Chaturmas 2019: शिव परिवार के हाथ रहेगा सृष्टि का संचालन
नई दिल्ली। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार माह का समय चातुर्मास कहलाता है। यही समय वर्षाकाल का भी होता है। इसलिए इन चार माह में खानपान से लेकर समस्त प्रकार के संयम रखना होते हैं, ताकि शरीर को किसी भी प्रकार के रोग ना घेर लें। ये चार माह धर्म, कर्म, व्रत-उपवास, ईश्वर का ध्यान, साधना, मंत्र जप और दान धर्म के अत्यंत पवित्र माने गए हैं। इस वर्ष चातुर्मास का प्रारंभ 12 जुलाई को होगा और समापन 8 नवंबर को होगा।
चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल होता है
चातुर्मास भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। इस दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। इसलिए इन चार माह के दौरान विवाह, यज्ञोपवित, मुंडन आदि मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं, लेकिन इस दौरान घर का निर्माण प्रारंभ, गृह प्रवेश, उग्रदेवता की प्रतिष्ठा, नवीन दुकान का उद्घाटन, वाहनों का क्रय-विक्रय किया जा सकता है। चातुर्मास का महत्व जैन और बौद्ध धर्मों में भी माना जाता है। चातुर्मास के दौरान जैन मुनि भ्रमण बंद करके एक ही जगह निवास करते हैं।
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शिव परिवार के हाथ रहेगा सृष्टि का संचालन
धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान विष्णु के हाथ में रहता है, लेकिन उनके शयनकाल में चले जाने के कारण सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव और उनके परिवार पर आ जाता है। इसलिए चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े व्रत-त्योहार आदि मनाए जाते हैं। श्रावण माह पूरा भगवान शिव को समर्पित रहता है। इसमें श्रद्धालु एक माह उपवास रखते हैं। बाल-दाढ़ी नहीं कटवाते हैं। शिव मंदिरों में विशेष अभिषेक पूजन आदि संपन्न किए जाते हैं। इसके बाद भादव माह में दस दिनों तक भगवान श्रीगणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके बाद आश्विन माह में देवी दुर्गा की आराधना शारदीय नवरात्रि के जरिए की जाती है।
चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व
चातुर्मास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये चार माह खानपान में अत्यंत सावधानी बरतने के होते हैं। ये चार माह बारिश के होते हैं। इस समय हवा में नमी काफी बढ़ जाती है जिसके कारण बैक्टीरिया, कीड़े, जीव जंतु आदि बड़ी संख्या में पनपते हैं। सब्जियों में जल में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। खासकर पत्तेदार सब्जियों में कीड़े आदि ज्यादा लग जाते हैं। इस लिहाज से इन चार माह में पत्तेदार सब्जियां आदि खाने की मनाही रहती है। इस दौरान शरीर की पाचनशक्ति भी कमजोर हो जाती है। इसलिए संतुलित और हल्का, सुपाच्य भोजन करने की सलाह दी जाती है।
चातुर्मास में क्या करें
- देव पूजन, रामायण पाठ, भागवत कथा पाठ और श्रवण आदि के लिए चातुर्मास का विशेष दिन होते हैं। इस दौरान धर्म-कर्म, दान के कार्य किए जाते हैं।
- आषाढ़ के महीने में अंतिम पांच दिनों में भगवान वामन की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
- आषाढ़ के बाद शुरू होता है श्रावण माह। श्रावण माह में भगवान शिव की विशेष उपासना की जाती है।
- श्रावण के बाद भाद्रपद माह भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को समर्पित होता है। इस माह में इन दोनों देवताओं की विशेष कृपा पाने के लिए विशेष व्रत, उपवास, पूजा करना चाहिए।
- इसके बाद आता है आश्विन माह। यह माह देवी और शक्ति की उपासना का माह होता है।
- इसके बाद आता है कार्तिक माह। कार्तिक माह देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु को समर्पित माह है। इस माह में महालक्ष्मी पूजा और भगवान विष्णु के जागने का समय होता है।
- इस लिहाज से चातुर्मास के ये चार माह शास्त्रों में विशेष फलदायी कहे गए हैं।
- चातुर्मास के दौरान वर्षाकाल रहता है। इसलिए खानपान में विशेष सावधानी रखना चाहिए। शास्त्रों का निर्देश है कि चातुर्मास में केवल एक वक्त हल्का भोजन करना चाहिए।
- इन चार माह में सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए संयमों का पालन करना चाहिए।
- महर्षि पतंजलि द्वारा बताए गए अष्टांग योग का पालन चातुर्मास में अवश्य करना चाहिए। ये आठ अंग हैं, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनमें से समाधि को छोड़कर सात अंगों का पालन तो करना ही चाहिए। समाधि संतों के लिए है।
- चातुर्मास में हरी पत्तेदार सब्जियां, शाक आदि का सेवन करने से बचें।
- श्रावण में शाक, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का सेवन नहीं किया जाता है।
- इन माह में जल का अधिक से अधिक सेवन करें।
- इन माह में जितना हो सके एक जगह निवास करते हुए ईश्वर भक्ति में लीन रहें।
चातुर्मास में कैसा हो खानपान
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