मेरठ में सधे शब्दों से सबको साध गए अखिलेश यादव, गीता को बताया सबसे बड़ी पुस्तक
मेरठ। प्रतिमा अनावरण के कार्यक्रम को चुनावी जनसभा में बदल देने वाले अखिलेश यादव भीड़ देखकर न सिर्फ 35 मिनट तक बोलते रहे, बल्कि क्रांति, नौजवान, किसान व बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं का भी ख्याल रखा। भाजपा सरकार के खिलाफ ललकारने वाले शब्द ढूंढ-ढूंढकर बोलते रहे तो हस्तिनापुर के बहाने गीता को दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तक बताया। स्वामी ओमवेश का नाम मंच पर बैठने वालों की सूची में नहीं था उन्हें अखिलेश ने देखकर मंच पर बुलाया और बोलने का मौका दिया।
23 मार्च को शहीद दिवस के अवसर पर क्रांतिकारी धनसिंह कोतवाल का भी जिक्र किया तो शहीद भगत सिंह व उनके साथियों का भी। उसी बहाने नौजवान व किसानों को समझाते रहे। कहा कि भगत सिंह सोशलिस्ट क्रांतिकारी थे और सपा भी सोशलिस्ट है। ऐसे में इस बार समाजवादियों की मदद कीजिए। यह भी कहा कि जो भारत को विश्व गुरु का सपना दिखा रहे हैं वे ही युवाओं को बेरोजगार कर रहे हैं। ऐसे लोगों के झांसे में न आएं। सपा का साथ दें क्योंकि सपा के आने पर उप्र की बड़ी भूमिका देश में होगी। आजादी की लड़ाई के समय जो एकजुटता थी उससे जोड़ते हुए कहा कि एकजुटता अब भी जरूरी है। धन सिंह भी किसान थे। अंग्रेजों के समय किसानों ने ही सबसे ज्यादा दर्द सहा है। इस समय भी बार्डर पर किसानों के बेटे हैं। किसान ही अर्थव्यवस्था बचा रहा है। किसान अब खुद को बचाने के लिए आंदोलन कर रहा है। सपा ने हर तरह से इस आंदोलन में साथ दिया। उन्होंने इन सब बातों को घुमाकर चुनाव की बात की। हस्तिनापुर को सरकार बनने पर बड़ा पैकेज देने की घोषणा की। अतुल प्रधान समेत जितने भी अन्य प्रत्याशी चुनाव में आएंगे उन्हें जिताने की अपील की। धर्म की तरफ भी मोड़ा और कहा कि जिस तरह से सभी धर्म व जाति ने मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी थी। उसी तरह से इस बार सभी मिलकर सपा की सरकार बनाएं।
और जब अतुल प्रधान, शाहिद मंजूर को अखिलेश ने हटाया
अखिलेश यादव जब मंच पर संबोधन के लिए उठे तब उनके पीछे खड़े होने के लिए पूर्व कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर आ गए। उन्हें देख अखिलेश यादव ने उन्हें हटा दिया। शाहिद मंजूर जब वहां से हटाए गए तब अखिलेश यादव के ठीक पीछे अतुल प्रधान खड़े हो गए। इस पर भी उन्होंने असहज महसूस किया और अतुल प्रधान को भी हाथ बढ़ाकर हटा दिया। बहरहाल, संयोजक होने के नाते के उनके आसपास ही रहे।
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