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Baikunth or Vaikuntha Chaturdashi 2019: खुलेंगे बैंकुंठ के द्वार, होगा हरिहर मिलन

By Pt. Gajendra Sharma
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नई दिल्ली। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। देवोत्थान एकादशी के बाद यह कार्तिक माह का प्रमुख दिन होता है, जिस दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा भी की जाती है। इस वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी 11 नवंबर 2019 को आ रही है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को सौंपने के लिए उनसे भेंट करते हैं। इसलिए इस दिन को हरिहर मिलन के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शिव और विष्णु दोनों की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान विष्णु के परमधाम बैकुंठ के दरवाजे सभी प्राणियों के लिए खुले रहते हैं इसलिए इसे बैकुंठ चतुर्दशी कहा गया है।

मानक दिन है बैकुंठ चतुर्दशी

मानक दिन है बैकुंठ चतुर्दशी

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। उन्हें पीतांबर, मुकुट आदि पहनाकर उनका सुंदर श्रृंगार किया जाता है। धूप-दीप, चंदन तथा पुष्पों से पूजन किया जाता है। इस दिन श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णुसहस्त्रनाम और श्री सूक्त का विशेषतौर पर पाठ किया जाता है। इस दिन विष्णु भगवान को कमल के पुष्प अर्पित करने का बड़ा महत्व होता है। विष्णु के साथ शिव की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करके चंदन, अष्टगंध का लेप किया जाता है। बेल, धतूरे, आंक के फूलों से श्रृंगार करके दूध से बनी मिठाई का नैवेद्य लगाया जाता है।

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मनुष्यों के लिए भगवान विष्णु से मुक्ति का मार्ग पूछने के लिए नारद जी उनके समीप पहुंचते हैं। नारद जी के पूछने पर विष्णु जी कहते हैं कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो प्राणी श्रद्धा-भक्ति से मेरी और शिव की पूजा करते हैं, उनके लिए बैकुंठ के द्वार खुल जाते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का पालन करें। 108 कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करें। इस दिन दीपदान का महत्व है। चतुर्दशी के दिन सायंकाल में किसी पवित्र स्वच्छ नदी या तालाब में 14 दीपक लगाकर जल में प्रवाहित करें।

कमल पुष्प का क्या है महत्व

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु और शिव की भेंट का दिन होता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार एक बार विष्णु जी काशी में भगवान शिव की आराधना करते हुए उन्हें एक हजार स्वर्ण कमल चढ़ाने का संकल्प करते हैं। जब अनुष्ठान का समय आता है, तो शिव परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं। एक पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपनी एक आंख निकालकर शिवजी को अर्पित करते हैं। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न् होकर उन्हें कमल नयन और पुंडरीकाक्ष नाम देते हैं और भगवान विष्णु को कोटि सूर्यों की कांति के समान सुदर्शन चक्र प्रदान करते हैं।

उज्जैन में होता है हरिहर मिलन

उज्जैन में होता है हरिहर मिलन

भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हरिहर मिलन महोत्सव आयोजित किया जाता है। पुराणोक्त मान्यता के अनुसार चार माह देवशयनी एकादशी से लेकर देव प्रबोधिनी एकादशी तक भगवान विष्णु धरती का कार्यभार शिव को सौंपकर क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं। इस दौरान भगवान शिव ही धरती और धरतीवासियों को संभालते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन शिव यह कार्यभार पुन: विष्णु को सौंप देते हैं। इस अवसर पर उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी धूमधाम से निकालकर गोपाल मंदिर पहुंचती है। यहां पर दोनों एक-दूसरे की प्रिय वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं। वर्ष का यह एकमात्र दिन होता है जब महाकाल को चढ़ने वाले आंकड़े के फूल और माला विष्णु अवतार गोपाल जी को अर्पित की जाती है, वहीं महाकाल को भी विष्णु भगवान की प्रिय तुलसी अर्पित की जाती है। इन अनूठे हरिहर मिलन को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु साक्षी बनते हैं।

चतुर्दशी तिथि कब से कब तक

  • चतुर्दशी तिथि प्रारंभ- 10 नवंबर सायं 4.33 बजे से
  • चतुर्दशी तिथि पूर्ण- 11 नवंबर सायं 8.01 बजे तक

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English summary
Vaikuntha Chaturdashi is a Hindu holy day, which is observed on chaturdashi, the 14th lunar day of the waxing moon fortnight (shukla paksha) of the Hindu month of Kartik.
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