आंखों में हजार सपने लेकिन जेब में महज 6 रुपये, कुछ ऐसा था गजराव राव का फर्श से अर्श का सफर
बॉलीवुड अभिनेता गजराज राव ने अपने करियर के शुरूआती दिनों को याद किया और बताया कि उन्होंने उस वक्त किन मुसीबतों का सामना किया।
मुंबई, 24 सितंबर: बॉलीवुड अभिनेता आयुष्मान खुराना की अधिकतर फिल्मों में सपोर्टिंग रोल में दिखने वाले गजराज राव एक बेहतरीन अदाकार हैं। अधिकतर लोग नहीं जानते कि गजराज राव की फिल्मी करियर 90 के दशक में फिल्म बैंडिट क्वीन से शुरू हुआ था। इससे पहले तक उन्होंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह की सफलता की ऊंचाई पर बैठे गजराज राव का फिल्मी सफर किन मुश्किल दौर से गुजरा।
गजराज राव करते थे टेलरिंग का काम
गजराज राव के फिल्मी सफर की शुरूआत से पहले तक उन्होंने कई छोटी-मोटी नौकरी कर अपना गुजारा किया। जिनमें टेलरिंग और स्टेशनरी की दुकान पर मामूली सेल्समेन की नौकरी शामिल थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि वर्ष 1999 में गजराज राव हिंदुस्तान टाइम्स के लिए लिखते थे। इतना ही नहीं उस दौर में उन्होंने सिनेमा जगत की कई मशहूर हस्तियों जैसे कि महमूद, उत्पल दत्त और प्रसिद्ध निर्देशक यश चोपड़ा का इंटरव्यू कर चुके थे।
'मेरी जिंदगी काफी मुश्किल भरी रही'
एक इंटरव्यू के दौरान गजराज राव ने अपने फिल्मी सफर के बारे में बातचीत करते हुए बताया कि, 'मैंने अपने जीवन में बहुत धक्के खाए हैं। मेरी जिंदगी कभी भी प्लान तरीके से नहीं रही। क्योंकि हर चीज आपके हाथ में नहीं होती। इसलिए गुजारा करने के लिए आपको इस तरह के छोटे-बड़े काम करने पड़ते हैं। लेकिन, मुझे इनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिला। इसलिए मैं अक्सर यह कहता भी हूं कि मेरी जिंदगी मुश्किलों से भरी थी लेकिन मेरे अंदर हमेशा से एक आग रही कि मुझे अपने लिए और अपने परिवार के लिए कुछ बड़ा करना है'।
दिल्ली के रहने वाले हैं गजराज राव
गजराज राव मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले हैं लेकिन अपने करियर की शुरूआत के समय में अक्सर काम ढूंढने के लिए जाते रहते थे। अपने उन दिनों को याद करते हुए जब गजराज ने बताया कि, एक समय था जब मेरी जेब में महज 6 रुपये थे तब गुजारा करने के लिए मैंने दोस्तों से मदद ली थी।
'जेब में महज 5 से 6 रुपये थे और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि...'
गजराज राव ने आगे बताया कि, 'मुंबई शिफ्ट होने से पहले जब मैं काम की तलाश में मुंबई आता था तो पैसों की कमी होने की वजह से अक्सर अपने एक दोस्त के घर पर महीनों-महीनों रुकता था और वहीं पर स्क्रिप्ट लिखता था। एक समय ऐसा आया जब मेरे सारे पैसे खत्म हो गए थे। मैं अंधेरी से वर्ली अपनी एक स्क्रिप्ट सुनाने के लिए गया हुआ था लेकिन वो स्क्रिप्ट रिजेक्ट हो गई। जेब में महज 5 से 6 रुपये थे और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं'।
जब गजराज राव के पास घर जाने के नहीं थे पैसे
गजराज राव आगे कहते हैं कि, 'अगर मैं लोकल ट्रेन लेकर घर जाता तो वो 6 रुपये उसमें खर्च हो जाते ऐेसे में मेरे पास कुछ खाने के पैसे नहीं बचते। मुझे उम्मीद थी कि मेरी स्क्रिप्ट फाइनल हो जाएगी जिससे मुझे कुछ पैसे एडवांस में मिल जाएंगे। लेकिन जैसा मैंने कहा कि, जिंदगी में चीजें हमेशा वैसी नहीं होती जैसी आप चाहते हैं। उस दिन मेरी आंखों में आंसू आ गए कि अब मैं क्या करूं'।
जब गजराज को दोस्त से लेने पड़े पैसे
गजराज राव ने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए बताया कि कैसे उन्होंने दिल्ली वापस जाने के लिए अपने एक दोस्त से 500 रुपये उधार लिए। उन्होंने अपनी पूरी कहानी अपने दोस्त को बताई जिसके बाद उनके दोस्त ने उनको 500 रुपये दिए। उस समय यह एक बड़ी रकम होती थी। उन्हें शर्मिंदगी भी हो रही थी कि क्या स्थिति आ गई है मेरी कि मुझे यह सब करना पड़ रहा है।
जब गजराज से प्रोड्यूसर ने किया था वादा
गजराज राव आगे कहते हैं कि 'इससे मैंने सीखा कि मुझे इतनी जल्दी किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह प्रोड्यूसर जिसने मुझे फोन पर यह कहकर बुलाया था कि चिंता मत करो अगर स्क्रिप्ट रिजेक्ट भी हो गई तो मैं कुछ ना कुछ जरूर करूंगा, वह भी अपनी बात से पलट गया'।
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