CM Hemant Soren: होली के बाद पैतृक गांव पहुंचे मुख्यमंत्री, पारंपरिक रीति-रिवाज से हुआ स्वागत
मुख्यमंत्री के आने पर रामगढ़ की उपायुक्त माधवी मिश्रा और पुलिस अधीक्षक पीयूष पांडेय ने उनका स्वागत किया और उन्हें पौधा देकर होली की बधाई दी।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन होली की रात अचानक 8.30 बजे अपने पैतृक गांव पहुंचे। गोला प्रखंड के नेमरा गांव में मुख्यमंत्री त्योहार में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, मां रुपी सोरेन सहित अन्य रिश्तेदार भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री के इस दौरे के मद्देनजर इलाके में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गये हैं।
मुख्यमंत्री
का
पारंपरिक
ढंग
से
हुआ
स्वागत
रामगढ़
की
उपायुक्त
माधवी
मिश्रा
और
पुलिस
अधीक्षक
पीयूष
पांडेय
ने
मुख्यमंत्री
का
स्वागत
किया
और
उन्हें
पौधा
देकर
होली
की
बधाई
भी
दी।
परिजनों
और
गांव
के
लोगों
ने
मुख्यमंत्री
हेमंत
सोरेन
सहित
उनके
परिवार
का
पारंपरिक
रीति-रिवाज
लोटा
पानी
के
साथ
जोरदार
तरीके
से
स्वागत
किया।
मुख्यमंत्री
कई
बार
इस
तरह
के
त्योहार
में
अपने
पैतृक
आवास
का
रुख
करते
हैं।
बाहा
पर्व
में
शामिल
होने
पैतृक
आवास
पहुंचे
हैं
सीएम
मुख्यमंत्री
बाहा
पर्व
में
शामिल
होने
अपने
पैतृक
आवास
पहुंचे
हैं।
इस
पर्व
का
खास
महत्व
है
इसलिए
मुख्यमंत्री
हेमंत
सोरेन
पैतृक
गांव
में
आदिवासी
समाज
के
लोगों
के
साथ
बाहा
पर्व
में
भाग
लेंगे।
ख्यमंत्री
के
आगमन
की
खुशी
में
उनके
गांव
में
जश्न
का
माहौल
है।
मुख्यमंत्री
हेमंत
सोरेन
पूजा
में
शमिल
हो
सकते
हैं।
सुरक्षा
के
पुख्ता
इंतजाम
मुख्यमंत्री
के
आगमन
के
बाद
कार्यक्रम
की
वृहद
तैयारी
की
जा
रही
है।
जाहेर
स्थान
की
साफ-सफाई
की
जा
रही
है।
यहीं
पर
मुख्यमंत्री
के
साथ
ग्रामीण
पूजा
में
भाग
लेंगे।
पाहन
श्याम
लाल
सोरेन
मुख्यमंत्री
को
बाहा
पूजा
कराएंगे।
सीएम
के
आगमन
को
लेकर
सिल्ली
मोड़
से
लेकर
नेमरा
तक
चप्पे-चप्पे
पर
पुलिस
व
पैंथर
पुलिस
के
जवानों
की
ड्यूटी
लगाई
थी,
जो
अपनी
ड्यूटी
में
तैनात
थे।
बाहा पोरोब यानी बाहा पर्व संताल, उरांव, मुंडा समेत अन्य जनजातियों का पर्व है। बाहा का अर्थ फूल होता है। इस पर्व में महिला-पुरुष के साथ-साथ बच्चे परंपरागत कपड़े पहनकर मांदर की थाप पर खूब झूमते हैं। बाहा संताल और आदिवासियों का सोहराय के बाद दूसरा बड़ा पर्व है। संताली लोग इस पर्व को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह पर्व पतझड़ के बाद पेड़ों में नई पत्तियों एवं फूल के आने की खुशी में मनाया जाता है। मान्यता है कि हिन्दी नववर्ष के स्वागत के लिए प्रकृति भी पूरी पृथ्वी को सजाती है.।आदिवासी समाज भी प्रकृति के साथ इस खुशी में शामिल होते हैँ।