
Morbi bridge tragedy: आरोपियों को नहीं मिलेगी जमानत, अदालत ने खारिज की अर्जी
morbi bridge collapse tragedy: गुजरात में मोरबी केबल ब्रिज हादसे में 135 लोग मारे गए थे। हादसे का जिम्मेदार उस कंपनी के मैनेजर और कर्मचारियों को माना गया, जिसके पास ब्रिज के रख-रखाव का जिम्मा था। पुलिस ने इस मामले में आठ आरोपियों को जेल भेजा। आरोपियों की ओर से अदालत में जमानत अर्जी दाखिल की गई, आज अदालत ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। जिला सरकारी वकील विजय जानी ने इस बारे में जानकारी मीडिया को दी।

अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया
सरकारी वकील विजय जानी ने कहा कि, 30 अक्टूबर को पुल ढहने के मामले में गिरफ्तार किए गए 9 में से 8 आरोपियों को मोरबी की सत्र अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है। 8 के अलावा नौवें आरोपी देवप्रकाश सॉल्यूशंस के देवांग परमार, जिसे पुल मरम्मत का ठेका मिला था, की जमानत याचिका पर आज फैसला आने की उम्मीद है। विजय ने कहा, "प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश पीसी जोशी ने आठ आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। हालांकि, अभी विस्तृत आदेश का इंतजार है।"

आरोपियों में ये शामिल
अदालत में जिन लोगों ने जमानत याचिका दायर की थी, उनमें ओरेवा ग्रुप के दो प्रबंधक दिनेश दवे और दीपक पारेख, उपठेकेदार प्रकाश परमार, टिकट बुकिंग क्लर्क और सुरक्षा गार्ड, मनसुख टोपीया, महादेव सोलंकी, अल्पेश गोहिल, दिलीप गोहिल और मनसुख चौहान शामिल थे।

'क्लर्कों के बीच कोई समन्वय नहीं था'
बता दें कि, अब से पहले सोमवार को उनकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए, अभियोजन पक्ष ने एक फोरेंसिक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें पुष्टि हुई थी कि पुल के केबल जंग खा गए थे, एंकर टूट गए थे और केबल को एंकर से जोड़ने वाले बोल्ट ढीले थे। पुल की जर्जर स्थिति को जानने के बावजूद 30 अक्टूबर को उसे खोल दिया गया। अभियोजन पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि सुरक्षा गार्ड वास्तव में श्रमिक ठेकेदार थे जिन्हें भीड़ प्रबंधन में कोई विशेषज्ञता नहीं थी। इसके अलावा, पुल के प्रत्येक कोने पर टिकट जारी करने वाले दो बुकिंग क्लर्कों के बीच कोई समन्वय नहीं था।