रामविलास के मन में है CM न बन पाने की कसक, जलाये बैठे हैं उम्मीदों का ‘चिराग’
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राम विलास पासवान दिग्गज नेता होते हुए भी कभी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाये। उनसे जूनियर लालू यादव और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गये लेकिन सीएम मटेरियल होने के बाद भी रामविलास पासवान यह पद नहीं पा सके। इसकी कसक उनके मन में हमेशा रही। चूंकि अब उन्होंने खुद को 'भूतकाल’ (पास्ट) मान लिया है इसलिए अब वे अपना सपना पुत्र चिराग पासवान की आंखों से देखने लगे हैं। उन्हें भरोसा है कि भविष्य में एक न एक दिन चिराग पासवान बिहार का मुख्यमंत्री बनेंगे। रामविलास पासवान जानते हैं कि नीतीश कुमार के रहते अभी बिहार में कोई और सीएम चेहरा नहीं बन सकता इसलिए उन्होंने चिराग के लिए भविष्य का सपना देखा है। पासवान ने कहा भी है कि मेरी इस बात का मतलब 2020 के चुनाव से नहीं है। बिहार में अभी तक केवल तीन ही दलित नेता मुख्यमंत्री बन पाये हैं- भोला पासवान शास्त्री (तीन बार), रामसुंदर दास और जीतन राम मांझी। तो क्या चिराग पासवान भविष्य में बिहार का सीएम बन कर इस कड़ी को आगे बढ़ा पाएंगे ? रामविलास पासवान को राजनीति का 'मौसम वैज्ञानिक’ कहा जाता है। उन्होंने अगर कोई भविष्यवाणी की है तो इसे हंसी में नहीं उड़ाया जा सकता।
जब 1990 में चूक गये रामविलास
रामविलास पासवान के राजनीतिक जीवन में दो ऐसे मौके आये जब वे बिहार के सीएम बन सकते थे। लेकिन नहीं बने। उनका कहना है कि वे सीएम नहीं बनना चाहते थे, इसलिए नहीं बने। लेकिन हकीकत ये है कि वे कई मौकों पर इस पद के लिए इच्छा जाहिर कर चुके हैं। सीएम नहीं बन पाने का दर्द कई मौकों पर छलक कर बाहर भी आया। जून 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की पटना में जयंती मनायी जा रही थी। इस कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे। नीतीश कुमार की मौजूदगी में ही रामविलास पासवान ने कहा था कि 1990 में वीपी सिंह उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। पासवान के मुताबिक, वीपी सिंह ने मुझे बिहार जाने के लिए कह भी दिया। लेकिन मैंने मना कर दिया। तब उन्होंने रामसुंदर दास के नाम को मंजूरी दी। लेकिन कहा जाता है कि उस समय देवीलाल की दखल के कारण रामविलास और रामसुंदर दास दोनों का खेल बिगड़ गया था। तब तक देवीलाल और वीपी सिंह में लड़ाई शुरू हो गयी थी। देवी लाल को ये मंजूर नहीं था कि वीपी सिंह का कोई आदमी बिहार का मुख्यमंत्री बने। देवीलाल ने पिछड़े और अन्य विधायकों को गोलबंद कर लालू यादव का नाम आगे कर दिया। शरद यादव भी देवीलाल के साथ मिल गये। फिर तो लालू यादव ने आगे बढ़ कर खुद मोर्चा संभाल लिया और सांसद रहते मुख्यमंत्री बन गये। इस तरह रामविलास सीएम बनने से चूक गये।
2015 में रामविलास का इशारा
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ रहे थे। नीतीश कुमार लालू यादव के साथ थे। उस समय बिहार एनडीए ने किसी को सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया था। नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा रहा था। इस मौके पर रामविलास पासवान ने 2005 की एक कहानी सुना कर सीएम बनने की चाहत प्रगट की थी। 23 अगस्त 2015 को रामविलास पासवान ने एएनआइ को दिये एक बाइट में कहा था, अटल जी (2005) मुझे बिहार का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। उनके आवास पर एक बैठक हुई थी। इस बैठक में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव, यशवंत सिन्हा, नीतीश कुमार शामिल थे। मैं भी था। बैठक में बिहार के भावी मुख्यमंत्री के नाम पर चर्चा चल रही थी। सभी लोगों ने अपनी-अपनी बात रखी। सबकी बात सुनने के बाद अटल जी कुछ देर खामोश रहे। फिर उन्होंने कहा, अगर मेरी बात मानिए तो रामविलास जी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दीजिए। सरकार आराम से पांच साल चलेगी। कुछ नहीं होगा। ये सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हैं। इनकी सरकार गिराने के बारे में कांग्रेस को सौ बार सोचना होगा। इस कहानी को सुना कर रामविलास पासवान ने 2015 में एनडीए की तरफ से खुद को सीएम पद के दावेदार के रूप में पेश कर दिया था। इशारों-इशारों में उन्होंने सीएम बनने की तमन्ना जाहिर की थी। लेकिन इसकी नौबत ही नहीं आयी। एनडीए की करारी हार हुई। दो सीट मिलने से लोजपा की भद्द पिट गयी। पासवान का सपना एक बार फिर अधूरा रह गया। 2005 में नीतीश के लिए अरूण जेटली ने बाजी पलटी थी तो 2015 में लालू यादव उनका सहारा बने।
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क्या चिराग हैं सीएम मटेरियल?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जल्दी किसी की तारीफ नहीं करते। किसी के बारे में बहुत सोच विचार कर अपनी राय जाहिर करते हैं। 2019 में दोबारा जीत के बाद 3 जुलाई को भाजपा संसदीय दल की बैठक हुई थी। भाजपा के नवनिर्वाचित सांसदों को प्रधानमंत्री मोदी ने क्या करें और क्या नहीं करें के बारे में समझाया। उन्होंन पहली बार चुन कर आये भाजपा सांसदों को कहा कि आप सभी को लोजपा सांसद चिराग पासवान से सीख लेनी चाहिए। चिराग पासवान किसी बिल पर चर्चा में भाग लेने के लिए सदन में आते हैं तो पूरी तैयारी के साथ आते हैं। वे सदन में तर्कपूर्ण तरीके से अपनी बात रखते हैं। वे संसद की कार्यवाही में नियमित भाग लेते हैं और हर महत्वपूर्ण चर्चा में मौजूद रहते हैं। अगर प्रधानमंत्री अपने सांसदों को चिराग पासवान की तरह बनने का सुझाव देते हैं तो यह चिराग के लिए बेशकीमती तारीफ है। एक युवा नेता की क्षमता का इससे अच्छा कोई दूसरा आकलन नहीं हो सकता। रामविलास पासवान अगर चिराग की प्रशंसा करे तो इसे अतिरेक माना जा सकता है लेकिन अगर किसी दूसरे दल के नेता और वह भी प्रधानमंत्री, अगर ऐसा करें तो इसे खारिज नहीं किया जा सकता। वक्त का पहिया घूमेगा और एक न एक दिन नीतीश कुमार, लालू यादव और रामविलास पासवान की राजनीति का सूरज ढलेगा। तब बिहार में नये नेतृत्व का उदय होगा। जो नेतृत्व के लिए सबसे काबिल होगा सत्ता की बागडोर उसके हाथों में होगी। नयी पीढ़ी में कई दावेदार हैं और चिराग भी उनमें एक हैं। अब वक्त बताएगा कि रामविलास पासवान की भविष्यवाणी कितनी सच होती है।