मीसाबंदियों पर कोर्ट के फैसले के बाद सियासी तकरार, कांग्रेस बोली-राजद्रोही हैं मीसाबंदी
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रायपुर, 25 जनवरी। मीसाबंदियों की पेंशन बहाली करने सम्बंधी हाइकोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से इंदिरा गांधी सरकार के कार्यकाल के दौरान 1975 में लगे आपातकाल पर बहस छिड़ गई है। भाजपा मीसाबंदियों के पक्ष में आये फैसले को बड़ी जीत बता रही है, तो वहीं कांग्रेस मीसाबंदियों को राजद्रोही बताते हुए ,खुद को धान संग्राम सैनानी बता रही है।
कोर्ट का फैसला सरकार के लिए सबक:डॉ रमन सिंह
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मीसाबंदियों की पेंशन बहाली को ऐतिहासिक जीत बताते हुए कहा है कि कोर्ट के फैसले से दूध का दूध पानी का पानी हो गया है।उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की डबल बेंच जो फैसला सुनाया है वह प्रजातंत्र की जीत है और सरकार के लिए बड़ा सबक है। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने कहा कि आपातकाल के समय 19 महीने जेल में रहे मीसाबंदियों से उनका व्यवसाय, रोजी-रोटी छीन गई थी, उनको राहत देने के लिए 2008 में भाजपा सरकार ने मानदेय की राशि पेंशन के जरिए मीसाबंदियों के जीवन में एक बेहतरी लाने का प्रयास किया था। पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह ने बघेल सरकार को तानाशाह बताते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने तानाशाही चलाते हुए मीसाबंदियों की पेंशन रोक दी थी।
नैतिकता का सवाल अब भी खड़ा ,मीसाबंदियो ने किया था राजद्रोह: कांग्रेस
मीसाबंदियों की पेंशन को एक बार फिर से बहाल करने संबंधी हाईकोर्ट के फैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी फैसले का स्वागत करते हुए इसे प्रजातंत्र की जीत बता रही है। वहीं अदालत के फैसले पर कांग्रेस का अपना अलग दृष्टिकोण है। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कांग्रेस पार्टी की तरफ से जारी किए गए अपने बयान में कहा कि हाइकोर्ट ने भले ही मीसाबंदियों की पेंशन बहाल करने का फैसला दिया हो,लेकिन नैतिकता का सवाल अब भी खड़ा हुआ है। शुक्ला ने कहा कि मीसाबंदियों ने एक दल विशेष के एजेंडे के तहत देश की लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाकर राजद्रोह किया था, इसलिए उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सैनानी के बराबर दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
सुशील
आनंद
शुक्ला
ने
आपातकाल
के
दौरान
इंदिरा
सरकार
के
खिलाफ
आंदोलन
चलाने
वाले
मीसाबंदियों
को
भाजपा
की
तरफ
से
लोकतंत्र
सैनानी
माने
जाने
कहा
कि
अगर
एक
दल
विशेष
के
मुद्दे
को
लेकर
आंदोलन
चलाने
वालों
को
अगर
पेंशन
देने
की
परंपरा
है
,तब
विपक्ष
में
रहते
हुए
धान
के
समर्थन
मूल्य
के
लिए
आंदोलन
चलाने
के
कारण
कांग्रेस
के
लोगो
को
भी
धान
संग्राम
सैनानी
मानकर
पेंशन
देनी
चाहिए।
सुशील
आंनद
शुक्ला
ने
आगे
कहा
कि
आरएसएस
का
एजेंडा
चलाने
वाले
मीसाबंदियों
को
पेंशन
देना
जनता
के
पैसे
का
दुरुपयोग
है।
बिलासपुर हाईकोर्ट ने सुनाया है मीसाबंदियो के पक्ष में फैसला
बिलासपुर हाईकोर्ट ने मीसाबंदियों के हक़ में निर्णय लेते हुए मीसाबंदियों को पेंशन की सुविधा देने का आदेश सुनाया है। मंगलवार को चीफ़ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने मीसाबंदियों को अपने निर्णय से बड़ी राहत दी है। इससे पहले सिंगल बेंच ने भी मीसाबंदियों को राहत दी थी और उनके हक में फैसला सुनाया था,जिसके खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार ने डबल बेंच में अपील की थी।
बीते दिनों मामले में बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। गौरतलब है कि तीस से ज्यादा मीसाबंदियों ने अदालत में पेंशन की मांग को लेकर याचिका लगाई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि छत्तीसगढ़ में भाजपा शासन काल मे इन मीसाबंदियों को पेंशन की सुविधा दी जा रही थी ,लेकिन सरकार बदलने के बाद इसे बंद कर दिया गया था ,जिसके खिलाफ मीसाबंदियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ शासन के 2020 में जारी नोटिफिकेशन कोरद्द करते हुए 2008 के सम्मान निधि अब फिर से लागू के आदेश दिए हैं । छत्तीसगढ़ सरकार ने भौतिक सत्यापन और समीक्षा के नाम पर 2019 से मीसाबंदियों के पेंशन पर रोक लगा दी थी ।
कौन हैं मीसाबंदी ?
इंदिरा गांधी सरकार के समय देश में 1975 में लगे आपातकाल के दौरान कानून मीसा लागू किया गया था। इस कानून का विरोध करके जेल जाने वाले लोगो को मीसाबंदी कहा जाता है। आपातकाल के दौरान मीसा कानून का विरोध करने के कारण उन्हें लोकतंत्र सेनानियों का दर्जा भी दिया गया था, लेकिन कई गैरभाजपा शासित राज्यों में मीसाबंदियों की पेंशन रोक दी गई हैं ।
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