नेपाली गोरखा अब भारतीय सेना का हिस्सा नहीं रहेंगे!
नई दिल्ली, 12 मई (आईएएनएस)। देश के पहले फील्ड मार्शल जनरल एस.एच.एफ.जे. मानेकशॉ बहादुर गोरखा सैनिकों के सम्मान के लिए खुद को सैम बहादुर कहा जाना पसंद करते थे।
नई दिल्ली, 12 मई (आईएएनएस)। देश के पहले फील्ड मार्शल जनरल एस.एच.एफ.जे. मानेकशॉ बहादुर गोरखा सैनिकों के सम्मान के लिए खुद को सैम बहादुर कहा जाना पसंद करते थे।
मानेकशॉ ने गोरखाओं की बहादुरी की प्रशंसा करते हुए कहा था, "यदि कोई व्यक्ति कहता है कि उसे किसी चीज से डर नहीं लगता, तो समझिए कि वह या तो झूठ बोल रहा है या फिर वह गोरखा है।" गोरखाओं की इसी बहादुरी को देखते हुए भारतीय सेना में उन्हें भारी संख्या में भर्ती किया जाता है।
लेकिन अब भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं का भविष्य अनिश्चित हो गया है। क्योंकि माओवादियों के शीर्ष नेता प्रचंड ने 25 अप्रैल को काठमांडू में संवाददाताओं से कहा है कि वह नेपाली गोरखाओं को भारतीय सेना में काम करने की अनुमति नहीं देंगे।
प्रचंड के इस कथन से दोनों देशों के परंपरागत सैनिक संबंधों के प्रभावित होने की आशंका पैदा हो गई है।
भारतीय सेना में दो तरह के गोरखा सैनिक शामिल हैं। पहले भारतीय नागरिकता प्राप्त गोरखा, इनमें नेपाल से काफी पहले प्रवास करके उत्तर -भारत के तराई इलाके में बसे गोरखाओं के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के गोरखा शामिल हैं।
दूसरी तरह के नेपाली गोरखा सैनिकों की भर्ती 1947 में भारत, नेपाल और ब्रिटेन के मध्य हुई त्रिपक्षीय संधि के तहत की जाती है। इस संधि के प्रावधान के अनुसार नेपाली गोरखा भारत और ब्रिटेन की सेना में काम कर सकते हैं।
भारत में इस समय 40,000 नेपाली गोरखा सैनिक हैं। भारतीय थलसेना के पूर्व प्रमुख जनरल वेदप्रकाश मलिक कहते हैं, "नेपाली गोरखा भारतीय सेना का काफी लंबे समय से अंग बने हुए हैं। यदि उनका सेना में शामिल होना रूक गया तो हमारी सैन्य क्षमता के साथ ही दोनों देशों के संबंध भी प्रभावित होंगे।"
जनरल मलिक का मानना है कि यह सवाल केवल सैनिक क्षमता का ही नहीं हैं बल्कि परंपरा का भी है।"
लेकिन अवकाश प्राप्त मेजर जनरल अफसर करीम राय जनरल मलिक से जुदा है। उन्होंने आईएएनएस से कहा ,"यदि प्रचंड की बात वास्तविकता में बदल जाए और सेना में गोरखा सैनिकों की संख्या में काफी कमी हो जाए तो भी भारतीय सेना की कार्यकुशलता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। "
नेपाल के युवाओं के लिए भारतीय सेना रोजगार का बड़ा माध्यम है। इसके अलावा नेपाल में भारतीय सेना से अवकाश प्राप्त गोरखाओं की भी भारी संख्या है जिनका जीवन पेंशन पर ही आश्रित है।
भारत में गोरखा रेजिमेंट की पहली बटालियन का गठन सन 1815 में ब्रिटिश शासन काल के दौरान किया गया था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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