इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: विवादित अधिग्रहित भूमि का नहीं दिया जा सकता मुआवजा
प्रयागराज। सरकार द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि पर मुआवजे को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर जमीन का विवाद है और वह जमीन अधिग्रहित हो चुकी है, तो विवाद के निस्तारण तक जमीन का मुआवजा नहीं दिया जाना चाहिए। यह आदेश गाजियाबाद के एक मामले पर आया है। यहां पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिए जमीन अधिग्रहित की गई थी जिसमें, मालिकाना हक को लेकर सह खातेदारों में विवाद है और इसी विवाद के कारण ही मुआवजे की रकम को लेकर भी समस्या पैदा हो गई है। कौन असली मालिक है और किसे मुआवजा दिया जाना चाहिए? इसे लेकर मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था। जिस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर अधिग्रहित भूमि के स्वामित्व और कब्जे को लेकर विवाद है तो मुआवजे का भुगतान विवाद के निस्तारण होने तक नहीं किया जा सकता।
क्या
है
मामला
उत्तर
प्रदेश
के
गाजियाबाद
में
राष्ट्रीय
राजमार्ग
प्राधिकरण
सड़क
चौड़ीकरण
के
लिए
जमीन
अधिग्रहित
की
थी।
जिनमें
अधिकांश
को
मुआवजा
दे
दिया
गया
है।
हालांकि
जमीन
अधिग्रहण
के
कुछ
मामले
में
जमीनों
को
मालिकाना
हक
को
लेकर
सह
खातेदारों
में
विवाद
है।
ऐसा
ही
एक
मामला
भूर
गढी
डासना
का
है।
जिसे
लेकर
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
हुई
है।
याचिका
में
बताया
गया
कि
एक
जमीन
पर
कई
लोगों
का
मालिकाना
हक
है।
लेकिन,
अपर
जिलाधिकारी
ने
एक
ही
खातेदार
को
मुआवजा
दिए
जाने
का
आदेश
दिया
है।
इसी
पर
सुनवाई
करते
हुए
हाईकोर्ट
ने
अब
मुआवजा
की
स्थिति
को
स्पष्ट
कर
दिया
है।
पुराना
आदेश
रद्द
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
दाखिल
की
गई
याचिका
पर
न्यायमूर्ति
पी.के.एस
बघेल
तथा
न्यायमूर्ति
पीयूष
अग्रवाल
की
खंडपीठ
ने
सुनवाई
शुरू
की
तो
बताया
गया
कि
जिस
जमीन
के
मुआवजे
को
लेकर
विवाद
है
उस
जमीन
का
अभी
तक
बंटवारा
नहीं
हुआ
है।
लेकिन
अपर
जिलाधिकारी
गाजियाबाद
में
13
जून
2018
को
एक
आदेश
जारी
कर
दिया
और
मुआवजा
सह
खातेदार
को
देने
का
आदेश
दे
दिया।
इसी
आदेश
के
खिलाफ
अब
लज्जावती
व
दूसरे
खातेदारों
ने
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
की
थी।
जिस
पर
उन्हें
बड़ी
राहत
देते
हुए
हाईकोर्ट
ने
अपर
जिलाधिकारी
गाजियाबाद
के
आदेश
को
रद्द
कर
दिया
है
और
6
सप्ताह
में
दोनों
पक्षों
को
सुनकर
इस
मामले
में
आदेश
पारित
करने
को
कहा
है।
साथ
ही
यह
भी
स्पष्ट
निर्देश
दिया
है
कि
जब
तक
मुआवजे
का
निपटारा
ना
हो
जाए,
यानी
कोर्ट
का
निर्णय
ना
जाए,
तब
तक
मुआवजे
की
राशि
को
किसी
राष्ट्रीयकृत
बैंक
में
जमा
करा
दी
जाए।
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