
China and World: क्या सच में खत्म हो रहा है चीन का 'स्वर्णकाल'? इन देशों ने भी दिखाया 'आईना'
China and World: साल 2009 के बाद से चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया था। उस दौर में कहा जाता था कि अगर आप Amazon विक्रेता हैं, तो इस बात की बहुत प्रबल संभावना है कि आप अपने उत्पादों को चीन से मंगवा रहे हैं।

कोरोना काल में जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ठप्प पड़ गई थी, तब चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से मजबूत हो रही थी। मगर अब ऐसा नहीं है और चीन को एक के बाद एक बड़े व्यापारिक झटके मिलने शुरू हो गए हैं।
ब्रिटेन के अलावा, अन्य कई देशों ने भी चीन को आर्थिक मोर्चे पर पटखनी देने की तैयारी कर ली है। इस बात की पुष्टि चीन के निर्यात के आंकड़ों से भी हो जाती हैं। सीमा शुल्क एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक, China Export अक्टूबर माह में एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 0.3 प्रतिशत घटकर 298.4 अरब डॉलर पर आ गया है।
दरअसल, चीन जिस किसी देश के साथ व्यापार करता है, उस देश की इकोनॉमी का एक बड़ा हिस्सा अपने देश लेकर चला जाता है और धीरे-धीरे उस देश के व्यापारिक साझेदार बनने की आड़ में अपना एकतरफा फायदा करने लगता हैं। चीन की यह पॉलिसी माओ से-तुंग (Mao Zedong) के समय से है। माओ के बाद चीन की इन नीतियों को डेंग जियाओपिंग ने आगे बढाया, जिन्हें 'द आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न चाइना' भी कहा जाता है।
चीन के आतंरिक हालात हो रहे हैं खराब
पिछले साल चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे, जिस पर करीब 300 अरब डॉलर का कर्ज था, उसने अपने बॉन्ड रीपेमेंट्स में डीफॉल्ट किया था। अब रियल एस्टेट पूरे देश को डुबो रहा है। साल 2022 की पहली तिमाही में विदेशी निवेशकों ने 43 अरब डॉलर की निकासी की थी क्योंकि ब्याज अंतर बढ़ गया था।
'जीरो कोविड' नीति के साथ अर्थव्यवस्था सिकुड़ती जा रही है, जिससे कैपिटल आउटफ्लो बढ़ने का खतरा है। वहीं चीन के 91 शहरों में 300 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स में मकान मालिकों ने मार्गेज ईएमआई (EMI) चुकाने से इंकार कर दिया क्योंकि डेवलपर्स उन्हें मकान नहीं दे रहे हैं।
ऐसे हालातों को देखकर यही लगता है कि चीन में 2008 की आर्थिक मंदी को फिर से दोहराया जा रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ रहा है, जो उसके जीडीपी का 264% है (इसमें कॉरपोरेट और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं)।
मोदी सरकार ने रद्द की परियोजना और एप्स
भारत सरकार ने गलवान विवाद के बाद चीन को एक साथ कई बड़े झटके दिए थे। इसमें सबसे प्रमुख चीन को तकरीबन 1,500 करोड़ का नुकसान शामिल है। इसके अंतर्गत भारत के रेल मंत्रालय ने चीन में निर्मित सेमी-ट्रेन निर्माण परियोजना को रद्द कर दिया था। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने समय-समय पर चीनी कंपनियों के सैंकड़ों एप्स भी प्रतिबंधित कर दिए हैं। साथ ही, दिवाली-होली जैसे बड़े त्योहारों में 'बॉयकाट चीन' जैसे ट्रेंडस ने भी चीन को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी शिकस्त दी हैं।
कन्फडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल के दावे के मुताबिक साल 2021 में दिवाली पर लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये की बिक्री हुई थी। कैट ने पिछले साल 'चीनी सामान के बहिष्कार' का आह्वान किया था। उनका दावा है कि इसकी वजह से इस साल दिवाली पर चीन को 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक के व्यापार का नुकसान हुआ है।
