Success Mantra : सफल होना है तो बहरे बन जाइए
नई दिल्ली। जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब कोई व्यक्ति आगे बढ़ने के लिए, उन्नति के लिए नए प्रयास करने का विचार बनाता है। अपने मन को पक्का कर लेने के बाद वह अपने परिचितों, ईष्ट मित्रों या रिश्तेदारों से सलाह मशविरा करता है कि उसका विचार या योजना कितनी सटीक है या उसकी राह में कौन सी बाधाएं आ सकती हैं? यहां तक तो सब ठीक चलता है, लेकिन इस बिंदु पर आकर अक्सर ऐसा हो जाता है कि कोई परिचित टोक देता है कि यह योजना सफल नहीं होने वाली। कोई रिश्तेदार बोल देता है कि यह काम तुम्हारे बस का नहीं। कोई दोस्त बोल देता है कि कहां के फंदों में पड़ रहे हो, कुछ नहीं होने वाला। बस, यहीं से उस व्यक्ति के हतोत्साहित होने का सिलसिला चालू हो जाता है।
अब वह लाख कोशिश करे, पर उसमें काम करने का उत्साह बचता ही नहीं। सबके कहने सुनने में आकर वह हथियार डाल देता है और वहीं का वहीं रह जाता है। इसके बाद वह जीवन में कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। उसके मन में हमेशा यह बात अटकी रहती है कि मैं ऐसा या वैसा कर सकता था, पर कर ना सका, अब जरा ये सोचिए कि क्या होता, अगर उस व्यक्ति ने दूसरों की सलाह सुनी ही नहीं होती। यदि उसने अपनी क्षमता पर विश्वास करके अपने मन का कार्य शुरू किया होता तो हो सकता है कि वह सफल हो जाता। ऐसा भी हो सकता है कि वह असफल हो जाता, पर मन में कुछ ना करने का अफसोस तो ना रह जाता।
इसी संदर्भ में आज एक मेंढक की कथा का आनंद लेते हैं
किसी जंगल में एक बड़ा सा तालाब था। उसमें भारी तादाद में मेंढक रहा करते थे। वे अक्सर ही मन बहलाने के लिए कई खेल खेला करते थे। एक बार उनके राजा ने एक प्रतियोगिता रखी। उसने कहा कि तालाब के बीच में जो लंबा सा खंभा है, जो भी मेंढक उसके अंतिम सिरे तक चला जाएगा, वह ईनाम पाएगा। राजा की बात सुनते ही सब मेंढक खंभे की तरफ भागे। खंभा बहुत साल पुराना था और काई के कारण एकदम चिकना हो गया था। कई मेंढकों ने उस पर चढ़ने की कोशिश की । खंभे की फिसलन के कारण कोई मेंढक फिसल जाता, तो कोई दूसरे की टांग पकड़ के उसे नीचे गिरा देता। काफी समय बीत गया, पर किसी भी मेंढक को चढ़ने में सफलता ना मिली। तभी सबने देखा कि एक छोटा सा मेंढक बराबर चढ़ने का प्रयास कर रहा है। वह गिरकर भी हार नहीं मान रहा हैं। सभी मेंढक एक सुर से चिल्लाने लगे- रूको, मत चढ़ो। वह खंभा एकदम चिकना है। उस पर कोई नहीं चढ़ सकता। तुम तो छोटे से हो, तुममे ताकत नहीं है। यह काम तुम्हारे बस का नहीं है।
मेंढकों का मुंह बन गया
वह छोटा मेंढक दूरारों की बात पर ध्यान ना देकर लगातार प्रयास करता गया। आखिर में शाम तक वह खंभे के अंतिम छोर तक जा पहुंचा। उसे विजयी देखकर सभी मेंढकों का मुंह बन गया। राजा ने उसे अपने पास बुलाकर पीठ थपथपाते हुए पूछा कि सब तुम्हें रोक रहे थे, पर तुमने किसी की बात ना मानी, किसी की तरफ देखा तक नहीं, क्यों? जवाब उसकी मां ने दिया- मेरा बेटा बहरा है महाराज। वह किसी की बात सुन नहीं सकता। राजा ने हंसते हुए कहा, यही इसकी ताकत है। अगर इसने दूसरों की बात सुन ली होती, तो इसकी हिम्मत टूट गई होती और दूसरों की तरह यह भी कभी सफल नहीं होता।
दूसरों के कहने में आकर कभी अपने प्रयास ना छोड़ें
हंसी मजाक में भी मेंढक राजा ने बड़े काम की बात कह दी। जो दूसरों की सलाहों में उलझे रहते हैं, वे कभी अपना आसमान नहीं पा सकते। दूसरों के कहने में आकर कभी अपने प्रयास ना छोड़ें। अधिक से अधिक क्या होगा? आप असफल ही होंगे ना, वो भी कब तक? एक दिन सफलता आपको अवश्य मिलेगी, लेकिन उसके लिए पहले चलना तो शुरू कीजिए।