विश्व सम्मेलन: "हिन्दी है हम...वतन है हिन्दोस्तां हमारा"
[सत्येन्द्र खरे] इकबाल साहब की ‘‘हिन्दी है हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा'' पंक्ति में दो बातें चरितार्थ होती है। पहली तो हिन्दी होने का गर्व और दूसरा देश के प्रति प्रेम और देशभक्ति का भाव। हिन्दी भाषा ने देश के विकास, एकता और अखंडता में प्राचीन भारत के इतिहास से लेकर आधुनिक भारत के विकास तक अपनी भूमिका को स्पष्ट किया है। वर्तमान परिस्थितियों में जहां देश की सरकार हिन्दी को और सशक्त बनानें की बात कर, इसे आधुनिक संसाधनों के प्रयोग में भी ला रही है, तो कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यह कवायद कर रही है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र आधिकारिक भाषाओं में स्थान मिल सके।
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हालांकि संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाने में भारत को 129 देशों के समर्थन की आवश्यकता होगी और इस बात में हमें तनिक भी संशय नहीं करना चाहिए कि भारत इस समर्थन को नहीं जुटा पायेगा, क्योंकि पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र में योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने के लिए महज कुछ ही दिनों में भारत ने 177 देशें का समर्थन हासिल कर लिया था।
गैर हिन्दी भाषियों ने दिया बढ़ावा
हिन्दी सामान्य जन के बीच बनी और आम लोगों द्वारा विकसित भाषा है, हिन्दी के विभिन्न स्वरूपों में देश के विभिन्न वर्गों में अनेकोंनेक योगदान हैं। विषेशकर उन क्षेत्रों का योगदान एवं महत्व ज्यादा है जहां हिन्दी भाषी कम थे। जैसे पंजाब, बंगाल और मराठवाड़ा (विभाजन के पूर्व) हिन्दी के विकास में और राष्ट्रभाषा बनाने हेतु भी अहिन्दी भाषायी जनों ने अपने योगदान को सुनिष्चित किया है, जिसमें राजाराम मोहन राय, आत्मारंग पांडुरंग, दयानंद सरस्वती, कर्नल एस.एस. आलकाट, स्वामी विवेकानंद एवं महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति प्रमुख है।
स्वाधीनता के संघर्ष, राष्ट्रभाषा आंदोलन (हिन्दी आंदोलन) में भी हिन्दी को सर्वमान्य भाषा बनाने में भी विभिन्न राज्यों, संस्थाओं, व्यक्तियों ने अपनी भूमिका को स्पष्ट किया है। आजादी की लड़ाई का आंदोलन जैसे-जैसे तीव्र होता गया, वैसे-वैसे हिन्दी को भी राष्ट्रभाषा बनानें का अभियान भी तेज हुआ था। तत्कालीन कांग्रेस और संघ के नेताओं ने भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनानें में विभिन्न अधिवेशनों में चर्चा कर प्रस्ताव भी पारित कराये।
आजादी के बाद हिन्दी को संवैधानिक रूप से 14 सितंबर 1949 को राजभाषा घोषित कर दिया गया। राजभाषा के नाम पर उस समय मात्र हिन्दी पर ही चर्चा नहीं हुई, 11 सितंबर से 14 सितंबर के मध्य संसद में चली बहस के दौरान इसमें दक्षिण भाषा सहित अंग्रेजी और संस्कृत प्रमुख रही। राजभाषा को लेकर संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक कई प्रावधान दिये गये है।
हिन्दी से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य
इतिहास से निकलकर वर्तमान काल में अगर हिन्दी की बात की जाये तो हिन्दी ने निःसंदेह अपना विस्तार किया है, हिन्दी भारत की ही नहीं वरन विश्व के एक विशाल क्षेत्र की भाषा बनी है, स्वतंत्रता पूर्व से लेकर वर्तमान समय में भारत के नागरिक व्यापार, व्यवसाय एवं रोजगार हेतु विश्व के कोने-कोने में जा रहे है, जिससे हिन्दी का प्रचार-प्रसार और बाजार भी बढ़ा है।
भारतीय मूल के लगभग 2.5 करोड़ लोग विश्व के कई हिस्सों में जाकर रह रहे है, जिसमें पूर्व में जापान, आॅस्ट्रेलिया से लेकर भारतीय प्रायद्वीप, मध्य में खाड़ी देश, अफ्र्रीका महाद्वीप के विभिन्न देश सहित यूरोप और अमेरिका के कई देश शामिल हैं। यहां की सरकारों ने भी अपने विष्वविद्यालयों में हिन्दी को पढ़ाने, उसका विस्तार करनें की व्यवस्था की है।
विदेश में हिन्दी भाषा की पढ़ाई
विदेश में हिन्दी शिक्षा के संदर्भ में बात करें तो उजबेकिस्तान की राजधानी ताषकन्द में राजकीय प्राच्य विद्या संस्थान में हिन्दी में बीए, एमए की शिक्षा दी जा रही है, यहीं उजबेकिस्तान में ही हिन्दी को प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च षिक्षा में भी हिन्दी को विषेष स्थान प्राप्त है।
वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय, सूरीनाम, चीन, नार्वे, रूस, कनाडा, अमेरिका, इटली, पौलेंड, हंगरी सहित विश्व के लगभग 35 देशों के 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी का पठन-पाठन किया जा रहा है। इतना ही नहीं भारत के हिन्दी साहित्य को भी विदेशों में एक अच्छा स्थान प्राप्त है।
चीन, जापान सहित देश पूर्वों के देश हमें सिखाते हैं कि भाषा के आधार पर किस प्रकार देश का विकास और मजबूत अर्थव्यवस्था संभव है। भारत की सरकारों को भी चाहिए कि देश की राजभाषा को सषक्त बनानें के साथ-साथ अंतर्राज्यीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, शिक्षा, विज्ञान, व्यापार, कौषल शिक्षा सहित उन तमाम विषयों में हिन्दी को प्राथमिकता दी जाये, जिससे देश के विकास में हिन्दी का विषेष योगदान प्राप्त हो सके।
भोपाल में इन दिनों चल रहे 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में 40 देशों के 250 से अधिक विदेशी प्रतिनिधि शामिल हो रहे है। हिन्दी के विस्तार और संभावनाओं को लेकर तमाम विषयों पर मंथन किया जायेगा, इस तीन दिवसीय सम्मेलन के पष्चात देखना यह होगा कि भारत सरकार हिन्दी को विष्व भाषा बनानें की दिषा में भागीरथी प्रयास करनें में कितनी सफल हो पाती है?