ग्रामीण विकास के साथ-साथ रोजगार भी
नई दिल्ली, 20 जून (आईएएनएस)। ग्रामीण प्रबंधन के अलावा पर्यावरण, स्वास्थ्य, महिला जगत, शहरी शासन, माइक्रो उद्यम, संचार आदि के क्षेत्र में कार्य किया जा सकता है।
नई दिल्ली, 20 जून (आईएएनएस)। ग्रामीण प्रबंधन के अलावा पर्यावरण, स्वास्थ्य, महिला जगत, शहरी शासन, माइक्रो उद्यम, संचार आदि के क्षेत्र में कार्य किया जा सकता है।
संचार या संप्रेषण- ग्रामीण विकास का मूल भाग संचार या संप्रेषण क्षेत्र में निहित है। जिस प्रकार से कोई विचार व्यक्त किया जाता है, उसके अनुसार परियोजना तथा समूची विकास प्रक्रिया बनती-बिगड़ती है। इस प्रकार संप्रेषण व्यवस्था विकास प्रक्रिया में सर्वाधिक चुनौती भरा क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह सबसे ज्यादा संवेदनशील है। यह क्षेत्र असीम है। कठपुतली शो, नाटक, नृत्य तथा संगीत जैसे पारंपरिक तरीके और संप्रेषण/संचार के आधुनिक साधनों से पूरी तस्वीर सामने आती है।
इस कार्य में चुनौती तब उत्पन्न होती है जब आपको बोध स्तर पर ग्रामीणों के साथ संप्रेषण करना होता है। आप सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक कारकों से बंधे होते हैं। संप्रेषण किसी क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए महत्वपूर्ण साधन है। इसे हम 'साधन' के रूप में व्यक्त कर सकते हैं। आप ग्रामीण विकास में विशेषज्ञता प्राप्त पत्रकार के रूप में गैर-सरकारी संगठन के मीडिया विभाग में संक्षिप्त समाचार-पत्र निकालने, सूचना संबंधी पैंफ्लेट एवं अन्य साहित्य सामग्री तैयार करने का कार्य कर सकते हैं, ताकि जन-साधारण में जागरूकता लाई जा सके।
महिला जगत- देश की कुल आबादी में महिलाओं की एक तिहाई हिस्से दारी है। इनमें से आधी संख्या ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी है। यद्यपि हम 'वसुधव कुटुंबकम' की संकल्पना की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन तब भी महिलाओं की स्थिति सोचनीय है। सामाजिक तौर पर इनके अधिकार सीमित हैं तथा ये अनेक सामाजिक बंधनों में जकड़ी है। पूरे विश्व में महिला जगत की प्रगति बहुत धीमी है। उन्हें अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इससे इस क्षेत्र में कार्य करना और भी अधिक चुनौती भरा है। महिलाओं से संबंधित मुद्दों के बारे में आम धारणा में बदलाव आया है।
ये मुद्दे विकासात्मक परियोजनाओं का आंतरिक पक्ष हैं। कुछ क्षेत्रों में महिलाएं सशक्त हुई हैं। इस क्षेत्र में अनेक गैर सरकारी संगठन कार्य कर रहे हैं। अनेक दाता एजेंसियों ने अलग डिवीजन बनाए हैं। जैसे - एनसीईआरटी। आप महिलाओं के प्रति सुग्राहिता, प्रचार, विधि, अनुसंधान, परामर्श, यौन-शिक्षा आदि क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं। इस कार्य के लिए औपचारिक प्रशिक्षण की जरूरत नहीं है।
नेटवर्क- यदि जरूरी हो तो विकास क्षेत्र के गैर सरकारी संगठनों व अन्य एजेंसियों को सरकारी नीति के प्रतिपादन तथा आलोचना के बारे में जनमत तैयार करना होता है। इसीलिए अन्य समतुल्य संगठनों के साथ नेटवर्क तैयार करने का कार्य विशेष क्षेत्र बन जाता है। ऐसे संगठन का मूल प्रयोजन नीति निर्माता एजेंसियों पर दबाव डालने एवं प्रचार करनेवाले एजेंटों के रूप में कार्य करने के लिए संयुक्त मोर्चा तैयार करना है।
पर्यावरण- यदि व्यक्ति की इस क्षेत्र में रुचि है कि लोग पर्यावरण के प्रति किस प्रकार बर्ताव करते हैं, तो यह क्षेत्र उस व्यक्ति के लिए काफी रोचक हो सकता है। पर्यावरण के क्षेत्र में काफी कुछ किया जा सकता है। हालांकि पर्यावरण के क्षेत्र में व्यावसायिक का कार्य संगठन के अनुसार अलग-अलग होता है; लेकिन इस कार्य में गौण डाटा संग्रह, अनुसंधान, नीति-निरूपण, प्रचार, परियोजनाओं के विधिक निरूपण के माध्यम से कानूनी कार्रवाई एवं कार्यान्वयन, संसाधन प्रबंधन, जागरूकता उत्पन्न करना और प्रमुख डाटा संग्रह शामिल है।
पर्यावरण से संबंधित ऐसे अनेक पाठ्यक्रम देश में चलाए जाते हैं, जहां इस क्षेत्र में औपचारिक प्रशिक्षण लिया जा सकता है। आप शोधकर्ता, वकील, कम्युनिकेटर आदि के रूप में विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र(सीएसई), डेवलपमेंट आल्टरनेटिव वातोवरन जैसे गैरसरकारी संगठनों तथा टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीच्यूट (टीईआरआई) जैसी अनुसंधान संस्थाओं, सरकारी एजेंसियों और विश्व प्रकृति निधि तथा संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में कार्य कर सकते हैं।
अनेक कंपनियों में विशेष सेल हैं, जो पर्यावरण पर केंद्रित हैं। एसोचैम, फिक्की, सी3 ऐसे प्रमुख कॉरपोरेट हाउस हैं, जहां पर्यावरण सेल हैं। अनेक गैर सरकारी संगठन ग्रामीण विकास के क्षेत्र में युवा स्वयंसेवियों के प्रशिक्षण में कार्यरत हैं। सीएसई में स्वयंसेवियों का कार्यक्रम चलाया जाता है, जहां स्वयंसेवी शोधकर्ताओं तथा अन्य व्यावसायिकों के साथ मिलकर कार्य करते हैं।
आप पर्यावरण विज्ञान में अध्ययन के बाद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित भारतीय वन सेवा परीक्षा में बैठ सकते हैं।
इस क्षेत्र में कार्य कर रहे अधिकांश संगठन उत्तम संप्रेषण कौशल वाले स्नातकों को प्राथमिकता देते हैं। गैर सरकारी संगठन में शुरू-शुरू में पांच हजार से सात हजार रुपये तक पारिश्रमिक मिल जाता है। परियोजनाओं के आधार पर बाद में अच्छा वेतन मिल सकता है। कॉरपोरेट क्षेत्र अधिक पारिश्रमिक देता है। ग्रामीण प्रबंधक को शुरू में थोड़ा कम पारिश्रमिक मिलता है। जहां तक पारिश्रमिक की सीमा का संबंध है, यह अनंत है।
(कैरियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें" से लिया गया है।)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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