बिहार के मजदूरों को पहले समझा बोझ, अब जरूरत पड़ी तो करने लगे खुशामद
पटना। बिहार के मजदूरों को अपमानित कर भगाने वाले विकसित राज्य अब इनसे रुकने की चिरौरी कर रहे हैं। हाथ जोड़ कर निवेदन कर रहे हैं। और तो और इनको रोकने के लिए छल-बल का भी प्रयोग कर रहे हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने अपने कंस्ट्रक्शन सेक्टर को बचाने के लिए बिहारी मजदूरों से रुकने की विनती की। जब मजदूरों ने रुकने से इंकार कर दिया तो बेंगलुरु से खुलने वाली 10 ट्रेनों को रद्द करा दिया गया, हालांकि इस पर बवाल होने पर उन्होंने घर वापसी के लिए ट्रेन चलाने की मंजूरी दे दी। इससे यह भी पता चलता है कि बिहार के मजदूर विकसित राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए कितने जरूरी हैं। पंजाब, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के आर्थिक विकास में बिहार के मजदूरों का बहुत बड़ा योगदान है। कोरोना संकट से निबटने के लिए जब देश में लॉकडाउन लागू हुआ तो अन्य राज्यों में काम कर रहे बिहारी मजदूरों के साथ अच्छा सलूक नहीं हुआ। उनकी रोजी छिन गयी और कोई आसरा न रहा तो वे घर भागने लगे। पंजाब और तेलंगाना में मजदूरों की कमी पहले से थी। नौबत ये आ गयी कि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करनी पड़ी।
बिहारी मजदूरों पर टिका भवन निर्माण
कर्नाटक में भाजपा की सरकार ने बिहारी मजदूरों के मामले में गिरगिट की तरह रंग बदला। 24 मार्च से जब लॉकडाउन लागू हुआ तो कार्नाटक को बिहारी मजदूर बोझ लगने लगे। येदियुरप्पा सरकार ने पहले बिहारी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने की मांग की थी। लेकिन जब बिल्डर एसोसिएशन ने सरकार से मजदूरों के पलायन को रोकने की मांग की तो विशेष ट्रेन चलाने के प्रस्ताव को वापस ले लिया गया। बिल्डर्स एसोसिएशन ने कर्नाटक सरकार को बताया था कि जब भवन निर्माण का काम शुरू होगा तो इन प्रवासी मजदूरों की बहुत जरूरत पड़ेगी। अगर ये चले गये तो मजदूरी महंगी हो जाएगी और लागत मूल्य बढ़ जाएगा। इसके बाद कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को खुलने वाली 10 स्पेशल ट्रेनों को रद्द करने की सिफारिश कर दी। हालांकि इस पर बवाल होने पर उन्होंने घर वापसी के लिए ट्रेन चलाने की मंजूरी दे दी।
पंजीकृत मजदूरों को सरकार कई तरह की सहायता
मजदूर बेंगलुरू में रुकना नहीं चाहते थे। उन्होंने कर्नाटक सरकार के इस फैसले के विरोध में हंगामा कर दिया। कर्नाटक में बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के हितों की सुरक्षा के लिए एक वेलफेयर बोर्ड बना हुआ है। इसमें पंजीकृत मजदूरों को सरकार कई तरह की सहायता देती है। लेकिन बेंगलुरू और अन्य शहरों में करीब 1.40 लाख ऐसे भी मजदूर हैं जो असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और वे वेलफेयर बोर्ड से पंजीकृत भी नहीं हें। ये मौसमी मजदूर हैं जो बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों से आते हैं। कुछ समय तक काम करते हैं और जब मन करता है घर लौट जाते हैं। बिहार का श्रमिक बल बेंगलुरू जैसे आधुनिक शहर के लिए सस्ता है। इसलिए इनकी बहुत मांग रहती है। अब जब ये घर लौट रहे हैं तो कर्नाटक के बिल्डरों में हायतौबा मच गयी है।
पंजाब में खेती की जान हैं बिहारी मजदूर
पंजाब की खेती बिहारी मजदूरों पर निर्भर है। यहां सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के मजदूर काम करते हैं। संख्याबल के हिसाब से बिहारी मजदूरों का स्थान दूसरा है। पंजाब में 25 मार्च के आसपास गेहूं की कटनी शुरू होती। इसके लिए करीब 8 लाख मजदूर हर साल पंजाब आते हैं। मार्च महीने में पूर्वी भारत से पंजाब आने वाली ट्रेनों में मजदूर भरे रहते हैं। उस समय पंजाब के रेलवे स्टेशनों पर किसानों का जमावड़ा लगा रहता है। जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर पहुंचती है किसान मजदूरों के समूह को आरक्षित करने के लिए आपाधापी मचा देते हैं। 10 मार्च को होली थी। 24 मार्च से लॉकडाउन शुरू हो गया। इसकी वजह से पंजाब में बाहरी मजदूर नहीं आ सके। जो पहले से थे, वे घर जाने के लिए उतावले होने लगे। गेहूं की फसल पक कर तैयार थी लेकिन मजदूरों का अकाल पड़ गया। तब 31 मार्च 2020 को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन कर इस मामले में मदद मांगी। उन्होंने नीतीश से कहा कि वे बिहार के मजदूरों से पंजाब में रुकने की अपील करें। इतना ही उन्होंने यह भी कहा कि जब लॉकडाउन खत्म हो जाए तो वे अपने राज्य से मजदूरों को भेज भी सकते हैं जिसका पंजाब स्वागत करेगा। पंजाब की मूल चिंता धान की खेती को लेकर हैं। वहां धान की खेती पूरी तरह बिहारी मजदूरों पर टिकी है।
तेलंगाना की चावल मिलों को संभालते हैं बिहारी
तेलंगाना की चावल मिलों में 95 फीसदी मजदूर बिहार के हैं। वे धान सुखाने और चावल कूटने में पारंगत हैं। उत्तम चावल तैयार में उनकी दक्षता मददगार होती है। मार्च महीने में ही तेलंगाना के मुख्य सचिव सोमेश कुमार ने बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी से बात की थी और चावल मिलों में काम करने वाले मजदूरों को वापस भेजने का अनुरोध किया था। ये मजदूर होली की छुट्टी में घर आये हुए थे और उनको लौटने में देर हो रही थी। तेलंगाना ने इस बार किसानों से धान की रिकॉर्ड खरीद की है। इस धान से चावल तैयार करने के लिए बिहारी मजदूरों की बहुत जरूरत है। तब वहां के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा था कि अगर बिहार से मजदूर समय पर नहीं आते हैं तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी। लेकिन अब बिहार के मजदूर अपने साथ हुए अन्याय से नाराज हैं। उनका कहना है, बिहार के श्रम बल की योग्यता और महत्ता निर्विवाद है, फिर भी उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया जाता।
यह भी पढ़ें: कोरोना संकट को लेकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने की मुलाकात