Saffron Farming : 'लाल सोने' की भारी डिमांड, लाखों रुपये कमा रहे किसान, जानिए खेती का तरीका
केसर की खेती (saffron farming) मुनाफे का सौदा है। किसानों को इसकी खेती में लाखों रुपये की आमदनी होती है। जम्मू कश्मीर के अलावा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किसान केसर उगा रहे हैं।
नई दिल्ली, 06 जून : केसर दुनिया में सबसे महंगे पौधे के रूप में जाना जाता है। महंगाई का आलम ये कि केसर को 'लाल सोना' भी कहा जाता है। इसकी खेती से किसान लाखों रुपए की आमदनी कर रहे हैं। कश्मीर के केसर के जीआई टैग मिलने के बाद इसकी खासियत ने लोगों का ध्यान खींचा है। केसर की खेती (saffron farming) वाली जमीनों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से 2010 में राष्ट्रीय सैफ्रॉन मिशन की शुरुआत की गई। 2007 में तत्कालीन जम्मू कश्मीर सरकार ने केसर की खेती वाली जमीनों को किसी और काम के लिए इस्तेमाल करने या बेचने पर रोक लगा दी थी। 2020 में कश्मीर में 30 साल का रिकॉर्ड टूटा, जब 18 टन केसर का उत्पादन हुआ। केसर की गुणवत्ता के आधार पर इंटरनेशनल मार्केट में केसर तीन से पांच लाख रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है। वनइंडिया हिंदी की इस रिपोर्ट में जानिए केसर की खेती का तरीका और केसर की उपयोगिता
केसर की खेती
केसर के फसल की अवधि तीन-चार महीने की होती है। एक बार फूल तैयार होने के बाद किसान कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केसर की कीमत लगातार बढ़ रही है। ऐसे में किसानों को गारंटीड इनकम हो सकती है। केसर की कीमत इसकी क्वालिटी पर निर्भर करती है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केसर की कीमत डेढ़ लाख रुपए से शुरू होकर तीन लाख रुपये प्रति किलो तक जाती है।
कश्मीर के बाहर भी केसर की खेती
भारत में मुख्य रूप से जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में ही केसर की खेती होती है। आमतौर से केसर की खेती के लिए कश्मीर की वादियां पॉपुलर रही हैं, लेकिन अब ग्रीन हाउस जैसे वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग करके केसर उत्तराखंड की हर्षिल घाटी और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में भी उगाया जा रहा है। एक हेक्टेयर जमीन पर केसर के फूल उगाने पर किसानों को ढाई से तीन किलो सूखी केसर मिल जाती है।
अलग-अलग
नामों
से
मशहूर
केसर
केसर
को
कई
अलग-अलग
नामों
से
जाना
जाता
है।
हिंदी
में
केसर
के
अलावा
कश्मीरी
में
कोंग
(Kong),
बंगाली,
पंजाबी
और
ऊर्दू
में
केसर
को
जाफरान
कहा
जाता
है।
सैफ्रॉन
को
गुजराती
में
केशर
(Keshar)
और
संस्कृत
में
असरा
(Asra),
अरुणा
(Aruna),
असरिका
(Asrika)
और
कुमकुम
(Kunkuma)
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
भारत
में
प्रमुख
रूप
से
कश्मीर
में
तीन
प्रजातियों
केसर
की
खेती
हो
रही
है।
केसर
की
इन
किस्मों
के
नाम
एक्विला
सैफ्रॉन
(Aquilla
Saffron),
क्रीमे
सैफ्रॉन
(Creme
Saffron),
और
लाचा
सैफ्रॉन
(Lacha
Saffron)
हैं।
पानी जमा होने से सड़ती है फसल
ठंडे और गीले मौसम में केसर का पौधा अच्छे से विकसित नहीं हो पाता। केसर धूप और सूखे दोनों ही क्षेत्रों में होता है लेकिन केसर के लिए उपयुक्त जलवायु या मिट्टी का प्रकार रेतीली चिकनी बलुई दोमट मिट्टी आदर्श होती है। केसर की खेती दूसरे तरह के मिट्टी में भी आसानी से हो जाती है। जहां पानी आसानी से निकल सके, ऐसी जमीन केसर के उत्पादन के लिए बेहतर मानी जाती है। पानी जमा होने पर केसर के क्रॉम्स (Croms) सड़ जाते हैं और फसल बर्बाद होने लगती है। इसलिए किसान भाइयों को केसर की खेती के लिए जमीन का चुनाव सावधानी से करना चाहिए, जहां पानी न जमा हो।
