इस्तेमाल न हुए स्पेक्ट्रम के लिए भुगतान चाहता है ट्राई
यह कर 3जी फ्रीक्वेंसी की नीलामी से निर्धारित होने वाली कीमत के आधार पर तय किया जाएगा। इसके जरिए सरकारी खजाने में 35,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व आएगा।
टेलीकाम रेगुलेटरी अथारिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने सेवा प्रदाता कंपनियों पर हिस्सेदारी बेचने पर लगाए गए रोक को भी हटाने की सिफारिश की है।
फिलहाल लाइसेंस जारी होने के समय से तीन साल तक कोई भी संचालक अपनी हिस्सेदारी नहीं बेच सकता। सरकार ने इस बाबत कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रावधान के कारण बाजार में समेकन की प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई है।
ट्राई ने कहा है कि भारती, वोडाफोन और रिलायंस कम्युनिकेशन्स जैसी दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों पर 3जी सेवा के लिए फ्रीक्वेंसी की जारी नीलामी से तय होने वाली कीमत के आधार पर एकमुश्त शुल्क लगाया जाएगा। इन कंपनियों के पास 6.2 मेगा हट्र्ज से अधिक के रेडियो स्पेक्ट्रम हैं।
ट्राई की इस सिफारिश को कोई जरूरी नहीं है कि सरकार स्वीकार ही करे। लेकिन उसने दिल्ली और मुंबई के हर संचालक के लिए 10 मेगा हट्र्ज की सीमा निर्धारित करने तथा अन्य क्षेत्रों के संचालकों पर आठ मेगा हट्र्ज की सीमा निधारित करने का भी सुझाव दिया है।
ट्राई के चेयरमैन जे.एस.शर्मा ने कहा, "हमारे आंकड़े के अनुसार पूरे देश में 6.2 मेगा हट्र्ज के बाद स्पेक्ट्रम के 156 मेगा हट्र्ज हैं। इसलिए 3जी स्पेक्ट्रम हेतु कीमतें निर्धारित करते समय 30,000-35,000 करोड़ रुपये का राजस्व इकट्ठा हो सकता है।"
शर्मा ने यहां संवाददाताओं को बताया, "हमने यह कहा है कि 6.2 मेगा हट्र्ज के बाद हर हाल में कीमतें अदा की जानी चाहिए।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।