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भारत में लेस्बियन और गे लोगों को ‘सीधा करने वाला इलाज’ बैन करने की मांग

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर। पवित्रा के परिवार वाले उसे बदलना चाहते थे. उसका लेस्बियन होना उन्हें स्वीकार नहीं था. वह बताती हैं कि पहले वे लोग उसे आम डॉक्टर के पास ले गए, फिर दिमाग के डॉक्टर को दिखाया जिसने पॉर्न देखने और लड़कों से सेक्स करने के बारे में सोचने को कहा. फिर स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास ले गए जिसने हॉर्मोन टेस्ट के नतीजे ठीक आने पर पवित्रा को केवल अनैतिकता का शिकार बताया.

Provided by Deutsche Welle

अंत में सिद्धा वैद्य ने इलाज के नाम पर शराब पिलवाई और अगले 3-4 घंटे उसके साथ क्या हुआ इसका पवित्रा को होश तक नहीं. वह बताती हैं, "डॉक्टर ने मुझे इंटरनेट पर खूब पॉर्न वीडियो देखने को कहा, लेकिन लेस्बियन पॉर्न वीडियो को छोड़कर. उसने कहा कि पॉर्न वीडियो देखने से मुझे लड़कों के साथ संबंध बनाना अच्छा लगने लगेगा. मैंने डॉक्टर को बताया कि मुझे इन चीजों में दिलचस्पी नहीं है. सबसे पहली बात तो ये है कि ये सब केवल सेक्स के बारे में नहीं होता. मैं केवल सेक्स के लिए तो लेस्बियन नहीं हूं. इसका संबंध प्यार से है, भावना और आत्मा के स्तर पर जुड़ाव से है. मेरे लिए पहले प्रेम है, फिर वासना. लेकिन डॉक्टर तो मुझसे केवल सेक्स के बारे में बात कर रहा था."

हजारों ऐसी कहानियां हैं

सितंबर 2020 में पवित्रा ने घर छोड़ा और केरल चली गईं. लेकिन हर किसी को बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिलता. कुछ महीने पहले गोवा में 21 साल की बाइसेक्शुअल महिला अंजना हरीश ने कनवर्जन के नाम पर की गईं तमाम ज्यादतियां झेलने के बाद आत्महत्या कर ली थी.

इसके शिकार ज्यादातर किशोर या युवा लोग बनते हैं. अक्सर परिवार वाले उन पर दबाव डालकर तथाकथित थेरेपी करवाते हैं. इस थेरेपी के नाम पर जो दवाएं दी जाती हैं, उनके असर के बारे में पवित्रा बताती हैं, "मुझे उल्टी आती थी. भयंकर सिरदर्द रहता था. पूरे शरीर में दर्द रहता था. मुझे ऐसा टैबलेट दिया जा रहा था जिसका खूब साइड इफेक्ट होता था. मैं हमेशा सोती रहती थी. परिवार वालों को ये भी लगा कि कहीं मैंने आत्महत्या करने के लिए कोई और टैबलेट तो नहीं खा लिया. लेकिन मैं गहरी नींद में होती थी."

इलाज के नाम पर यातनाएं

कनवर्जन थेरेपी के नाम पर किए जाने वाले इलाज का मकसद है गे, लेस्बियन या ट्रांसजेंडर लोगों को हेट्रोसेक्शुअल बनाना. मेडिकल पेशेवरों के अलावा काउंसिलर्स और धर्मगुरु भी ऐसे तथाकथित इलाज करने का दावा करते हैं.

कोरोना महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन और प्रतिबंधों ने एलजीबीटी प्लस लोगों को सामाजिक रूप से और अलग-थलग कर दिया है. केरल में क्वीराला नाम की संस्था से जुड़ीं राजश्री राजू बताती हैं, "कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान ऐसे मामले दोगुने हो गए. कई एलजीबीटीक्यू प्लस लोग घर में अपने उन परिवारों के साथ फंस गए थे जो उन्हें स्वीकार नहीं करते. परिजन उनके यौन झुकाव और लैंगिक पहचान का इलाज करवाने के लिए जबर्दस्ती उन्हें अस्पताल और डॉक्टरों के पास ले गए. यह तो हमारा एक राज्य का अनुभव है. आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे देश में रहने वाले एलजीबीटीक्यू प्लस लोग कितनी दिक्कतें उठा रहे हैं."

वैश्विक सर्वे दिखाते हैं कि कनवर्जन थेरेपी के शिकार पांच में से चार लोग 24 साल से नीचे और लगभग 50 फीसदी लोग 18 साल से कम उम्र के हैं. यूरोप में माल्टा ने सबसे पहले इसे गैरकानूनी करार दिया था लेकिन जर्मनी समेत केवल पांच ही देशों में इस पर कानूनी रोक है.

कानून की जरूरत

अपनी लैंगिक पहचान एक बाइसेक्शुअल महिला के रूप में बताने वालीं राजश्री की संस्था ने कनवर्जन थेरेपी को पूरी तरह बैन करने की याचिका केरल हाईकोर्ट में दायर की है.

वह बताती हैं, "इससे प्रभावित ज्यादातर लोग पहले से ही हाशिए पर रहने वाले समुदाय से आते हैं. किसी को परिवार ने घर में कैद किया है तो कोई अपनी जीविका के लिए उन पर पूरी तरह आश्रित होता है. ऐसे में वे खुद तो सीधे रिपोर्ट करने की हालत में भी नहीं होते और जब हम डॉक्टरों से सवाल करते हैं तो वे सीधे सीधे मुकर जाते हैं. जब तक उसके खिलाफ कानूनी प्रावधान नहीं आता, तब तक हर मामले में पीड़ितों की तरफ से हमारा कुछ पाना संभव नहीं होगा. हर बार कुछ बुरा हो जाने के बाद दखल देना भी व्यवहारिक नहीं है. इसी वजह से हम इसका एक ठोस उपाय चाहते हैं. हमारी नजर में हर तरह की कनवर्जन थेरेपी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना एक ठोस उपाय है."

पवित्रा अपनी गर्लफ्रेंड मैरी प्रिंसी टीजे के साथ खुश रहने और थेरेपी के कारण पैदा हुए डिप्रेशन से बाहर आने की कोशिश कर रही हैं. भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से और इंडियन साइकिएट्री सोसायटी ने मानसिक रोग के दायरे से बाहर निकाला था. बेहद अमानवीय और बेअसर होने के बावजूद भारत समेत दुनिया के कई देशों में तथाकथित कनवर्जन थेरेपी अब भी कानूनी रूप से वैध है.

रिपोर्टः अशोक कुमार

Source: DW

English summary
activists demand a ban on so called conversion therapy
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