स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी भागवत प्रसाद नहीं रहे, चंद्रशेखर आजाद की समाधि के पास की गई अंत्येष्टि
प्रयागराज। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे क्रांतिकारी भागवत प्रसाद भारतीय का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार रसूलाबाद गंगा घाट पर किया गया। गंगा घाट वही जगह है, जहां शहीद चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार हुआ था। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लड़ाई लड़ने के दौरान भागवत प्रसाद दर्जनों बार जेल में डाले गए थे, लेकिन फिर भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े रहे। वह प्रयागराज शहर की उन शख्सियतों में शुमार थे, जिन क्रांतिकारियों की ढेरों जीवंत घटनाएं यादों में संजोई हुई हैं। वह स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भागवत प्रसाद सेनानियों को डुगडुगी बजाकर एकत्र करने का काम करते थे और संदेश इधर से उधर पहुंचाते थे।
पं. नेहरू ने किया था सम्मानित
बताया जाता है कि सन् 1942 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें अपने पास बुलाया। जहां एक बिगुल बजाया गया, इसी के जरिए मीटिंग की सूचना क्रांतिकारियों को दी जाती थी। हालांकि इन्हें ऐसा करते हुए अंग्रेज पुलिस गिरफ्तार करती थी और जब यह जेल से छूटकर बाहर आते तो फिर से अपने काम में जुट जाया करते थे। देश को आजादी मिलने के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इन्हें सम्मानित भी किया था।
बीमारी से जूझ रहे थे
क्रांतिकारी स्वतंत्रता बिगुलर (दुमदुमी वादक) भागवत प्रसाद भारतीय की उम्र 95 वर्ष को पार कर चुकी थी और वह शहर के पत्रकार कालोनी, नेवादा में रहते थे। वह पिछले दो महीने से गहरी बीमारी से जूझ रहे थे। दरअसल, एक आयोजन से लौटते हुए सड़क दुर्घटना में उनके कूल्हे की हड्डी टूट गयी थी, जिसका इलाज चल रहा था। लेकिन आर्थिक स्थिति बेहतर न होने के कारण वह अपना बेहतर इलाज नहीं करा पा रहे थे।
प्रशासन ने सुध नहीं ली
स्थानीय जनप्रतिनिधि व जिला प्रशासन ने भी उनकी बीमारी पर मदद की सुध नहीं ली। हालांकि बीमार होने के बाद भी वह अपने घर आने वालों को बड़ी ही भावुकता व सजीवटता से गांधी, नेहरू व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में घटनाक्रम सुनाने का क्रम जारी रखे हुए थे।
पंचतत्व में विलीन
भागवत प्रसाद भारतीय के निधन के बाद उनसे जुडे हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिये पहुंचे। फिलहाल उनका पार्थिव शरीर रसूलाबाद घाट पर पंचतत्व में विलीन हो गया है। प्रयागराज शहर समेत दूसरे शहरो में होने वाले देशभक्ति कार्यक्रम में भागवत प्रसाद को अक्सर बुलाया जाता था। शहीद चंद्रेशेखर आाजाद की प्रतिमा के निकट होने वाले हर कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति हुआ करती थी और पंद्रह अगस्त व 26 जनवरी के कार्यक्रम में वह स्वतंत्रता संग्राम की सजीव कहानियां सुनाया करते थे। उनकी सबसे अधिक खासियत यह थी कि वह इस उम्र में भी पूरी तरह से उसी जोश के साथ बिगुल बजाते थे, जैसा कि अपने पुराने दिनों में बजाते थे।
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