शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. यही पंक्तियां कहते-कहते क्रांतिवीर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल उत्तर प्रदेश की गोरखपुर जिला जेल में 80 वर्ष पहले फांसी पर झूल गये थे.
वो
बिस्मिल
थे...
देश
को
गुलामी
की
जंज़ीरों
से
रिहाई
दिलाने
वाले
अमर
क्रान्तिकारियों
में
पं.
रामप्रसाद
बिस्मिल
का
नाम
सबसे
ऊपर
लिखा
जाता
है.
उत्तर
प्रदेश
की
गोरखपुर
जिला
जेल
बिस्मिल
के
जीवन
के
आखिरी
दिनों
की
साक्षी
है.
बिस्मिल
वर्ष
1897
में
उत्तर
प्रदेश
के
मैनपुरी
में
पैदा
हुए
थे.
उनके
पिता
का
नाम
पं.
मुरलीधर
था
और
बचपन
से
ही
उनके
दिल
में
अंग्रेजों
के
अत्याचार
के
खिलाफ
नफरत
समा
गयी
थी.
सरकारी
खजाने
को
लूटा
उन्होंने
जब
अंग्रेजों
के
खिलाफ
होने
वाली
गतिविधियों
एवं
आन्दोलनों
में
हिस्सा
लेना
शुरु
किया
तो
जीवन
पर्यन्त
पीछे
मुड़कर
नहीं
देखा.
वर्ष
1916
में
उनकी
मां
ने
उन्हें
लखनऊ
पढ़ने
के
लिए
भेजा
जहां
से
वे
कांग्रेस
के
अधिवेशन
में
चले
गये.
पं. रामप्रसाद बिस्मिल को इसका अगुआ बनाया गया और नौ अगस्त को इन क्रान्तिकारियों ने सरकारी खजाने को लूटा. इसके बाद अंग्रेज इन लोंगो के पीछे पड़ गए. अंग्रेजों ने बिस्मिल की गिरफ्तारी के प्रयास तेज कर दिये और उन्हें 26 सितम्बर 1925 को गिरफ्तार कर गोरखपुर जेल में डाल दिया. काकोरी ट्रेन डकैती का मुकदमा डेढ़ वर्ष चला और 6 अप्रैल 1927 को इन क्रान्तिकारियों को फांसी की सजा सुना दी गयी.
तुम्हें
मेरी
मौत
की
खबर
मिलेगी
मां!
बिस्मिल
ने
गोरखपुर
जेल
में
डेढ़
वर्ष
गुजारे
और
वहां
से
अपनी
मां
को
पत्र
लिखा.
उन्होंने
लिखा
"तुम्हें
मेरी
मौत
की
दर्दनाक
खबर
सुनायी
जायेगी.
मां
मुझे
यकीन
है
कि
तुम
सहन
कर
लोगी
क्योंकि
तुम्हारा
बेटा
माताओं
की
माता
भारत
माता
की
सेवा
में
जिन्दगी
को
कुर्बान
कर
रहा
है.
उसने
तुम्हारे
परिवार
पर
कोई
आंच
नहीं
आने
दी
बल्कि
उसका
रूतबा
बुलन्द
किया".
इसके बाद 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर की जेल में बिस्मिल को फांसी पर लटका दिया गया. अफसोस की बात है कि देश की आज़ादी की लडाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीदों को आज देश भूलता जा रहा है
(जंग-ए-आजादी के दौरान काकोरी काण्ड के शहीदों के बलिदान दिवस के मौके पर विशेष)