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अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना कोई केजरीवाल से सीखे

By Mayank
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arvind-kejriwal
उन दिनों राजनीति का समुद्रमंथन हुआ था। सत्य, असत्य, सही, गलत, जैसे पहलू अपनी पहल में ना जाने कितने नियम-कायदों को बहाए लिए जा रहे थे। सरकार और अन्ना हजारे, फिर सरकार और अरविंद केजरीवाल। एक दौर की दूसरे दौर से जंग में न जाने कितने शब्द अमर हो गए। आंदोलन, अनशन, जैसे शब्दों ने तो महात्मा गांधी, बुद्ध जैसी अमरता पा ली।

आज बात यदि सिर्फ अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की की जाए,तो लगता है कि इससे कहीं ज्यादा ज़रूरी किसी और मुद्दे पर भी लिखा जा सकता था। कभी माहौल और मीडिया का हीरो रहे अरविंद केजरीवाल आज देश की राजनीति में इतने गैर-जरूरी हो चुके हैं कि उन पर लिखना, बोलना, ज़रूरी हो गया है। आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा पसंद था कि देश के बुद्धिजीवी उनकी पार्टी से जुड़ें, यही नुस्खा पार्टी में बगावत का कैंसर पैदा कर गया।

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मान लीजिए कि किसी क्लास में कुल 50 बच्चे हैं, और वे सभी टीचर के पढ़ाने से पहले ही एक सुर में बोल उठें कि ‘हमें सबकुछ आता है‘ तो भला टीचर क्या और क्यों पढ़ाएगा? ठीक वैसा ही ‘आप‘ में हुआ। सभी की अपनी तथाकथित योग्यताएं थीं, किसी ने किसी की भी बात मानना जरूरी नहीं समझा। ‘आम आदमियों‘ का आत्म सम्मान ही पार्टी के ‘आत्मअंत‘ का कारण बन गया।

दिल्ली विधानसभा चुनावों में ‘आप‘ की 28 सीटों पर शानदार जीत का सबसे बड़ा कारण जिस तरह अरविंद केजरीवाल थे उसी प्रकार लोकसभा चुनावों से लेकर अब तक पार्टी की नाकामियों की वजह अरविंद ही हैं। दरअसल उन्होंने सोचा कि अन्ना आंदोलन की बदौलत जिस तरह वे दिल्ली में बाजी मार ले गए उसी तरह देशभर में उनके नाम का डंका बज सकता है। यदि वह 100 सीटें निकाल भी लाए तो तीसरे मोर्चे की या फिर कांग्रेस की मदद से केन्द्र की गद्दी पर ‘टोपी‘ टांग देंगे।

केजरीवाल ने जब दिल्ली में जीत दर्ज की थी, उस वक्त उन पर लिखते हुए मैं खुद को उनके पक्ष में लिखने से संभाल रहा था और आज उनकी नाकामियां पिरोते हुए मुझे डर है कि पाठक मुझे उनका कट्टर विरोधी न समझ लें। जो केजरीवाल दिल्ली चुनावों से पहले देश के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते थे, लोकसभा चुनावों के दौरान उनका ध्यान सिर्फ गुजरात और गुजरात के ‘विकास‘ पर जा लगा। जब 438 में से 425 सीटों पर ‘आप‘ की जमानत जब्त हुई, तो अरविंद के सामने कड़वा ज़मीनी सच आ खड़ा हुआ।

लोकसभा चुनावों में अरविंद ने देश भर से उम्मीदवारी के आवेदन-पत्र मंगाए और हर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी विधानसभा क्षेत्रों से 100-100 लोगों के हस्ताक्षर प्रस्तावक के तौर पर मांगे गए। उम्मीदवारों ने जीतोड़ मेहनत की और आवेदन पत्र भेजे लेकिन तब उन्हें ठगा सा महसूस हुआ जब लगभग सारी प्रक्रिया फंडधारी उम्मीदवारों की मन-मर्जी से पूरी हुई। पार्टी में दूसरे दलों या दूसरे क्षेत्रों से एन वक्त पर आने वाले लोगों को टिकट दिए गए। इतना ही नहीं पार्टी के कई नेताओं पर टिकट बेचने के संगीन आरोप भी लगे।

आज अरविंद की छवि, हर दिन बयान बदलने वाले, सच्चाई हांकने वाले व मीठी भाषा में अपनी राजनैतिक अयोग्यता बयां करने वाले नेता जैसी बन चुकी है। आज वे नितिन गडकरी की मानहानि मामले में फंसे हुए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि जब-जब केजरीवाल से उनके लगाए गए आरोपों पर सबूत सहित नाम देने के लिए कहा गया, उनके पास बातों के अलावा कभी कुछ नहीं निकला।

बहरहाल, जिस ‘आप‘ को अपने गठन के बाद से लाखों, करोड़ों का चंदा मिल रहा था, वह मात्र कुछ रुपयों पर सिमट जाना दर्शाता है कि पार्टी के समर्थकों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। केजरीवाल के नेतृत्व में गठित की गई पार्टी देश को क्या नेतृत्व दे पाती, जब वह अपने ही सदस्यों को संगठित नहीं कर पाई।

आज मैंने इस लेख को भूत और भविष्य के आंकड़ों में इसलिए नहीं बांधा कि मुझे आम आदमी पार्टी के भविष्य पर न सिर्फ शक है साथ ही यह अफसोस भी है कि जो क्रांति केजरीवाल थोड़े से संयम और थोड़ी सी राजनैतिक सूझबूझ से ला सकते थे, वह उन्होंने थोड़ी सी जल्दबाजी और बहुत सी गलतियों से खो दी। आज वे इतिहास का एक कड़वा चैप्टर बन चुके हैं, जिसे पढ़ते वक्त जल्दी से पन्ने पलटने का मन करता है।

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English summary
Arvind Kejriwal came to make history but on the way to become history
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