केसर की खेती में खेत की तैयारी
केसर की खेती से पहले मिट्टी किस तरह तैयार की जाए ये भी बड़ा सवाल है ? हॉर्टिकल्चर से जुड़े लोगों के मुताबिक केसर का बीज बोने से पहले खेत की जुताई करनी चाहिए। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद अंतिम जुताई से पहले गोबर की खाद और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश भी डालना चाहिए। इनके इस्तेमाल से मिट्टी अच्छे से तैयार हो जाती है और उर्वरक पर्याप्त मात्रा में होने से केसर की फसल अच्छी होती है। एक हेक्टेयर जमीन में 20 टन गोबर की खाद 60 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश और 90 किलो नाइट्रोजन डालना चाहिए। हालांकि, अब सॉइल हेल्थ कार्ड जैसी स्कीम भी उपलब्ध है। ऐसे में किसानों को मिट्टी की जांच कराने के बाद ही उर्वरक या जरूरत पड़ने पर केमिकल का इस्तेमाल करना चाहिए।
केसर की रोपाई का सही समय
किसी भी फसल की खेती में सबसे महत्वपूर्ण सवाल इसकी रोपाई के समय का होता है ऐसे में केसर की रोपाई किस समय की जाए यह किसानों के लिए जानना बहुत जरूरी है। केसर की फसल की रोपाई का सही समय जुलाई से अगस्त के बीच का है, लेकिन मध्य जुलाई में केसर की रोपाई सबसे बेहतरीन मानी जाती है। केसर के क्रॉम्स (Croms) लगाते समय ध्यान रखना चाहिए कि 6 से 7 सेंटीमीटर का गड्ढा कर दो बीजों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर बनी रहे। ऐसा करने से क्रॉम्स को अच्छे से फैलने का मौका मिलता है और पराग भी अच्छी मात्रा में मिलते हैं।
केसर की सिंचाई
किसी भी खेती में सबसे अहम सवाल सिंचाई का भी होता है। ऐसे में केसर में कितने पानी की जरूरत होती है ये जानना भी जरूरी है। केसर की फसल को 10 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है। बीज लगाने के कुछ दिन बाद हल्की बारिश होने पर सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन अगर बारिश नहीं हो रही तो 15 दिन के इंटरवल पर दो से तीन बार सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के दौरान इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए की केसर की क्यारियों में पानी का जमाव ना हो। पानी का जमाव होने पर पानी निकलने का इंतजाम तत्काल करना जरूरी है। ऐसा न करने पर केसर की फसल सड़ने की आशंका होती है।
भारत के बाहर केसर की खेती
केसर की खेती से जुड़े कृषि मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2015 के बाद केसर का उत्पादन बढ़ा है। हालांकि, 2014 की बाढ़ के बाद 2017 में भी केसर के उत्पादन में भारी गिरावट आई थी। इन सबके बावजूद केसर की खेती कई देशों में की जा रही है। भारत शीर्ष तीन उत्पादकों में शामिल है। 2020 में केसर के उत्पादन में 30 साल का रिकॉर्ड टूटने का दावा किया गया।
विदेश
में
केसर
का
उत्पादन
केसर
के
फूलों
का
रंग
पर्पल
होता
है
और
इसमें
छह
पंखुड़ियां
होती
हैं।
हाल
के
दिनों
मैं
कश्मीर
के
अलावा
उत्तराखंड
की
हर्षिल
घाटी
और
यूपी
के
बुंदेलखंड
में
भी
केसर
की
सफल
खेती
की
खबरें
आई
हैं।
ग्रेटर
कश्मीर
डॉट
कॉम
