PoK: कितना भारतीय भूभाग है पाकिस्तान और चीन के कब्जे में, जानिए पूरा इतिहास
PoK: केंद्र सरकार और भारतीय सेना की तरफ से कई बार जम्मू और कश्मीर के कब्जाए हिस्सों को वापस लेने सम्बन्धी बयान सामने आते रहते हैं। जैसे कुछ दिनों पहले, उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि इंडियन आर्मी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर कार्रवाई को तैयार है। इसके लिए बस सरकार के आदेश का इंतजार है।
पाकिस्तान ही नहीं चीन ने भी कब्जा किया हुआ है
31 अक्तूबर 2019 को भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर व लद्दाख केन्द्रशासित प्रदेशों सहित भारत का नया आधिकारिक मानचित्र जारी किया गया था। इन मानचित्रों में जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के उन भू-भागों को भी दिखाया गया जो पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में हैं। दुर्भाग्य से इससे पूर्व तक भारत के मानचित्र में जम्मू कश्मीर राज्य को एक रेखा द्वारा ही दिखाया जाता था जिसमें चीन और पाक अधिक्रांत क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं होता था।
सामान्य भाषा में जिसे कुछ समय पहले तक पाक अधिकृत कश्मीर अथवा पीओके के नाम से पुकारते थे, अब केन्द्र सरकार ने इसे पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया है। नये राज्य गठन के अनुसार पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर का संबोधन भी असंगत हो गया क्योंकि नयी अधिसूचना में गिलगित और बल्तिस्तान का क्षेत्र लद्दाख का हिस्सा है इसलिये आधिकारिक रूप से इसका संबंध जम्मू कश्मीर से समाप्त हो गया है। अतः इस भू-भाग को अब पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर कहना ठीक नहीं है।
इसी प्रकार लम्बे समय तक चीन अधिक्रांत जम्मू कश्मीर को भी गैर-जिम्मेदारना तरीके से पीओके कहा जाता रहा जिसका कोई आधार नहीं था। नये संदर्भ को ध्यान में रखते हुए अब भारत के उन क्षेत्रों को, जिन्हें पाकिस्तान अथवा चीन ने अधिक्रांत किया हुआ है, तीन नयी पहचान मिली हैं - (1) पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर, (2) पाकिस्तान अधिक्रांत लद्दाख, और (3) चीन अधिक्रांत लद्दाख।
पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी हमलावरों ने जम्मू कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। 26 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह द्वारा भारत में अधिमिलन के बाद भारतीय सेना राज्य में पहुंची और श्रीनगर घाटी का अधिकांश हिस्सा इन आक्रमणकारियों से खाली कराने में सफल रही।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार लागू युद्ध विराम के बाद भारतीय सेना का आगे बढ़ना रुक गया और जम्मू कश्मीर रियासत के अंतर्गत आने वाले जम्मू का मीरपुर और पुंछ तथा कश्मीर का मुजफ्फराबाद क्षेत्र पाकिस्तान के अवैध कब्जे में रह गया और आज तक बना हुआ है। पाकिस्तान ने इसे 'आजाद जम्मू कश्मीर' का नाम दिया और दिखावटी लोकतांत्रिक ढांचा खड़ा किया है।
पाक अधिक्रांत जम्मू कश्मीर का क्षेत्रफल 13,297 किमी है। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पश्चिम में स्थित इस भू-भाग की उत्तरी सीमाऐं गिलगित बल्तिस्तान से तथा दक्षिण व पश्चिम में पश्चिमी पाकिस्तान तथा ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा से लगती हैं। 555 किमी लंबी नियंत्रण रेखा इसे जम्मू कश्मीर से तथा 212 किमी गिलगित बाल्तिस्तान से जोड़ती है। पश्चिमी पंजाब और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा से क्रमशः 277 और 206 किमी सीमा रेखा इसे पाकिस्तान से अलग करती है।
पाकिस्तान अधिक्रांत लद्दाख
गिलगित-बल्तिस्तान भारत का उत्तर-पश्चिम सीमान्त इलाका है। इसके उत्तर में अफगानिस्तान का वाखन गलियारा, पश्चिम में पाकिस्तान का ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा, तथा पूर्व में चीन का शिनजियांग प्रांत हैं। हिंदुकुश, काराकोरम व पामीर के मध्य स्थित यह क्षेत्र पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान की सीमा को स्पर्श करता है। इसका क्षेत्रफल 72,971 वर्गकिमी है, जो पाकिस्तान द्वारा अधिक्रांत कुल क्षेत्रफल का लगभग 86 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह क्षेत्र पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के पाँच गुने से भी अधिक है।
पाकिस्तान के कब्जे से पहले यहाँ की प्रशासनिक व्यवस्था स्कर्दू की वजीरे-वजारत और गिलगित एजेन्सी के पास थी। पाकिस्तानी आक्रमण के समय यहां महाराजा की सेनाएं लम्बे समय तक संघर्ष करती रहीं किन्तु सहायता न पहुंच पाने के कारण अंततः उन्हें हथियार डालने पड़े। गिलगित में मेजर ब्राउन की संदिग्ध भूमिका के चलते पाकिस्तान को वहाँ नियंत्रण पाने का अवसर मिला किन्तु स्कर्दू में रियासती सेना 14 अगस्त 1948 तक संघर्षरत थी।
