कारगिल विजय दिवस स्पेशल: चंबल के सपूतों ने शहादत देकर भी झुकने नहीं दिया देश का तिरंगा
कारगिल युद्ध में अपनी शहादत देने वाले शहीदों की दास्तान
भिंड, 26 जुलाई। 26 जुलाई कारगिल विजय दिवस के मौके पर हम आपको चंबल के ऐसे वीर सपूतों की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने देश पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए और दुश्मनों को अपने देश की धरती से पीछे खदेड़ दिया। इन वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे का मान रखा। अपने देश की खातिर अपने प्राणों की आहूती दे दी लेकिन दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई।
हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया ने दी थी शहादत
यूं तो चंबल का इलाका बीहड़, बागी और गोली के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां से ऐसे वीर सपूत भी निकले हैं जिन्होंने अपने देश का मान सम्मान रखने की खातिर अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया भी ऐसे ही शहीदों में से एक हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देकर अपने देश की भूमि की रक्षा की। द्वितीय बटालियन राजपूताना राइफल्स रेजीमेंट के हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत को पूरा भिंड जिला याद करता है। 1999 में हुए कारगिल युद्ध में सुल्तान सिंह नरवरिया ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। भिंड के पीपरी गांव में जन्मे सुल्तान सिंह नरवरिया के दिल में बचपन से ही सेना में जाने का जज्बा था।
घर में बिना बताए हो गए सेना में भर्ती
सुल्तान सिंह नरवरिया ने भिंड में अपनी हाई सेकेंडरी तक की शिक्षा पूरी की। इसके बाद में उन्हें जानकारी मिली कि ग्वालियर में सेना की भर्ती हो रही है। उन्होंने अपने घर पर बिना कोई सूचना दिए ग्वालियर का रास्ता पकड़ लिया और सेना में जाकर भर्ती हो गए। साल 1979 में वे सेना की राजपूताना राइफल्स में पदस्थ हो गए।
युद्ध की जानकारी मिलते ही छुट्टी छोड़कर युद्ध भूमि पर पहुंच गए थे सुल्तान सिंह
1999
में
जब
कारगिल
युद्ध
शुरू
हुआ
उस
वक्त
सुल्तान
सिंह
नरवरिया
छुट्टी
पर
अपने
घर
आए
हुए
थे।
जब
युद्ध
की
उन्हें
जानकारी
मिली
तो
वे
अपनी
छुट्टी
बीच
में
छोड़कर
ही
युद्ध
भूमि
के
लिए
रवाना
हो
गए।
कारगिल
युद्ध
के
दौरान
सुल्तान
सिंह
नरवरिया
को
सेक्शन
कमांडर
बनाया
गया
था
और
पाकिस्तान
द्वारा
कब्जा
की
गई
कारगिल
में
स्थित
तोलोलिंग
पहाड़ी
पर
द्रास
सेक्टर
पॉइंट
4590
रॉक
एरिया
पर
बनी
चौकी
को
आजाद
कराने
का
टारगेट
दिया
गया
था।
जवान शहीद होते गए और सुल्तान सिंह आगे बढ़ते गए
अपनी
देश
की
भूमि
को
दुश्मनों
से
मुक्त
कराने
के
लिए
अपनी
टुकड़ी
के
साथ
सुल्तान
सिंह
अपने
टारगेट
की
तरफ
बढ़ने
लगे।
इस
बीच
दुश्मन
लगातार
फायरिंग
कर
रहा
था
लेकिन
सुल्तान
सिंह
का
हौसला
नहीं
टूटा।
उनके
पीछे
चल
रहे
सेना
के
अन्य
जवान
एक-एक
करके
शहीद
होने
लगे
लेकिन
सुल्तान
सिंह
का
जज्बा
कम
नहीं
हुआ।
सुल्तान
सिंह
ने
दुश्मनों
की
गोलियों
का
सामना
करते
हुए
10
दुश्मनों
को
ढेर
कर
दिया
और
तोलोलिंग
चोटी
पर
देश
का
तिरंगा
लहरा
दिया।
सुल्तान
सिंह
ने
अपनी
मातृभूमि
का
कर्ज
अदा
करते
हुए
दुश्मनों
के
चंगुल
से
अपने
देश
की
भूमि
बचा
ली
लेकिन
सुल्तान
सिंह
समेत
17
जवानों
ने
अपनी
शहादत
दे
दी।
सुल्तान
सिंह
की
शहादत
के
लिए
मरणोपरांत
उन्हें
वीर
चक्र
से
नवाजा
गया।
ग्रेनेडियर दिनेश सिंह भदोरिया ने भी दी थी अपनी शहादत
भिंड के ही रहने वाले दिनेश सिंह भदोरिया सेना में ग्रेनेडियर के रूप में पदस्थ थे। दिनेश सिंह भदोरिया ने भी अपनी वीरता का परिचय देते हुए दुश्मनों को भारत की धरती से उल्टे पैर भागने पर मजबूर कर दिया था। दिनेश सिंह भदोरिया को उनकी शहादत के बाद वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। दिनेश सिंह की वीरता को चंबल में आज भी हर साल कारगिल विजय दिवस पर याद किया जाता है।
चंबल के ही सपूत लांस नायक करण सिंह ने भी दुश्मनों से लिया था लोहा
भिंड की ही माटी में जन्मे सगरा गांव के रहने वाले करण सिंह ने भी दुश्मनों से लोहा लेते हुए उन्हें सरहद के उस पार भागने को मजबूर कर दिया था। भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट में पदस्थ लांस नायक करण सिंह के बुलंद हौसले की वजह से दुश्मन युद्ध मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ था। लांस नायक करण सिंह ने भी अपने प्राण न्योछावर करते हुए देश के तिरंगे का मान रखा। शहादत के बाद लांस नायक करण सिंह को भी वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
ग्वालियर के सपूत सरमन सिंह ने भी मनवाया अपनी बहादुरी का लोहा
ग्वालियर के सपूत सरमन सिंह भारतीय सेना में हवलदार थे। सरमन सिंह ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों के बीच घुस कर उनको मार-मार कर खदेड़ दिया था, लेकिन दुश्मनों से लड़ते हुए हवलदार सरमन सिंह की भी शहादत हो गई। सरमन सिंह की शहादत पर हर साल ग्वालियर में एक कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें याद करते हुए नमन किया जाता है।