Bihar Politics: कौन हैं उपेंद्र कुशवाहा जिन्होंने CM नीतीश कुमार की शराबबंदी पर उठाए सवाल ?
Bihar Politics: बिहार के वैशाली जिले के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने 2014 के चुनाव में अपने कोटे से सभी सीटों पर जीत दर्ज कर खूब सुर्खियां बटोरी थी। उसके बाद अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता...
Bihar Politics: बिहार में शराबबंदी पर विपक्षी दलों के नेता तो सवाल उठा ही रहे हैं। वहीं अब पक्ष के नेता भी शराबबंदी तो फेल बता रहे हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि प्रदेश में शराबबंदी को लेकर सीएम नीतीश कुमार की पार्टी के ही नेता उपेंद्र कुशवाहा ने सवाल खड़े कर दिए हैं। उपेंद्र कुशवाहा (राष्ट्रीय अध्यक्ष, संसदीय बोर्ड, जदयू) ने कहा कै कि सरकार के कह देने शराबंबदी कामयाब नहीं हो जाती है। हाल ही में यह बयान उन्होंने वैशाली जिले के महुआ स्थित एक गांव में दिया था।
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उपेंद्र कुशवाहा ने शराबबंदी को बताया असफल
उपेंद्र कुशवाहा ने शराबबंदी को असफल बताते हुए कहा कि इसे कामयाब बनाने के लिए जनता को भी मदद करना होगा। जनका नहीं चाहेगी तो शराबंबदी कामयाब नहीं होगा। वहीं उन्होंने शराबबंदी से समाज को फायदा पहुंचने की भी बात कही थी। उन्होंने कहा था कि शराबबंदी जितना कामयाबी होगी, समाज को उतना ही फ़ायदा पहुंचेगा। बहरहाल उपेंद्र कुशवाहा के बयान से सियासा पारा चढ़ चुका है। इसी कड़ी में हम आपको उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक सफर से रूबरू करवाने जा रहे हैं।
2014 में उपेंद्र कुशवाहा ने बटोरी सुर्खियां
बिहार के वैशाली जिले के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने 2014 के चुनाव में अपने कोटे से सभी सीटों पर जीत दर्ज कर खूब सुर्खियां बटोरी थी। उसके बाद अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जदयू में विलय करा दिया । उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी राजनीतिक कैरियर में काफी उतार चढ़ाव देखा फिल्हाल वह जदयू के दिग्गज नेताओं में शुमार किए जाते हैं। ग़ौरतलब है कि उपेंद्र कुशवाहा शुरू में नीतिश कुमार के खिलाफ ही सियासी चाल चलते हुए नज़र आते थे। खुले मंच से नीतिश कुमार का विरोध भी करते रहे। जदयू से पहली बार JDU से अलग होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने 'नव निर्माण मंच' की नींव रखी थी। फिर उन्होंने शरद पवार की पार्टी एनसीपी का दामन थाम लिया था। 3 मार्च 2013 को उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की नींव रखी थी। यह तो उनके बारे में छोटी सी जानकारी आपको बताई। अब हम आपको उनके बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं।
1985 में की सियासी सफर की शुरुआत
उपेंद्र कुशवाहा के बारे में बहुत कम लोग को यह जानकारी है कि वह सियासत से पहले शिक्षक की भूमिका में थे। उन्होंने राजनीति विज्ञान में मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी से एमए किया है। इसके साथ ही बतौर लेक्चरर समता कॉलेज में वह छात्रों को राजनीति विज्ञान पढाते थे। कर्पूरी ठाकूर से प्रेरित होकर उन्होंने साल 1985 में सियासी सफर की शुरुआत की। लोकदल से राजनीति में क़दम रखते हुए उन्होंने युवा राज्य महासचिव (लोकदल) की 1985 से 1988 तक ज़िम्मेदारी निभाई। उपेंद्र कुशावाहा ने अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी अंजाम दिया जिसके बाद पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी उन्हें सौपी। 1988 से 1993 तक वह राष्ट्रीय महासचिव की ज़िम्मेदारी निभाते रहे।
बुलंदियों की सीढियों पर चढ़ते गए कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा बुलंदियों की सीढियों पर चढ़ते ही चले गए, 1994 में उन्हें समता पार्टी के महासचिव की ज़िम्मेदारी मिली। 1995 में समता पार्टी की टिकट पर जंदाहा विधानसभा सीट से उन्होंने चुनावी बिगुल फूंका लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। लेकिन इस दौरान उनकी नज़दीकी नीतीश कुमार से बढ़ी। साल 2000 से 2005 तक वह बिहार विधान सभा के सदस्य रहे। इसके साथ ही विधान सभा के उप नेता और नेता प्रतिपक्ष भी भूमिका निभाई। फरवरी 2005 (जंदाहा) और नवंबर 2005 में (दलसिंहपुर) विधानसभा सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पार्टी में उपेंद्र कुशवाहा की पकड़ देख कर चर्चा थी कि उन्हें नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री पद मिलेगा, लेकिन यह ऐसा नहीं हुआ।
उपेंद्र कुशावाहा ने बनाई नीतीश से दूरी
नीतीश सरकार में मंत्री पद नहीं मिलने के बाद उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार के बीच तकरार शुरू हो गया। फिर कुछ दिनों तक उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का दामन थामा लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा 2009 में फिर से जदयू का दामन थामा और 2010 में सांसद की चुने गए। इस तरह वह सियासी गलियारों में अपनी पहचान बनाते चले गए।
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की स्थापना
3 मार्च 2013 को उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की स्थापना की। अपनी पार्टी की घोषणा के साथ ही अनावरण में ऐतिहासिक रैली कर बिहार की सुर्खियों में छा गए। 2014 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी (आरएलएसपी) एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनी। उस वक्त पूरे देश में मोदी की लहर थी, इसी लहर में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने बिहार में अपने कोटे से मिली तीनों सीट (सीतामढ़ी, काराकट और जहानाबाद) जीत दर्ज कर नया रिकॉर्ड कायम कर दिया।
कुशवाहा ने किया एनडीए गठबंधन से किनारा
एनडीए गठबंधन में सबकुछ ठीक ही चल रहा था लेकिन वक्त की बाज़ी पलटी और एनडीए गठबंधन से उपेंद्र कुशवाहा ने किनारा कर लिया। दरअसल 2014 में मोदी सरकार में उन्हें ग्रामीण विकास, पंचायती राज, पेय जल और स्वच्छता मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई थी। नवंबर कैबिनेट का फेरबदल होने की वजह से उपेंद्र कुशवाहा का विभाग बदल कर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई। लेकिन उन्होनें अपने पद से इस्तीफ़ा देते हुए एनडीए गठबंधन से भी किनारा कर लिया। इसके बाद वह अपनी पार्टी के एजेंडे पर बिहार का सियासी पारा चढ़ाते रहे।
RLSP का JDU में हुआ विलय
2019 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा और उनकी पार्टी की ज़बरदस्त हार हुई। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने तीसरा मोर्चा तैयार कर खुद को सीएम प्रत्याशी तक बता दिया लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। कुशवाहा कोयरी समुदाय की सियासत करते हुए उन्होंने नई सियासी चाल चली और 2021 में राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी का जदयू में विलय कर लिया। अब वह अपनी ही पार्टी की कार्यशैली को सवालों के घेरे में खड़ा कर रहे हैं, जिसेस प्रदेश का सिया पारा चढ़ चुका है।
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