‘डंके की चोट पर’ किसने रखी बात - अमित शाह या नितिन गडकरी?
नई दिल्ली। नितिन गडकरी डंके की चोट पर जो बात आज कहने का दावा कर रहे हैं, वही बात उन्होंने तब क्यों नहीं कही जब बीजेपी झूठे सपने दिखा रही थी? नितिन गडकरी आज बीजेपी को आईना दिखा रहे हैं। तब उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया जब 2014 के आम चुनाव में बीजेपी सपने को हकीकत बताते हुए जुमले बांट रही थी? आश्चर्य की बात ये है कि जब बीजेपी को 2019 में वही सपने दिखाने के लिए जवाब देना पड़ रहा है तो बीजेपी नेतृत्व का अभिन्न हिस्सा रहे नितिन गडकरी खुद सवाल पूछ रहे हैं?
सपने दिखाने वालो में गडकरी क्यों नहीं?
नितिन गडकरी का ताजा बयान ये है कि सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं। पर, दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। बात सच है। मगर, यह ज्ञान नितिन गडकरी को पांच साल बाद हुआ है, यह आश्चर्य की बात है। नितिन गडकरी ने अपने इसी बयान में यह भी कहा है, मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं, जो भी बोलता हूं वह डंके की चोट पर बोलता हूं। बस, यहीं पर नितिन गडकरी राजनीतिक रूप से ईमानदारी बरतते नहीं दिख रहे हैं। मैं यानी कौन? ‘मैं' यानी ‘बीजेपी नेता' नहीं! गडकरी जी, एक नेता के रूप मेंआपके अस्तित्व की वजह ही बीजेपी है। इसलिए आपको बोलना चाहिए था- बीजेपी सपने दिखाने वाली पार्टी नहीं है, जो भी पार्टी बोलती है वह डंके की चोट पर बोलती है। आप खुद को बीजेपी से अलग कैसे कर सकते हैं?
अमित शाह ने डंके की चोट पर मानी थी जुमले की बात
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भले ही कहा हो कि सत्ता में आने के बाद हर अकाउन्ट में 15 लाख रुपये देने की की बात जुमला थी। मगर, इस स्वीकारोक्ति में ईमानदारी तो थी! पूरी बीजेपी की ओर से उन्होंने ऐसा कहा था। किसी दूसरे नेता की आज तक मजाल नहीं हुई कि वह अमित शाह की बात को गलत बता सके। बीजेपी अध्यक्ष ने भी डंके की चोट पर जुमले वाली बात कबूल की थी। काश! नितिन गडकरी ने भी उसी बात को डंके की चोट पर दोहराया होता! अगर बीजेपी सपने दिखा रही थी, तो उस पार्टी मे शामिल कोई नेता ऐसा नहीं कह सकता कि 'मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं...।' गडकरीजी, जब पूरी बीजेपी सपने दिखा रही थी और आप चुप थे। न सिर्फ चुप थे, बल्कि सपने की वजह से बनी सरकार के नवरत्न भी हुए। आपके डंके की चोट किसी ने न 2014 में सुनी, ना उस दौरान जब मोदी सरकार के आप नवरत्न बने रहे। फिर आपने सपने दिखाने वाली पार्टबीजेपी के नेताओं से खुद को अलग कैसे कर लिया?
क्या गडकरी को जनता की पिटाई का सता रहा है डर?
क्या आपने जनता की पिटाई के डर से डंका पीटना शुरू किया है? ताकि आपको व्हिसिल ब्लोअर समझ लिया जाए? कहीं ये जनता की पिटाई का डर तो नहीं! अगर गडकरीजी को डंके की चोट पर कहना ही है तो वो कहें कि सपने बांटने वाली पार्टी के नेतृत्वकारी लोगों में वे भी शामिल थे। इसलिए जनता की पिटाई के डर से वे भागने वालों में नहीं हैं। गडकरीजी एक ऐसे समय में बीजेपी नेतृत्व पर हमला कर रहे हैं जब नेतृत्व को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। बुरे का हश्र बुरा होता है। सपने दिखाने वालों को जनता जवाब देती है और देगी। मगर, सपने दिखाने वाली बीजेपी में कोई नेता चाहे वे नितिन गडकरी ही क्यों न हों, जनता से बच नहीं बच पाएंगे, ऐसा भी नहीं लगता। कुछ समय पहले नितिन गडकरी ने फ़िल्म अभिनेता नाना पाटेकर के साथ मंच साझा करते हुए मराठी भाषा में एक बयान दिया था जिसका आशय ये था कि बीजेपी को सत्ता में आने का विश्वास नहीं था, इसलिए नेताओं से कहा गया था कि खूब वादे करो। मगर, अब
जब सत्ता में आ गये तो वही वादे मुसीबत बन गये।
क्या बीजेपी से खुद खुद को अलग मानते हैं नितिन गडकरी?
क्या नितिन गडकरी बताएंगे कि बीजेपी का मतलब क्या है? केंद्र में परिवहन मंत्रालय सम्भाल रहे नितिन गडकरी खुद बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं। क्या वे अपने आपको बीजेपी से अलग मानते हैं? खूब वादे करने का निर्देश किसने दिया? क्या किसी खास नेता ने या फिर बीजेपी की किसी अहम बैठक में? यह बात नितिन गडकरी को भी स्पष्ट करनी चाहिए और बीजेपी के बाकी नेताओं को भी। अगर सपने दिखाने का निर्णय किसी का व्यक्तिगत निर्णय था, तब भी 5 साल बाद उसे व्यक्तिगत नहीं कहा जा सकता। अगर तब उस निर्णय का अगर नितिन गडकरी ने कभी
विरोध किया था, तो उसका ब्योरा सामने आना चाहिए क्योंकि उसी ब्योरे पर नितिन गडकरी के बयान का मतलब भी सामने आ पाएगा। अन्यथा 15 लाख को जुमला बताने वाले अमित शाह को डंके की चोट पर कबूलनामा माना जाएगा न कि ऐसे जुमलों से खुद को अलग रखने की कोशिश कर रहे नितिन गडकरी को?
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