एनसीटीसी को आईबी के दायरे से बाहर रखेगी सरकार
गौरतलब है कि पांच मई की बैठक बाद रविवार को भी प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने एनसीटीसी को संवैधानिक रूप से कमजोर बताते हुए इसे देश के संघीय ढांचे के प्रतिकूल कहा। पार्टी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सवाल भी किया कि वोट बैंक की राजनीति के कारण आतंक के खिलाफ लड़ने के लिए प्रिवेंशन ऑफ टेररिस्ट एक्टिविटीज एक्ट (पोटा) से समझौता क्यों किया गया। पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एनसीटीसी का गठन कार्यकारी आदेश के जरिए किया गया है जिस पर पूरा नियंत्रण इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) का है जो पूरी तरह गोपनीय है और जिसकी संसद के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है।
यह कारण है कि यह मुद्दा बहुत गंभीर है। इसके बाद सरकार चौतरफा विरोध को देखते हुए कहा कि एनसीटीसी को खुफिया ब्यूरो के दायरे से बाहर रखे जाने के मुद्दे पर फिर से विचार किया जाएगा। हालांकि सरकार विचार ही नहीं कर रही है अंदर ही अंदर एनसीटीसी को आईबी से बाहर रखने को सहमत हो गई है। वैसे अभी आधिकारिक तौर पर सरकार ने तो कुछ नहीं कहा है पर कुछ सूत्र बता रहे हैं कि सरकार इसे नया अमलीजामा पहनाने पर सहमत हो गई है। वैसे रविवार को जो सरकार की तरफ से बयान आया था जिसके बाद कयास लगाया जा रहा था कि सरकार जल्द ही कुछ फैसला ले सकती है।
आपको बता दें कि रविवार को सरकार ने एक बयान जारी किया था जिसमें चिंदबरम की तरफ से कहा गया था कि मुझे याद है कि दिसंबर 2009 में जब मैं इस मंच पर था, मैंने यह प्रस्ताव नहीं किया था कि एनसीटीसी को आईबी के तहत स्थापित किया जाना चाहिए। वास्तव में नई सुरक्षा व्यवस्था निश्चित तौर पर अधिक महत्वाकांक्षी थी, लेकिन यह प्रस्ताव नहीं था कि इसे आईबी के तहत होना चाहिए।
चिदबंरम ने कहा कि इसे आईबी में लाने का फैसला इसलिए किया गया कि मंत्रियों के समूह ने 2001 में अपनी सिफारिशों में आईबी को देश की नोडल आतंकवाद विरोधी एजेंसी बताया था। उन्होंने कहा कि कई वक्ताओं ने यह जिक्र किया कि एनसीटीसी होनी चाहिए, लेकिन उन्होंने सवाल किया कि इसे आईबी के तहत क्यों रखा जा रहा है? निश्चित तौर पर इस मामले में पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है और हम निश्चित रूप से ऐसा करेंगे।