राम जन्मभूमि हमला: 14 साल बाद रिहा हुए कश्मीर के अजीज, पढ़ें पूरी कहानी
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि पर आतंकी हमला करने के मामले में आरोपित रहे पांचवें शख्स मो. अजीज को 14 साल बाद जेल से रिहा कर दिया गया है। गिरफ्तार किए गए पांच आरोपियों में से चार आरोपियों को विशेष अदालत ने अजीवन करावास की सजा सुनवाई है, जबकि पांचवे आरोपित अजीज को सबूतों के अभाव में रिहा करने का आदेश दिया था। अदालत के आदेश के अनुक्रम में पांचवें आरोपित रहे अजीज को नैनी सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया है। अजीज पिछले 14 साल से नैनी सेंट्रल जेल में बंद था। वह कश्मीर के पुंछ जिले के मेंडर थाना क्षेत्र के बारींदार गांव का रहने वाला है।
खुश नजर आया अजीज, लेकिन रह गया ये मलाल
नैनी सेंट्रल जेल में पिछले 14 साल से बंद अजीज को जब 19 जून की देर शाम जेल के बाहर ले आया गया तो वह बेहद ही भावुक और खुश नजर आए। मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि उसे अपने देश की न्यायपालिका पर भरोसा था और सच आखिरकर सामने आ गया। वह बेकसूर था और अदालत में यह साबित हो गया है। अजीज ने कहा कि उसे बस इतना मलाल है कि उसे अपने जीवन के 14 साल बिना किसी कसूर के जेल के अंदर काटने पड़े हैं। वकील शमशुल हसन ने बताया कि अजीज को अब पुलिस प्रोटेक्शन में उनके घर पहुंचाया जाएगा। 20 जून को फ्लाइट से वह दिल्ली जाएंगे और वहां से उन्हें कश्मीर ले जाया जाएगा। वरिष्ठ जेल अधीक्षक हरिबक्श सिंह ने बताया कि मो. अजीज को देर शाम को जेल से रिहा कर दिया गया है। कुछ देर तक वह जेल के अंदर ही रहे, शाम को बाहर गार्ड रूम में उन्हें शिफ्ट कर दिया गया था, जहां उनके खाने और बिस्तर की व्यवस्था भी कर दी गई थी। एसपी प्रोटोकाल आशुतोष द्विवेदी ने बताया कि यहां से पुलिस सुरक्षा में अजीज को बम्हरौली एयरपोर्ट ले जाया जाएगा और वहां से फ्लाइट से वह दिल्ली जाएंगे।
4 साल बची है नौकरी
कश्मीर के बारीदार गांव के रहने वाले एक छोटे से किसान मो. वसील के दो बेटों में बड़े मो. अजीज अब 56 साल के हो चुके हैं। जेल जाने से पहले वह बकायदा सरकारी नौकरी कर रहे थे। जम्मू में जल निगम के प्लंबर (मिस्त्री) के रूप में जिंदगी के कई बसंत खुशनुमा बीते थे, लेकिन 14 साल से वह जेल में बंद थे और अब रिहा होकर और बेदाग होकर अपने परिजनों से मिलने वापस घर जा रहे हैं। अजीज को फिर से अपनी जिंदगी शुरू करनी है और नौकरी के चार साल तो बचे ही हैं। जेल में गुजारी जिंदगी के लिए भी वे विभाग से क्लेम करेंगे और हर्जाना के लिए एक बार फिर न्याय मांगने कोर्ट जाएंगे।
कौन-कौन है परिवार में
मो. अजीज के घर में पिता के अलावा उनके बीवी बच्चे भी हैं, जो वर्षों से टकटकी लगाए अजीज का इंतजार कर रहे हैं। अजीज के तीन बच्चे हैं, जिनमें दो बेटे जफर व जावेद और एक बेटी नाजिया है। अजीज भावुक होकर कहते हैं पत्नी अनवर की तो मेरे इंतजार में आंखें पथरा गई होंगी। अब बस वह अपनों के साथ फिर से नई जिंदगी शुरू करना चाहते हैं।
कश्मीर में गुजरा वह आखिरी दिन
भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर निवासी मो. अजीज के जेल जाने की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी सरीखी है। अजीत बताते हैं कि 2005 में एक दिन मेंडर थाने के एक सिपाही उनके घर पहुंचा उस समय वह ड्यूटी पर गया हुआ था। घर में परिजन थे। सिपाही ने अजीज के पिता मो. वसील को बुलाया और कहा कि अपने बेटे को थाने पर भेज देना कुछ आवश्यक काम है। शाम को अजीज घर लौटा तो वालिस वसील ने पुलिस आने की बात बताई। सुबह अजीज मेंडर थाने पहुंचा। थाने में किसी ने उससे कोई बात नहीं की बस उसे बताया गया कि उसे जम्मू जाना है। अजीज ने कई बार पूछा कि आखिर उसे क्यों जम्मू ले जाया जा रहा है, लेकिन इसका जवाब उसे किसी ने नहीं दिया और उसे थाने में ही पूरी रात गुजारनी पड़ी। अजीज आगे के दिनों में आने वाले तूफान से बेखबर तो था, लेकिन वह अब तक बुरी तरह से डर गया था। सुबह मेंडर पुलिस उसे लेकर जम्मू के लिए रवाना हुई और अगली सुबह जब वह सफर पर चला तो दुबारा नहीं लौटा। जम्मू पहुंचने के बाद रोज उसे अलग-अलग जगहों रखा जाता और रोज पूछताछ की जाती रही। हर दिन उससे एक सिर्फ कार्ड खरीदने को लेकर सवाल जवाब होते रहे, लेकिन अजीज हर बार किसी भी सिम को खरीदने से इनकार करता रहा। 21 दिन बाद जब लगा कि अजीज को वापस उसके घर भेजा जा रहा है तब उसे प्रयागराज के नैनी सेंट्रल जेल ले आया गया। 22 दिन के लिए अजीज को न्याययिक अभिरक्षा में भेज दिया गया था और यहां पर उसे पहली बार पता चला कि आखिर वह यहां क्यों है।
अयोध्या में विस्फोट का आरोप
अजीज गहरी सांस लेकर अपनी वेदना को काबू में करते हुए बताते हैं कि नैनी जेल में उन्हें पता चला कि वह अयोध्या राम जन्म भूमि में आतंकी हमला करने वाले आतंकियों के सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए हैं और उनके अलावा भी यहां पर चार अन्य लोग भी उसी प्रकरण में बंद किए गए हैं। अजीज दावे से कहते हैं कि बाकी के जो चार आरोपी थे, न उनसे वह कभी मिले थे, ना नाम जानते थे और ना ही उनसे उनका कोई संबंध था।
...और 14 वर्ष का वनवास
नैनी सेंट्रल जेल में इस आतंकी हमले की सुनवाई शुरू हो गई। जेल के अंदर ही अदालत सजने लगी। सुनवाई का दौर आगे बढ़ने लगा। जज बदलते रहे, बस कुछ नहीं हो रहा था तो वह था फैसला। अजीज कहते हैं कि हर सुनवाई पर उन्हें लगता कि बस अगली डेट पर फैसला होगा और इस इंतजार में उनकी आंखे धीरे-धीरे बूढ़ी होने लगी और उम्मीदें भी क्षीण होती रही। इस बीच अजीज को पीठ दर्द और रीढ की हड्डी में शिकायत से अजीज की समस्या और भी बढ़ गई। दो साल पहले एक वक्त ऐसा आया कि अदालत अपना फैसला सुनाने वाले थी, लेकिन अदालत ने इस मामले की और तह तक जानने का दोबारा से प्रयास किया और फिर से गवाही का दौर चला। नतीजा 14 साल के वनवास के बाद जब फैसला हुआ तो अजीज बेदाब बरी किए गए। फिलहाल, अदालत से बरी होने के बाद जेल प्रशासन का रवैया भी अजीज के प्रति बदला रहा। जेल के बाहर आने के बाद डबडबाई आखों से कांपती जुबान में दोनों हाथ उपर कर दुआ पढ़ते हुए अजीज कहते हैं उन्हें खुदा भर भरोसा था।