चीन द्वारा निर्मित 1300 किमी लम्बा कराकोरम राजमार्ग यहाँ से गुजरता है। हुंजा के निकट स्थित खुंजरब दर्रे को पार कर यह राजमार्ग ताशकुरगान नामक स्थान पर गिलगित-बल्तिस्तान में प्रवेश करता है। नगर, गिलगित, चिलास होता हुआ तथा सिंधु, गिलगित और हुंजा नदियों को पार करते हुए नंगा पर्वत के निकट से गुजर कर यह पाकिस्तान में प्रवेश करता है। राकापोशी, माशरब्रूम, नंगा पर्वत तथा के2 (गॉडविन ऑस्टिन) जैसे ऊंचे पर्वत शिखर यहाँ स्थित हैं।
यह मध्य एशिया को दक्षिण एशिया से जोड़ने वाला दुर्गम क्षेत्र है जो सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा जिसके द्वारा पूरे एशिया में प्रभुत्व रखा जा सकता है।
1970 में पाकिस्तान ने गिलगित एजेंसी, लद्दाख वजारत का बल्तिस्तान, हुन्जा तथा नगर नामक क्षेत्रों का विलय कर उत्तरी क्षेत्र (शुमाली इलाके जात) नामक यह प्रशासनिक इकाई बनाई। पाकिस्तान का दावा है कि यह क्षेत्र विवादित कश्मीर से अलग है, जबकि यूरोपीय संघ भी इसे भारत के जम्मू कश्मीर के वृहत क्षेत्र का ही हिस्सा मानता है।
चीन अधिक्रांत लद्दाख
ब्रिटिश नियंत्रण के समय जम्मू कश्मीर राज्य का विस्तार तिब्बत की सीमा तक था। यद्यपि उस समय लद्दाख को भी कुछ लोग लिटिल तिब्बत कहते थे और जम्मू कश्मीर के महाराजा भी अपनी पदवी में तिब्बत आदि देशाधिपति शब्द जोड़ते थे, किन्तु मोटे तौर पर इसमें अक्साईचिन और कैलाश-मानसरोवर का क्षेत्र था जो ऐतिहासिक रूप से हजारों वर्षों से राजनैतिक ही नहीं, सांस्कृतिक भारत के भी हिस्से थे।
चीन के साथ भारत के संबंध 1962 तक कथित रूप से सौहार्द्रपूर्ण थे इसलिये उस सीमा पर सेना तैनात करने का विचार भी भारतीय नेतृत्व को नहीं आया। किन्तु चीन कुटिलता से एक ओर हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे लगाता रहा, दूसरी ओर उसकी सेना मैकमहोन रेखा पार कर भारत में प्रवेश कर चुकी थी।
1958 में उसने तिब्बत के गरतोक से शिनजियांग तक सड़क का निर्माण कर लिया जो अक्साईचिन से गुजरती थी। भारत दोनों देशों की मित्रता से अभिभूत था और उसे सड़क के निर्माण का पता वर्षो बाद 1962 में चला जब कुछ जवान ट्रैकिंग के लिये इस क्षेत्र में गये।
20 अक्तूबर 1962 को चीनी सेना कराकोरम पास और पैंगोंग झील के निकट स्थित चौकियों से भारतीय क्षेत्र में तेजी से घुसी। भारत इसके लिये न मानसिक रूप से तैयार था और न सामरिक रूप से। चीन ने अक्साईचिन के 37,555 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और दैमचोक तथा पैंगोंग में अपने मोर्चे बना कर बैठ गये। उसने इसे पश्चिमी तिब्बत का भाग घोषित करते हुए शिजांग प्रांत कहना प्रारंभ कर दिया। तिब्बत ऑटोनॉमस रीजन की राजधानी ल्हासा यहां से पर्याप्त दूरी पर है और सड़क मार्ग समतल और अच्छा होने बावजूद यहाँ से ल्हासा तक पहुंचने में 11 दिन से अधिक का समय लगता है।
भारत का मानना है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन के साथ भारत की सीमा 1597 किलोमीटर है और पूरा अक्साईचिन भारतीय मानचित्र में होने के कारण इसके 38 हजार किमी भू-भाग पर चीन का अवैध कब्जा है। वहीं चीन का दावा है कि अक्साईचिन का केवल 33 हजार वर्ग किमी क्षेत्र उसके नियंत्रण में है जो कि निर्विवाद रूप से उसका है। चीन के अनुसार उसकी केवल 600 किमी सीमा पश्चिमी सेक्टर में भारत के साथ लगती है।
चीन जिसे पूर्व में वास्तविक नियंत्रण रेखा स्वीकार कर चुका है, उसे भी बदलने की निरंतर कोशिश करता रहता है। हाल ही में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष, जिसमें 20 भारतीय जवानों का बलिदान हुआ, उसके इसी प्रयास का परिणाम है। ऐसी घटनाएं वह पहले भी करता रहा है जिसके फलस्वरूप अनेक स्थानों पर उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे बढ़ कर अपनी चौकियां और सड़क बना ली हैं।
शक्सगाम घाटी
जम्मू कश्मीर के भारत में अधिमिलन के बाद 1947-48 में पाकिस्तानी आक्रमण के दौरान यह इलाका उसके कब्जे में चला गया और युद्ध विराम के बाद उसके नियंत्रण में ही रह गया। 1962 में चीन ने आक्रमण कर अक्साईचिन का 37555 वर्ग किमी क्षेत्र अपने कब्जे में ले लिया।
1963 में पाकिस्तान ने चीन के इसी तर्क को आधार बनाकर शक्सगाम घाटी और उसके आस-पास के क्षेत्र एक समझौते के अन्तर्गत चीन को सौंप दिये। हालाँकि पाकिस्तान के सैन्य शासक रहे अयूब खाँ ने बाद में उल्लेख किया कि यह मजबूरी का समझौता था और चीन समझौते से पहले ही शक्सगाम घाटी पर अधिकार कर चुका था।
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