रेलवे के अतिक्रमण हटाओ अभियान ने उजाड़ा गरीबों का आशियाना, बोले -'इससे अच्छा तो जहर दे देते साहब'
अतिक्रमण हटाओ अभियान : काजीपुरा इलाके में कई सालों से रह रहे लोगो के मकानों पर बुलडोजर चला कर रेलवे की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया। हालांकि इस दौरान अतिक्रमण करने वालों में हड़कंप मच गया।
मोदी
और
योगी
के
राज
में
कोई
इतना
निर्दयी
कैसे
हो
सकता
हैं?
हाड़
कपा
देने
वाली
यह
कड़कड़ाती
ठंड,
सुई
की
तरह
चुभती
ठंडी
हवाओं
में
अचानक
कोई,
कैसे,
किसी
को
बेघर
कर
सकता
है?
माना
कि
सरकार
की
जमीन
पर
हमारा
छोटा
सा
आशियाना
था
साहब,
लेकिन
तुम्हारी
जमीन
पर
मुझे
मेरी
गरीबी
ने
भेजा
है,
जब
घर
नही
दे
सकते
तो
ज़हर
ही
दो
साहब।
ये
दर्द
उनका
है
जिनके
लिए
गरीबी
अभिशाप
हैं।
आंखों
के
सामने
उजड़
गया
आशियाना,
हम
देखते
रह
गए
इस
कड़कड़ाती
ठंड
में
अगर
आप
का
आशियाना
आप
के
आंखों
के
सामने
उजड़
जाए,
जिस
आशियाने
में
अपने
जीवन
के
कई
हसीन
पल
गुजारे
हो,
जिंदगी
के
सुख
और
दुख
को
अपने
परिवार
के
साथ
जिया
हो।
आंखों
के
सामने
एक
पल
में
सब
कुछ
खत्म
हो
जाए
और
आप
देखते
रहे।
ऐसा
ही
कुछ
देखने
को
मिला
बलिया
के
काजीपुरा
इलाके
में।
बहुत मेहनत से बना था सबकुछ - पीड़ित
ये तस्वीरें आप को झकझोर कर रख देंगी, आप के आंखों को आंसुओ से भर देंगी लेकिन आप भी सरकारी फरमान के आगे सिर्फ संवेदना व्यक्त करने के अलावा कुछ नही कर सकते। दरअसल यह दर्द कई दशक से रेलवे की जमीन पर बांस, बल्ली, टीन, चादर के मदद से बने झुग्गियों में रहने वाले उन लोगों का है, जो हाड़ कपा देने वाली इस ठंड में अचानक बेघर हो गए। इन झुग्गियों में कहीं बीमार मां दिखी तो किसी का बाप अपने आंसुओं को रोक नही पा रहा था। रेलवे पुलिस जमीन खाली करने की फटकार लगा रही थी, वही झुग्गियों में रहने वाले परिवार अपने घर का सामान समेट रहे थे, मासूम बच्चें, घर की महिलाएं रोते-बिलखते घर के जरूरी सामान के साथ ही, बिन जोड़ के ईंटो को हटा रहे थे। भला क्यों न हटाते ये सरकार का दिया आवास नही था उनकी मेहनत से बना आशियाना था, जो आंखों के सामने उजड़ गया।
बेवक्त चला, इस सर्द मौसम में रेलवे का अतिक्रमण हटाओ अभियान
दरअसल
रेलवे
ने
अतिक्रमण
हटाओ
अभियान
के
तहत
काजीपुरा
इलाके
में
कई
सालों
से
रह
रहे
लोगो
के
मकानों
पर
बुलडोजर
चला
कर
रेलवे
की
जमीन
को
अतिक्रमण
मुक्त
कराया।
हालांकि
इस
दौरान
अतिक्रमण
करने
वालों
में
हड़कंप
मच
गया।
अफरा-तफरी
के
बीच
लोग
घरों
से
अपना
सामान
निकालते
रहे
और
दूसरी
तरफ
रेलवे
का
बुलडोजर
एक-
एक
कर
उनके
आशियानों
को
तोड़ता
रहा।
रेलवे
की
जमीन
पर
कई
सालों
से
रह
रहे
लोगों
का
कहना
है
कि
अतिक्रमण
हटाने
का
हमे
नोटिस
जरूर
मिला
था,
लेकिन
हमारी
कई
पीढ़ी
यहां
रह
चुकी
है,
लिहाजा
सरकार
को
हमारे
रहने
की
व्यवस्था
करनी
चाहिए।
इससे
तो
अच्छा
होता
कि
ये
लोग
हम
सभी
को
ज़हर
दे
देतें
इस
दौरान
मीडिया
के
कैमरे
पर
पीड़ित
सभी
गिड़गिड़ाते
रहे
कि
साहब
अब
हम
अपने
परिवार
को
लेकर
कहां
जाए।
इस
ठंड
में
बीमार
मां-बाप
को
कहां
ले
जाये,
पिता
तो
चलने
के
लायक
भी
नही,
मां
कब
दम
तोड़
दे
किसी
को
पता
नही,
मासूम
बच्चों
को
रोटी
खिलाना
भी
मुश्किल
हो
गया,
इस
ठंड
में
रहने
का
ठिकाना
ढूंडू
या
दो
वक्त
की
रोटी
कमाने
जाऊ,
बिखरे
समानो
को
जला
दूं
या
खुद
जल
जाऊं।
इससे
तो
अच्छा
होता
कि
ये
लोग
हम
सभी
को
ज़हर
दे
देतें।
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आखिर कौन हैं इसका जिम्मेदार? इस ठंड में राहत की बजाय उजड़ गया आशियाना
सच है कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करना एक अपराध है, सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने का ये मामला कोई नया नही है लेकिन इस ठंड में ऐसी भी क्या सामत आ पड़ी की इन गरीबों का आशियाना उजाड़ना पड़ गया। कई दशकों से सरकार के इस जमीन पर रह रहे लोगों का कसूर सिर्फ इतना था कि वो रेलवे की जमीन पर थे। जैसे इतने साल इन्तेजार किया, चंद माह और रुक जाते, इन ठंडी हवाओं को थोड़ा गर्म हो जाने देते। सबसे बड़ा सवाल कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है क्यों की बिखरे मिलबो की तस्वीर जोशी मठ की नही बल्कि बलिया के काजीपुरा इलाके की हैं। ये उस सरकारी जमीन की तस्वीर है जो सरकार ऐसे लोगों को आवास और रोजगार देने की बात करती है। जमीन सरकार की, रेलवे सरकार की तो फिर ये लोग पाकिस्तान के तो नही हो सकते है निश्चित ही उसी सरकार के ये लोग भी है जिनसे वोट लेकर सरकार बनाते हैं। आखिर सरकार के योजनाओं से कैसे वंचित रह गए, क्यों नही मिला इन्हें आवास योजना का लाभ, ये बात तो नोटिस भेजने वालों को भी पता होगा, इन तस्वीरों के पीछे सवाल कई है।