क्या है गुजरात का पटेल आंदोलन- पढ़ें पूर्ण विवरण
गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन ने इतना बड़ा रूप लिया कि सूरत, अहमदाबाद और मेहसाणा में कर्फ्यू लगाने तक की नौबत आ गई। वहीं टीवी, सोशल मीडिया और दुनिया भर के अखबारों में हार्दिक पटेल छा गये। इन सबके बीच एक बड़ा सवाल उभरा- ये पटेल आंदोलन है क्या? क्यों ये लोग आंदोलन कर रहे हैं? चलिये जानते हैं गुजरात के पटेलों का इतिहास।
पटेल समुदाय का इतिहास
गुजरात में कृषि की बात आती है, तो सबसे पहले पटेलों का नाम आता है। असल में पटेल एक सर नेम है, जो पाटीदार समाज के लोग रखते हैं। इस समाज का गुजरात के विकास में योगदान जानने के लिये हम आपको अंग्रेजी हुकूमत में ले चलते हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान गुजरात में खेती से धन पैदा करने के लिये सरकार को दो समुदायों कनबी और को कोली पर निर्भर रहना होता था। दोनों का इस क्षेत्र में वर्चस्व हुआ करता था। बस फर्क था दोनों के काम करने के तरीके में।
एक समय था जब भारत सरकार कृषि से पैदा होने वाले धन पर सबसे ज्यादा निर्भर थी। जमीनदारी सिस्टम के अंतर्गत उस वक्त दोनों समुदायों ने जमकर योगदान दिया। समय के साथ-साथ दिशाएं बदल गईं। कनबी एक गांव को पकड़ लेते और उसे अच्छी तरह विकसित करते। वहीं कोली जमीन खरीदते, खेती करते और आगे बढ़ जाते। कनबी जमीनदारी तक सीमित रह गये और कोली अपना पुश्तैनी काम छोड़ कर अन्य क्षेत्रों में चले गये। असल में कनबी ही हैं, जिन्हें अब पाटीदार कहा जाता है और पाटीदारों का आधुनिक युग में सर-नेम पटेल है।
समय बदलता गया, गांव कस्बे में और कस्बे शहर में और शहर मेट्रो सिटीज़ में बदलते गये। जाहिर है इसका असर कृषि पर पड़ना ही था। खेती से काफी करीबी रिश्ता रखने वाले पटेल समाज के लोगों के लिये आर्थिक रास्ते बंद होने लगे। 21वीं सदी आते-आते पटेल समाज को कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। इसी समाज के बहुत सारे लोगों ने आर्थिक मजबूती प्राप्त की, वहीं तमाम ऐसे भी रहे, जिन्हें निराश होना पड़ा। जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को सरकारी क्षेत्रों में बड़े लाभ मिलने लगे। बस यहीं से पटेल समाज में भी आरक्षण की मांग महसूस हुई।
क्या है पटेल आंदोलन
जुलाई 2015 में शुरू हुआ वो आंदोलन है जो पाटीदार समाज को गुजरात में सरकारी नौकरियों व अन्य जगहों पर ओबीसी का स्टेटस चाहते हैं। गुजरात में 27 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिये रिजर्व हैं। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के लिये 15 प्रतिशत, जनजाति के लिये 49.5 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1992 से अधिकतम 50 प्रतिशत तक के आरक्षण की सीमा निर्धारित कर रखी है।
आंदोलन का इतिहास
1981 में कांग्रेस के नेतृत्व में गुजरात सरकार में मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने बक्शी आयोग की सिफारिश पर समाज के पिछड़े लोगों के लिये आरक्षण की नीति लागू की। उसके लिये नई कैटेगरी एसईबीसी (सोशली एंड इक्नॉमिकली बैकवर्ड कास्ट)। इसके परिणामस्वरूप प्रदेश भर में आंदोलन हुए और 100 से ज्यादा लोग मारे गये।
1985 में सोलंकी ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन क्षत्रिय, हरीजन, मुसलमानों और आदिवासियों के समर्थन पर वे फिर से सत्ता में आये। उसी दौरान इन समुदायों के विपरीत खड़े पाटीदारों का राजनीतिक वर्चस्व कम होने लगा। और सरकार ने आगे चलकर उसी एसईबीसी को ओबीसी के अंतर्गत रख दिया। 2014 आते-आते इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले समुदायों की संख्या 81 से बढ़कर 146 हो गई, लेकिन पटेल समुदाय को इसमें शामिल नहीं किया गया।
गुज्जरों से मिली प्रेरणा
मई 2015 में राजस्थान में गुज्जर आंदोलन से पटेल समुदाय ने प्रेरणा ली और एक जुट होकर बड़े आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी। खास बात यह है कि इस आंदोलन की तैयारी में महज दो महीने लगे। जुलाई में इस आंदोलन की नींव रखी गई और अगस्त में इसने व्यापक रूप ले लिया। इतना व्यापक की राज्य सरकार की हालत पस्त हो गई।
कौन-कौन है इस आंदोलन में?
- आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हार्दिक पटेल। (जानिए कौन हैं हार्दिक पटेल?)
- इस आंदोलन में शिरकत करने वाले सबसे ज्यादा पाटीदार समुदाय के युवा हैं।
- आंदोलन में शामिल होने वाले लगभग सभी लोगों का सर-नेम पटेल है।
- सरदार पटेल सेवा दल के कार्यकर्ता।
- पाटीदार अनमत अंदोलन समिति के कार्यकर्ता। (इसका निर्माण सेवा दल ने ही किया है।)
- लालजी पटेल, के नेतृत्व वाला सरदार पटेल ग्रुप।
- पाटीदार संकलन समिति के लोग।
- पाटीदार आरक्षण समिति के कार्यकर्ता।
- खोडलधाम ट्रस्ट के लोग (ये लोग सरकार और आंदोलनकारियों के बीच दूत का काम कर रहे हैं)।
तारीखों में पटेल आंदोलन
- 6 जुलाई 2015: मेहसाणा से आंदोलन शुरू हुआ।
- 22 जुलाई 2015: माणसा में आरक्षण आंदोलन से जुड़ा बड़ा प्रदर्शन।
- 23 जुलाई 2015: विसनगर में प्रदर्शन हुआ, जिसमें हिंसा भड़की। भाजपा विधायक ऋषिकेश पटेल के कार्यालय, वाहनों को आग लगाई गई।
- 28 जुलाई 2015: वीजापुर में बड़ा प्रदर्शन हुआ। इसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचे।
- 28 जुलाई 2015: मेहसाणा में बड़ा प्रदर्शन हुआ, जिसमें 152 लोगों की गिरफ्तारियां हुईं।
- 30 जुलाई 2015: लुनावडा में प्रदर्शन हुआ, जिसमें झड़प के बाद बल प्रयोग करना पड़ा।
- 1 अगस्त 2015: देवभूमि द्वारका में प्रदर्शन हुआ, जो सोशलमीडिया में छा गया।
- 3 अगस्त 2015: गांधीनगर, नवासारी, जामनगर, हिम्मतनगर और अमरेली में प्रदर्शन हुए।
- 5 अगस्त 2015: राजकोट में बड़ा प्रदर्शन।
- 10 अगस्त 2015: अमरेली में बड़ा प्रदर्शन।
- 12 अगस्त 2015: जूनागढ़ में प्रदर्शन।
- 17 अगस्त 2015: पेटलाद में प्रदर्शन। सूरत में भी प्रदर्शन हुआ जिसमें 1 लाख लोग तक आये।
- 17 अगस्त 2015: हीरा उद्योग, स्कूल कॉलेज, आदि बंद कर दिये गये।
- 21 अगस्त 2015: सुरेंद्रनगर में प्रदर्शन हुआ।
- 21 अगस्त 2015: भरूच, अंकलेश्वर और वड़ोदरा में प्रदर्शन हुए।
- 25 अगस्त 2015: अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में क्रांति रैली का आयोजन किया गया। इसमें 5 लाख लोग पहुंचे।
- 26 अगस्त 2015: आंदोलन के चलते गुजरात बंद। कई शहरों में छिटपुट हिंसा की खबरें आयीं।
रैली के बाद हिंसा
जीएमडीसी मैदान में रैली में हार्दिक पटेल ने अनशन की बात कही और उसके बाद जब जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञापन देने की बात आयी, तो एक वर्ग था, जो मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन देना चाहता था। वो चाहते थे कि मुख्यमंत्री खुद आकर ज्ञापन स्वीकार करें। माहौल गर्म होने लगा तो हार्दिक पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके बाद रैली स्थल से ले जाया गया। लोगों को लगा पुलिस ने हार्दिक को गिरफ्तार कर लिया और हिंसा भड़क गई। गुजरात के कई जिलों से हिंसा की खबरें आयीं। कई जगह कर्फ्यू तक लगाने पड़ा। और कई जगह धारा 144 लागू करनी पड़ी। यही नहीं सरकार को अहमदाबाद में इंटरनेट तक बंद करना पड़ा।
अन्य समुदायों को भी चाहिये आरक्षण
गुर्जर आंदोलन से जब पटेल प्रेरित हुए और नौबत यहां तक आ गई, तो अन्य समुदायों के लोगों ने भी आरक्षण की मांग शुरू कर दी है। उनमें ब्राह्मण, ठाकोर, वैश्णव, राजपूत, सिंधी, कंसारा, सोनी और रघुवंशी शामिल हैं। ये चाहते हैं कि उन्हें भी इसी प्रकार आरक्षण दिया जाये।