इंसान का मूल स्वभाव, पसंद, आदतें बदली नहीं जा सकतीं
नई दिल्ली। हर व्यक्ति संसार में जन्म लेने के साथ अपने कुल के गुण और जन्मजात चरित्र लेकर आता है। इन्हीं गुणों से उसके वंश की पहचान होती है। दुनिया में बुजुर्ग और अनुभवी लोग हर नए इंसान से मिलते ही, उससे कुछ देर बात करते ही उसके मूल के बारे में जान जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि ये चरित्र और व्यवहारगत गुण बदले नहीं जा सकते। यदि बहुत कोशिश की जाए, तो इन्हें कुछ देर के लिए छिपाया अवश्य जा सकता है, किंतु मूल स्वभाव, पसंद, आदतें बदली नहीं जा सकतीं।
आज इसी संदर्भ में एक मनोरंजक कथा सुनते हैं...
बहुत समय पहले की बात है। एक ऋषि जंगल से जा रहे थे। मार्ग में उन्हें एक चुहिया दिखी, जिसे कौए परेशान कर रहे थे। ऋषि को उस पर दया आ गई और उन्होंने अपने कमंडल से जल लेकर चुहिया पर छिड़क कर कुछ मंत्र पढ़े। उनके तप के प्रभाव से देखते ही देखते चुहिया एक छोटी सी बालिका में बदल गई। ऋषि ने उसे अपनी कन्या बना लिया और उसका पालन पोषण करने लगे। समय के साथ वह बालिका बड़ी हो गई तो ऋषि के मन में उसके विवाह की बात आई। उन्होंने बेटी से पूछा कि उसे कैसा वर चाहिए। बिटिया ने कहा कि वह संसार के सबसे ताकतवर व्यक्ति से विवाह करना चाहती है।
सूर्यदेव संसार में सबसे शक्तिशाली
बेटी की बात सुनकर ऋषि ने सोचा तो उन्हें सूर्यदेव संसार में सबसे शक्तिशाली ज्ञात हुए। वे बेटी को लेकर सूर्य भगवान के पास गए और उनसे अपनी इच्छा बताकर विवाह का प्रस्ताव रखा। सूर्यदेव ने कहा कि मैं आपकी पुत्री से विवाह करके बहुत प्रसन्न होता, किंतु मैं सर्वशक्तिशाली नहीं हूं। बादल मुझसे अधिक ताकतवर हैं, वे पलक झपकते ही मुझे ढंक लेते हैं। उनकी बात सुनकर ऋषि बादल के पास अपना प्रस्ताव लेकर पहुंचे। बादल ने भी प्रसन्नता दिखाते हुए कहा कि पवनदेव मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं। उनके वेग से मैं पलभर में अपना स्थान छोड़ने को मजबूर हो जाता हूं। ऋषि अपनी बिटिया को लेकर पवनदेव के पास गए और उन्हें समस्त घटनाक्रम सुनाया। उनकी बात सुनकर पवनदेव ने कहा कि ऋषिवर! मैं शक्तिवान हूं, पर पर्वत मुझसे अधिक ताकत रखते हैं। वे मेरा रास्ता रोक लेते हैं और मुझे अपनी दिशा बदलनी पड़ती है। मैं आज तक किसी पर्वत को रंच मात्र हिला नहीं पाया हूं।
पर्वतराज के पास पहुंचे ऋषि
अब ऋषि बिटिया समेत पर्वतराज के पास पहुंचे और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। पर्वतराज ने असमर्थता जताते हुए कहा कि ऋषिवर! मैं विवाह करने को तो तैयार हूं, पर मैं भी सबसे शक्तिशाली नहीं हूं। मुझसे शक्तिशाली तो छोटा सा चूहा है, जो मेरी जड़ कुतर डालता है और मैं ढह जाता हूं। पर्वतराज की बात सुनते ही ऋषि की कन्या चहक उठी और बोली, बस पिताजी, ये चूहा ही दुनिया का सबसे शक्तिशाली प्राणी मालूम पड़ रहा है। मैं इसी से विवाह करना चाहती हूं।
व्यक्ति का चरित्र और उसके वंशगत गुण बदले नहीं जा सकते
बेटी की बात सुन ऋषि को बरबस हंसी आ गई और सहज ही उनके मुख से निकल गया कि व्यक्ति का चरित्र और उसके वंशगत गुण बदले नहीं जा सकते। ऐसा कहकर उन्होंने अपने कमंडल से जल लेकर बिटिया पर छिड़क दिया। इसके साथ ही वह वापस अपने मूल जन्म रूप में बदल कर चुहिया बन गई और पर्वत के नीचे घूम रहे चूहे के साथ उसके बिल में चली गई। ऋषि भी मुस्कुराते हुए, प्रकृति की, सृष्टि की और परमपिता की शक्ति का स्मरण करते हुए अपनी राह चले गए।
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