एक राजा जो कभी नहीं कर पाया राज
काठमांडू , 28 मई (आईएएनएस)। विश्व के एक मात्र हिंदू राष्ट्र के राजा से आज औपचारिक रूप से गणराज्य घोषित नेपाल के एक आम नागरिक बनने की राजा ज्ञानेंद्र की कहानी शेक्सपियर के किसी भी त्रासद नाटक पर भारी पड़ सकती है।
काठमांडू , 28 मई (आईएएनएस)। विश्व के एक मात्र हिंदू राष्ट्र के राजा से आज औपचारिक रूप से गणराज्य घोषित नेपाल के एक आम नागरिक बनने की राजा ज्ञानेंद्र की कहानी शेक्सपियर के किसी भी त्रासद नाटक पर भारी पड़ सकती है।
पूर्व मंत्री गोपालमान श्रेष्ठ ने कहा, "वह नेपाल का मैकबेथ है।" श्रेष्ठ का मानना है कि ज्ञानेंद्र ने निरंकुश आकांक्षाओं और खराब निर्णयों के द्वारा अपने पतन को आमंत्रित किया।
एक राजा के रूप में ज्ञानेंद्र अपने महत्वपूर्ण फैसलों के लिए ज्योतिषियों की राय पर निर्भर रहते थे। वह दो बार नेपाल का राजा बने लेकिन कभी भी स्वतंत्र रूप से राज नहीं कर पाए।
राजा ज्ञानेंद्र को राजगद्दी पहली बार तब प्राप्त हुई जब वह केवल तीन वर्ष के थे। उनके दादा त्रिभुवन, राजा महेंद्र और बड़े भाई बीरेंद्र के भारत में शरण लेने के बाद प्रधानमंत्री मोहन शमशेर जगं बहादुर राना ने बालक ज्ञानेंद्र को राजा घोषित कर दिया था।
यद्यपि भारत के समर्थन से राजा त्रिभुवन ने 1951 में वापस लौटकर पुन: राजगद्दी संभाल ली।
नेपाल के शाही महल में 2001 में हुए हत्याकांड के बाद ज्ञानेंद्र को एक बार फिर राजा बनने का अवसर मिला।
अपने शासन में पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया और सारी शक्तियां खुद ग्रहण कर ली।
इसके बाद नेपाल में माओवादियों ने राजशाही के उन्मूलन के लिए अपना आंदोलन तेज कर दिया। लोकतंत्र समर्थक हल्कों में भी राजा के निरंकुश शासन के प्रति असंतोष से भी उनको लाभ पहुंचा।
अप्रैल 2006 में सभी राजनैतिक दलों द्वारा राष्ट्रव्यापी बंद के कारण राजा को अपने अधिकार छोड़ने पर बाध्य होना पड़ा। कार्यवाहक सरकार और माओवादियों के बीच हुए शांति समझौते के अनुसार संविधान सभा की पहली बैठक में ही राजशाही के अंत पर निर्णय लिया जाना था।
संविधान सभा के चुनावों में माओवादियों के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बाद से ही राजा के भविष्य का अंत दिखाई देने लगा था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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