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Mahashivratri 2022: शिव पूजन में मुद्राओं का प्रयोग पूजा को बनाता है सफल
नई दिल्ली, 23 फरवरी। भगवान शिव वैसे तो मानसिक पूजन से ही प्रसन्न होने वाले देव हैं लेकिन शास्त्रों में समस्त देवी-देवताओं के पूजन की तरह शिव पूजन के लिए भी मुद्राओं का प्रयोग करना बताया गया है। पूजन में मुद्राओं का प्रयोग करने से पूजन की सफलता में कोई संदेह नहीं रह जाता है। शिव पूजन में दस प्रकार की मुद्राएं प्रयुक्त की जाती हैं।
इससे पहले षडगन्यास कर्म संपन्न करने के दौरान छह प्रकार की मुद्राएं प्रयुक्त की जाती हैं। षडगन्यास की छह मुद्राएं इस प्रकार हैं-
- हृदय मुद्रा : दोनों हाथ की मुठ्ठियां बंदकर अंगूठों को बाहर निकालें और उन्हें मिलाकर हृदय का स्पर्श करें।
- . शिरो मुद्रा : तर्जनी को अलग रख मुठ्ठी बंद कर शिरोभाग का स्पर्श करें।
- शिखा मुद्रा : तर्जनी और कनिष्ठिका अंगुली को अलग रख बंद की गई मुठ्ठी से शिखा का स्पर्श करें। इस मुद्रा में तर्जनी नीचे की ओर तथा कनिष्ठिका उर्ध्वमुखी रहती है। इसमें दोनों तर्जनी के तथा दोनों कनिष्ठिका के अगले भाग मिले हुए रहते हैं। इस शिखामुद्रा के द्वारा सर्वविघ्नों का शमन होता है।
- कवच मुद्रा : अंगूठों के अगले पर्व को मिलाकर तर्जनी को त्रिभुजाकार रूप देते हुए सिर से हृदय तक लाने से अभयदायक कवच मुद्रा बनती है।
- नेत्र मुद्रा : हाथों को नेत्रों के समीप ले जाकर कनिष्ठिका को अंगूठे से समाविष्ट कर दें। इसके बाद मध्यमा को सीधी रखकर शेष अंगुलियों को नीचे की ओर थोड़ा झुका देने से नेत्र मुद्रा बनती है। इस मुद्रा के द्वारा भूत पिशाचादि का निवारण होता है।
- अस्त्र मुद्रा : दोनों हाथों की हथेलियों से ताली बजाने से अस्त्र मुद्रा होती है।
Maha Shivratri 2022: पढ़ें भगवान शिव की आरती और पाएं सुख-शांति
- शिव पूजन की दस मुद्राएं इस प्रकार हैं-
- लिंग मुद्रा : दाहिने हाथ के अंगूठे को सीधा रखकर बाकी चारों अंगुलियों को आपस में गुंथित कर लें। पुन: बाएं अंगूठे को दाहिने अंगूठे के मूल भाग पर लगा लें तो लिंग मुद्रा बन जाती है।
- योनि मुद्रा : दोनों कनिष्ठिकाओं, तर्जनियों तथा अनामिकाओं को परस्पर मिला लें। अब अनामिका को मध्यमा से पहले थोड़ा मिलाकर उन्हें सीधा करें। इसके अनंतर दोनों अंगूठों को एक-दूसरे के ऊपर स्थापित कर दें। इसे योनिमुद्रा कहते हैं।
- त्रिशूल मुद्रा : अंगूठों के साथ दोनों कनिष्ठिकाओं को मिलाकर शेष अंगुलियों को सीधी खड़ी करें।
- अक्षमाला मुद्रा : दोनों तर्जनियों और अंगूठों के अग्रभाग मिला देने पर यह मुद्रा बन जाती है।
- वर मुद्रा : दाहिनी हथेली को नीचे की ओर झुकाकर हाथ को विस्तीर्ण कर दें। इसे वर मुद्रा कहते हैं।
- अभय मुद्रा : बाएं हाथ को ऊपर की ओर करके हथेली को खुली छोड़ दें तो अभय मुद्रा हो जाती है।
- मृग मुद्रा : अनामिका तथा अंगूठे को मिलाकर उस पर मध्यमा अंगुली का स्थापन करें। शेष दोनों अंगुलियां ऊपर की ओर एक सीध में खड़ी रखें।
- खट्वांग मुद्रा : दाहिने हाथ की पूरी अंगुलियों को आपस में जोड़कर उर्ध्वमुख करें। यह मुद्रा शिव को परम प्रिय है।
- कपालाख्य मुद्रा : बाएं हाथ को पात्र के समान गहरा बनाकर उसे बाएं अंक में रखकर उठा लें। इसे कपाल मुद्रा कहते हैं।
- डमरू मुद्रा : दाहिने हाथ की मुठ्ठी हल्की सी बंद कर मध्यमा को उठाकर कान के निकट तक ले जाएं।
English summary
Mahashivratri festival on March 1, every wish will be fulfilled by worshiping Lord Shiva.
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