पॉपुलर फ्रंट का हाथ है। पुलिस ने इस खतरनाक संगठन से जुड़े हुए 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया था। दंगाइयों के कब्जे से भारी मात्रा में अवैध अस्त्र-शस्त्र और विस्फोटक पदार्थ भी बरामद हुए थे।

इसके अतिरिक्त फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों में भी पॉपुलर फ्रंट की साजिश का खुलासा हुआ था। जुलाई 2022 में तेलंगाना पुलिस ने अदालत में पेश की गई एक रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि पॉपुलर फ्रंट देश में एक बड़ी साजिश रच रहा है।

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जुलाई महीने में ही पटना पुलिस ने पॉपुलर फ्रंट के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार किया था। इसमें खास बात यह थी कि जो लोग पकड़े गए, उनमें से दो राज्य पुलिस के कर्मचारी भी थे और हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे। इससे साफ है कि पॉपुलर फ्रंट राज्य सरकार के शासनतंत्र में भी घुसपैठ कर चुका था। पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मानवजीत सिंह ढिल्लों ने दावा किया कि जो लोग पकड़े गए हैं, वे फुलवारी शरीफ में पॉपुलर फ्रंट का प्रशिक्षण शिविर चलाते थे, जिसमें भाग लेने वालों को देशद्रोही गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया जाता था।

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English summary
Karnataka High Court justified the ban on Popular Front, know the violent history of PFI
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