Jaya Ekadashi 2020: जानिए जया एकादशी का महत्व और पूजा विधि
नई दिल्ली। व्रतों में सर्वश्रेष्ठ कहे गए एकादशी के व्रत के समान कोई अन्य व्रत नहीं। इसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने व्रतों में राजा कहा है। प्रत्येक एकादशी व्रत किसी न किसी श्रेष्ठ उद्देश्य की पूर्ति करने में सहायक होता है। माघ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली जया एकादशी समस्त एकादशियों में बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सर्वत्र जीत दिलाती है। जया एकादशी के बारे में कहा जाता है कि जहां मनुष्य का भाग्य भी साथ नहीं देता, वहां जया एकादशी का व्रत प्रत्येक काम में जीत दिलाने में मदद करता है। जया एकादशी 5 फरवरी 2020 बुधवार को आ रही है। इस एकादशी के दिन गन्ने के रस का फलाहार किया जाता है।
जया एकादशी व्रत की कथा
श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'जया एकादशी" कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इसका व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक जया एकादशी का व्रत रखता है वह ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से भी छूट जाता है तथा भगवान विष्णु की कृपा से उसे जीवन के समस्त सुखों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। कथा के अनुसार एक समय नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, योगी और दिव्य पुरूष उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व गायन कर रहा था और पुष्यवती नामक गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी। इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गई। माल्यवान को आकर्षित करने के लिए पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर मदमस्त होकर नृत्य करने लगी। माल्यवान भी गंधर्व कन्या की भाव भंगिमा देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया। इससे उसके सुर ताल बिगड़ गए।
पुष्यवती और माल्यवान पर गुस्साए इंद्र
सभा में मौजूद इंद्र को पुष्यवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध आया। उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दुःखी थे उस दिन वे केवल फलाहार पर रहे। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी, इसालिए दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे, लेकिन अधिक ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गई और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गई। अब माल्यवान और पुष्यवती पहले से भी सुंदर हो गए और स्वर्ग लोक में समस्त ऐश्वर्यों के साथ उन्हें स्थान मिल गया। देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गए और पिशाच योनि से मुक्ति का कारण पूछा? माल्यवान ने कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इंद्र इससे अति प्रसन्न् हुए और कहा कि आप स्वयं पालनकर्ता के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय हैं। आप स्वर्ग में आनंद पूर्वक विहार करें।
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कैसे करें जया एकादशी व्रत
शास्त्रों में बताया गया है कि इस जया एकादशी व्रत के दिन पवित्र मन से भगवान विष्णु की पूजा करें। मन में द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना नहीं लानी चाहिए। नारायण स्तोत्र एवं विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। जो लोग इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे।
जया एकादशी के प्रभाव
- जया एकादशी व्रत करने नीच योनि से मुक्ति मिलती है।
- जिस कार्य की सफलता का संकल्प लेकर यह व्रत किया जाए, वह अवश्य पूरा होता है।
- यह एकादशी मनुष्य के भाग्य को प्रबल बनाती है।
- धन-संपत्ति, सुख, वैभव की प्राप्ति होती है।
- भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष प्राप्त होता है।
एकादशी कब से तक
- एकादशी तिथि प्रारंभ 4 फरवरी को रात्रि 9.48 बजे से
- एकादशी तिथि पूर्ण 5 फरवरी को रात्रि 9.30 बजे तक
- एकादशी का पारण 6 फरवरी को प्रातः 6.38 से 8.40 तक
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