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक
भारत
के
अलावा
ईरान,
स्पेन
इटली,
ग्रीस,
फ्रांस,
तुर्की,
इजराइल,
चीन,
अजरबैजान
और
जापान
जैसे
देशों
में
भी
केसर
की
खेती
की
जा
रही
है।
इन
देशों
में
ईरान,
स्पेन
और
भारत
में
बड़े
पैमाने
पर
किसान
सैफ्रॉन
फार्मिंग
कर
रहे
हैं।
इन
तीन
देशों
में
केसर
का
उत्पादन
बड़े
पैमाने
पर
हो
रहा
है।
केसर की खेती में खरपतवार नियंत्रण
खेती में खरपतवार एक बड़ी चुनौती होती है। केसर की क्यारियों में किस तरह की निगरानी की जरूरत है, अच्छा मुनाफा कमाने के लिए किसानों का यह जानना बहुत जरूरी है। केसर की क्यारी में अक्सर जंगली घास निकल जाते हैं। इन्हें निकालते रहना जरुरी है, क्योंकि केसर के पौधों के विकास में घासों से अड़चन आती है। केसर अच्छे से विकसित हों इसके लिए प्रतिदिन कम से कम 8 घंटे की धूप भी जरूरी है। केसर अच्छे से विकसित हो रहा है इसकी पहचान क्रॉम्स से पौधे निकलकर बड़ा होना है। जब पौधे बड़े हो रहे हों तो उसमें हर दूसरे दिन सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
कहां
से
खरीदें
केसर
के
बीज
केसर
के
बीज
कहां
से
खरीदें
?
यह
भी
एक
जरूरी
सवाल
है।
किसान
भाई
केसर
के
बीज
खरीदने
के
लिए
ऑनलाइन
ई
कॉमर्स
पोर्टल
का
सहारा
ले
सकते
हैं।
इसके
अलावा
राज्य
के
हॉर्टिकल्चर
यानी
बागवानी
विभाग
से
संपर्क
कर
भी
केसर
के
बीजों
का
इंतजाम
किया
जा
सकता
है।
केसर के फूल खिलने के बाद तुड़ाई
अक्टूबर के पहले सप्ताह में केसर के पौधों में फूल लगने शुरू हो जाता हैं। इस समय कीट-पतंगों से बचाव के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है। पराग नहीं निकलने पर केसर भी नहीं निकलेगी। केसर के फूल खिलने के दूसरे दिन ही तोड़ लिए जाते हैं। फूलों को सूखने में ज्यादा समय नहीं लगता। तीन-चार घंटे में ही केसर के फूल सूख जाते हैं। फुल सुखाने के बाद फूलों से केसर निकाले जाते हैं। केसर की क्वालिटी बनी रहे इसके लिए इन्हें कंटेनर में रखा जाता है। पूरी फसल कटने के बाद केसर को धूप में अच्छे से सुखाया जाता है। फिर बाजार में भेजा जाता है। केसर की पैदावार के आधार पर इसकी पैकिंग की जाती है और नजदीकी मंडियों में बेचा जाता है। डिजिटाइजेशन के दौर मैं अब केसर की ऑनलाइन मार्केटिंग भी की जा रही है।
केसर के उपयोग
केसर की खेती में महिलाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। सैफ्रॉन प्रोडक्शन के मद्देनजर ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी को कम खर्च में बेहतर नतीजा देने वाला भी माना जाता है। इससे नई चीजें सीखने के अवसर के अलावा रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं। यह भी जानना दिलचस्प है कि केसर का उपयोग कहां-कहां होता है। आमतौर से केसर का उपयोग दूध में या दूध से बनने वाले मीठे पकवानों में किया जाता है। इसका उपयोग फ्लेवर और कलरिंग कंपोनेंट यानी रंग लाने के लिए भी किया जाता है। मुगलई खाने में केसर का उपयोग फ्लेवर और सीजनिंग एजेंट के रूप में किया जाता है। आयुर्वेद में केसर का उपयोग बुखार ठीक करने के लिए किया जाता है। परफ्यूम और कॉस्मेटिक यानी सौंदर्य प्रसाधनों में केसर प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इतनी विविधता और डिमांड की अधिकता को देखते हुए कहा जा सकता है कि केसर की खेती किसानों को मालामाल कर सकती है।
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