Atithi Devo Bhava: पढ़ें कपोत युगल का अतिथि सत्कार, मजेदार है ये किस्सा
Atithi Devo Bhava: अतिथि देवो भव: भारतीय सभ्यता व संस्कृति के जीवन दर्शन का एक प्रमुख सूत्र है। इसी भावना के अनुरूप ब्रह्म पुराण में कपोत युगल की एक कथा बड़ी प्रसिद्ध है। एक दिन एक बहेलिया वन में शिकार करने गया और उसने अपने जाल में एक कबूतरी व अन्य बहुत से पक्षियों को पकड़कर बांध लिया। शीत ऋतु का समय था। पक्षियों को पकड़ने में उसे बहुत देर हो गई और सूर्यास्त हो गया। थका-मांदा भूख से पीड़ित वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठ गया। अंधकार होने से वह रास्ता भी भूल गया था। परिवार की चिंता और भूख प्यास से वह अर्द्धमूर्छित सा हो गया।
संयोग से जिस वृक्ष के नीचे उसने आश्रय लिया उसी वृक्ष पर कपोती का घोंसला था और उसका पति कपोत वहीं बैठा विलाप कर रहा था। पति को पहचान कर तुरंत ही कपोती बोली हे नाथ! यद्यपि इस बहेलिये ने मुझे पिंजरे में बंदी बना लिया है किंतु फिर भी सूर्यास्त होने पर यह अनायास ही हमारे घोंसले के नीचे आकर बैठ गया है अत: यह हमारा अतिथि है। यह ठंड और क्षुधा से पीड़ित है। आप अतिथि देवो भव: की परंपरा के अनुसार आतिथ्य धर्म का निर्वाह करें। इसकी सेवा करना हमारा धर्म है।
कपोत अपनी पत्नी की बातों से प्रभावित हुआ और उसने बहेलिये से कहा किहे आतिथि रूप व्याध! तुम मेरे घर आए हो और दारुण कष्टमय दशा में हो अत: तुम तनिक ठहरो मैं अभी तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करता हूं। यह कहकर कपोत उड़ गया और शीघ्र ही जली हुई लकड़ी ले आया और उसे अन्य लकड़ियों के ढेर पर रख दिया। धीरे-धीरे अग्नि प्रज्वलित हो गई। व्याध को शीत का प्रकोप कम हुआ और उसमें चेतना लौटने लगी। अब उसके लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए जलती हुई अग्नि में कपोत ने स्वयं को समर्पित कर दिया। कपोत की यह अतिथि सत्कार की भावना देखकर व्याध आश्चर्य चकित रह गया और स्वयं को धिक्कारने लगा। उसने तुरंत कपोती को मुक्त कर दिया। कपोती यह सब देख ही रही थी उसने मुक्त होते ही तुरंत अपने पति का अनुसरण करते हुए स्वयं को भी अग्नि में समर्पित कर दिया।
उसी समय आकाश में दिव्य प्रकाश फैला और कपोत युगल को अतिथि सत्कार का इतना पुण्य प्राप्त हुआ कि वे देवता के समान दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक की ओर चले गए। गोदावरी नदी के तट पर आज भी वह स्थान कपोत तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
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