ओपिनियन: दुनिया को समाधान देने का विराट मंच है कुंभ
नई दिल्ली। कुंभ की छटा विश्व में बिखेरने के लिए तीर्थराज प्रयाग पूरी तरह तैयार है। देशभर के श्रद्धालुओं के साथ ही विदेशी तीर्थयात्री व पर्यटक भी प्रयागराज पहुंचने लगे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार कुंभ के माध्यम से भारतीय संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान व अध्यात्म की गौरवमयी विरासत को दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने का प्रयास कर रही है। इसकेधार्मिक व आध्यात्मिक पक्ष तो हैं ही, देश के पर्यटन उद्योग और हजारों सालों भारत की ज्ञान-विज्ञान की परंपरा, समावेशी व्यवहार, विविधता में एकता और वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को फलीभूत करने का सशक्त माध्यम भी है।
मकर संक्रांति से शुरू होकर 4 मार्च तक चलने वाले इस महा आयोजन में पहली बार इसके उद्देश्यों और माहात्म्य को साकार करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने राज्य के अयोध्या, वाराणसी, इलाहाबाद, वृंदावन और लखनऊ में जीवन और समाज के सात आयामों पर विचार कुंभ लगाए।
राचीन काल से ही कुंभ विश्व की सबसे प्राचीन वह सांस्कृतिक विरासत है, जहां ज्ञान, तर्क, विज्ञान, धर्म व अध्यात्म एवं समाज के विषयों पर मंथन के लिए ऋषियों-मुनियों, साधु-संन्यासियों, समाज को नेतृत्व प्रदान करने वाले वर्ग, बुद्धिजीवियों और ज्ञान-पिपासुओं का संगम होता रहा है और इस संगम में चिंतन और मंथन से मानव के लिएउपयोगी विचार, नीति, सिद्धांत व मार्गदर्शी व्याख्याएं निकल कर आती रही हैं।
हालांकि, इधर के कुछ दशकों में कुंभ को केवल एक मेला के रूप में देखने और दिखाने की प्रवृत्ति के कारण इसके मूल स्वरूप व उद्देश्यों को दुनिया के सामने पहुंचाने के प्रयास नहीं किए गए। इसे केवल धर्म के खांचे में बांधकर इसकी प्रासंगिकता को हानि पहुंचाने की कोशिश की गयी। वर्तमान सरकार इस कुंभ को लोगों के लिए विचारऔर चिंतन के उसी स्वरूप में लाकर देश और समाज में सुधार के सूत्रों के प्रतिपादन का माध्यम बना रही है। यही वजह है कि कुंभ प्रारंभ होने से पूर्व राज्य सरकार की ओर सात आयामों पर विचार कुंभ, युवा कुंभ, समरसता कुंभ व सांस्कृति कुंभ का आयोजन तय हुआ।
विचार कुंभ में सद्भाव, पर्यावरण, महिला शक्ति, सर्व समावेश, नेत्र कुंभ और युवा कुंभ में अपने-अपने क्षेत्र के विद्वानों, आचार्यों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं, चिकित्सकों, अभियंताओं, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, खेल, कला व साहित्य क्षेत्र के दिग्गजों, बुद्धिजीवियों, युवा व महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्यरत सामाजिककार्यकर्ताओं के साथ विचार मंथन किए गए।
कुंभ का वास्तविक स्वरूप भी यही है और वर्तमान समय में विश्व को इसकी आवश्यकता है। देश-दुनिया में तमाम ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं, जो मानव जाति के लिए खतरे की आशंका उत्पन्न कर रही हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। असहिष्णुता, धर्मांधता, आतंकवाद, हथियारों की होड़, परमाणु बम व अन्य खतरनाक हथियारों कोइकट्ठा करने की सनक, साम्राज्यवादी मानसिकता, पर्यावरण पर मानवजनित खतरा व प्रदूषण जैसी राक्षसी प्रवृत्तियां दुनियाभर में बढ़ी हैं। इन समस्याओं के अनेक कारणों में बड़ा कारण इंटरनेट व कृत्रिम बुद्धिमता की लत में आभासी दुनिया में जीने के कारण प्रकृति व वास्तविकता से दूर होना भी है।
आज के विज्ञान के मनुष्य को चेतनायुक्त न मानकर भौतिक व रासायनिक कारकों से ही उत्पन्न शरीर समझकर व्याख्याओं के कारण विश्व अनेक समस्याओं की ओर धकेल दिया गया है। जबकि प्राचीन भारतीय विज्ञान परंपरा मनुष्य की चेतना को आधार मानकर ही उसके सूक्ष्म व स्थूल तत्वों के आधार पर वैज्ञानिक चिंतन, अविष्कार वव्याख्याएं प्रस्तुत करती थी, जिससे प्रकृति के साथ और प्रकृति के अनुकूल व्यवस्थाएं बनती थीं। किंतु आधुनिक तकनीक व विज्ञान के दौर में प्रकृति से मनुष्य की दूरी बहुत बढ़ गयी है। इस दौर में मनुष्य आभासी व संदिग्ध माध्यमों में जीने लगा है। आधुनिक तकनीक ने सूचनाओं का प्रवाह इतना तीव्र व अप्राकृतिक कर दिया है कि इनकेजाल में फंसकर मनुष्य का मोहरा बन जाना आसान है। खासकर जब इस सशक्त माध्यम का दुरुपयोग कर गुमराह करने वालों की संख्या इसके सदुपयोग करने वालों की संख्या से कई गुना अधिक हो।
ऐसे
में
केंद्र
की
मोदी
सरकार
और
राज्य
की
भाजपा
सरकार
द्वारा
कुंभ
से
पूरी
दुनिया
को
परिचित
कराने
का
प्रयास
मानवता
को
ज्ञान-विज्ञान
और
समाधान
देने
का
लक्ष्य
समेटे
हुए
है।
ग्रहों
व
नक्षत्रों
की
वैज्ञानिक
गणना
पर
आधारित
समय
पर
कुंभ
प्रत्येक
छह
वर्ष
पर
तथा
12
वर्ष
पर
महाकुंभ
लगता
है।
प्रयागराज,
हरिद्वार,
उज्जैन
औरनासिक
में
कुंभ
लगता
है।
कुंभ
मेला
किस
स्थान
पर
लगेगा
यह
ग्रहों
की
राशि
तय
करती
है।
उदाहरण
के
लिए,
निर्धारित
नियमों
के
अनुसार
प्रयाग
में
कुंभ
तब
लगता
है
जब
माघ
अमावस्या
के
दि
न
सूर्य
और
चन्द्रमा
मकर
राशि
में
होते
हैं
और
गुरू
मेष
राशि
में
होता
है।
इसी
तरह
अन्य
स्थानों
पर
कुंभ
लगने
के
समय
का
निर्धारण
पूर्ण
वैज्ञानिकतरीके
से
होता
है।
कुंभ के आयोजन का इतना वैज्ञानिक आधार और इतना विराट उद्देश्य है। ऐसे में कुंभ जैसे आयोजन मानव के विकास और समस्याओं के समाधान तलाशने की दिशा में वरदान होंगे। इस अवसर पर दुनियाभर के लोगों का साथ बैठकर सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व आध्यात्मिक विषयों पर पंथ निरपेक्ष व तटस्थ होकर विचार मंथन से सारेसंसार के लिए अमृत निकल सकता है।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)