जापान ने जब वापस बुलाईं अपनी कंपनियां
साल 2020 में जापान ने चीन में कारोबार कर रही 57 जापानी कंपनियों को वापस अपने देश बुलाने का फैसला लिया था। इस प्रक्रिया में होने वाला लगभग सारा खर्च जापानी सरकार द्वारा उठाने का वादा किया गया है।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फेसमास्क बनाने वाली कंपनी आइरिस ओह्यामा इंक (Iris Ohyama Inc) और शार्प कॉर्प (Sharp Corp) समेत 57 प्राइवेट कंपनियों को सरकार और मिनिस्ट्री ऑफ इकोनॉमी से सब्सिडी में कुल 57.4 बिलियन येन या 536 मिलियन डॉलर (4002 करोड़ रुपए) मिलेंगे। वहीं वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में विनिर्माण को स्थानांतरित करने के लिए 30 और कंपनियों को एक अलग घोषणा के अनुसार रकम देने की बात की थी।
सऊदी अरब ने दिया झटका
साल 2020 में सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको (Aramco) ने रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स बनाने को लेकर चीन के साथ हुए 10 अरब डॉलर के समझौते से हाथ खींच लिए थे। दूसरी तरफ अरामको ने भारत (महाराष्ट्र) में प्रस्तावित 44 अरब डॉलर के रत्नागिरी मेगा रिफाइनरी प्रोजेक्ट में निवेश का ऐलान कर दिया।
चीन-अमेरिका का बिजनेस वॉर
चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर 2018 से चल रहा है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले उत्पादों पर शुल्क लगाना शुरू कर दिया था, जिससे अमेरिका के साथ चीन के व्यापार अधिशेष में कमी आ गयी थी।
चीन के सीमा-शुल्क विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 के जुलाई में चीन का व्यापार अधिशेष घटकर 28.1 अरब डॉलर रह गया, जो जून में 28.9 अरब डॉलर पर था। इसके अलावा कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन से अपना व्यापार भी समेटना शुरू कर दिया है, इसमें सबसे बड़ा नाम आइफोन बनने वाली एप्पल का है।
उधर अमेरिका ने भी कई चीनी कंपनियों जैसे शिंजियांग जीसीएल न्यू एनर्जी मैटेरियल टेक्नोलॉजी, शिंजियांग दाको न्यू एनर्जी, शिंजियांग ईस्ट होप नॉनफेरस मेटल्स, होशाइन सिलिकॉन इंडस्ट्री (शानशान) और शिंजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कॉर्प्स को अपने यहाँ प्रतिबंधित कर दिया हैं।
नेपाल ने जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट BRI से किया किनारा
मार्च 2022 में चीनी विदेश मंत्री वांग यी नेपाल दौरे पर थे। तभी नेपाल ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' से किनारा करने का स्पष्ट संकेत दे दिया था। नेपाल ने अब अमेरिकी एमसीसी प्रोजेक्टको तरजीह देना शुरू किया है, जिसके चलते चीन को अरबों डॉलर का नुकसान होने की संभावना हैं।
मालदीव ने जब चीन को दिया था झटका
चीन की विस्तारवादी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से अधिकतर देशों का मोहभंग होता जा रहा है। साल 2018 में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहीम सोलिह ने कहा था कि चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता एक भूल थी। मुक्त व्यापार समझौता चीन की हितैषी है, और चीन मालदीव से कुछ नहीं खरीदता है।
चीन को इन छोटे देशों ने भी दिया झटका
चीन को सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर तो कई बड़े देश झटका दे चुके हैं लेकिन उनकी अन्य पॉलिसी पर भी कई देश चीन से पल्ला झाड़ रहे हैं। इस बीच चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत ही दो छोटे देशों ने भी पल्ला झाड़ लिया। बाल्टिक क्षेत्र के दो छोटे देश लातविया और एस्टोनिया चीन सहयोग समूह से बाहर निकल गए। इससे चीन की साख को बड़ा झटका लगा था।
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