Silicon Valley Bank: स्टार्टअप्स के लिए खतरे की घंटी है सिलिकॉन वैली बैंक का पतन
सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) के साथ जो हुआ उससे पूरी दुनिया के स्टार्ट अप प्रभावित होंगे। इसे आप इकोनॉमी का मेटा इको इफेक्ट कह सकते हैं।
Silicon Valley Bank: सिलिकॉन वैली बैंक जिस तरह से दिवालिया हुआ उस पर इस बैंक का कोई वश नहीं था। पूर्व में इसके द्वारा लिए गए वित्तीय निर्णय वर्तमान में बदल रहे आर्थिक इकोसिस्टम से मेल नहीं खा पाये और वह धराशायी हो गया। लेकिन इसके धराशायी होने से इसका प्रभाव सिर्फ अमेरिका तक रहेगा, ऐसा नहीं है। पूरी दुनिया का स्टार्टअप इको सिस्टम इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यही इसका मेटा इको इफेक्ट है।
सिलिकॉन वैली बैंक के पतन का ताजा आंकलन यही है कि संसारभर के स्टार्टअप इकोसिस्टम में बड़ी हलचल होने वाली है। दुनिया आज एक ऐसे जाल में बंधी है, जिसमें किसी भी आर्थिक घटना का खासकर अमेरिका के किसी वित्तीय प्रतिष्ठान से जुड़ी हुई घटना का प्रभाव वैश्विक होता है। यह ठहरे हुए पानी में कंकड़ मारने जैसा है। इसकी लहर दूर किनारे तक आती है।
कोरोना के बाद जब निवेशक हाथ तंग कर रहे थे तभी स्टार्टअप कंपनियों के टॉपलाइन एप्रोच की समीक्षा होनी शुरू हुई। चारों तरफ से विमर्श शुरू हुआ कि स्टार्टअप कंपनियां ओवरवैल्यूड हैं। यह नंबर और टर्नओवर देखती हैं, बॉटम लाइन प्रॉफिट एप्रोच यदा कदा ही रहता है। इससे स्टार्टअप कंपनियां डिफेंसिव मोड में चली गईं। कोरोना, रूस यूक्रेन युद्ध, मंदी, महंगाई के क्रमिक कारणों से बैंकों ने ब्याज दर बढ़ाना शुरू किया। ब्याज दर बढ़ने से ऋण और जमा दोनों के ब्याज बढ़ने लगे। स्टार्टअप कंपनियां दोहरी मार झेलने लगीं। उनमें निवेश करने वाले निवेशकों और फंड के पास बढ़े ब्याज पर निवेश के विकल्प के कारण उनकी तरफ निवेश का फ्लो कम होने लगा।
स्टार्टअप कंपनियां जब नगदी की कमी झेलने लगीं तो उन्होंने बैंकों से अपना पैसा निकालना चाहा। सिलिकॉन वैली बैंक जिसके सबसे अधिक ग्राहक टेक और स्टार्टअप कंपनियां थी उनके इस अप्रत्याशित व्यवहार ने बैंक के सामने संकट खड़ा कर दिया। स्टार्टअप कंपनियां जहां अपना जमा किया पैसा निकालने लगीं, वहीं जिन स्टार्टअप कंपनियों को ईएमआई देना था उन्हें उसे देने में दिक्कत होने लगी। ब्याज दर बढ़ने के कारण कई स्टार्टअप के लिए मार्केट से फंड उठाना मुश्किल हो गया। इसके कारण सिलिकॉन वैली बैंक के नगदी निकासी में वृद्धि और जमा में गिरावट होने लगी।
इस संकट से निपटने के लिए बैंक ने अपने कई निवेश को मजबूरन ऐसे समय में बेच दिया, जब उनकी कीमत काफी नीचे चल रही थी। सिलिकॉल वैली बैंक ने अपने पास आये जमा की काफी कम राशि को अपने पास रखा, बाकी को रिटर्न के लालच में निवेश कर दिया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सिलिकॉन वैली बैंक जिसके पास 2021 में 189 अरब डॉलर का डिपॉजिट था, उसने पिछले कुछ सालों में अरबों डॉलर के बॉन्ड खरीदे थे। 8 मार्च को जब बैंक ने बताया कि उसने कई सिक्योरिटीज को घाटे में बेच दिया और इससे उसे भारी नुकसान हुआ तो अफरातफरी मच गई और बैंक से ग्राहकों ने पैसे निकालने शुरू कर दिये। बैंक ने ग्राहकों से पैसे नहीं निकालने की अपील भी की जिसने आशकांओं को और संकट दोनों को बढ़ा दिया।
अपनी नगदी स्थिति मजबूत करने के लिए बैंक ने 2.25 अरब डॉलर के नए शेयर बेचने की घोषणा की और इससे कई बड़ी कैपिटल फर्मों में डर का माहौल बन गया और फर्मों ने कंपनियों को बैंक से अपना पैसा वापस लेने की सलाह दी। इन सबके बीच बैंक की मूल कंपनी SVB फाइनेंशियल ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज हुई। 9 मार्च को इसके शेयर करीब 60 फीसदी गिर गए। इससे दूसरे बैंकों के शेयर्स को भी भारी नुकसान हुआ। पहले से मंदी की आशंका से जूझ रही दुनिया में एसवीबी संकट ने तनाव और बढ़ा दिया और दुनिया भर के शेयर बाजार प्रभावित होने लगे।
यह तनाव अभी और बढ़ेगा यह तय है। चूंकि सिलिकॉन वैली बैंक स्टार्टअप्स में निवेश के लिए जानी जाती है इसलिए पूरी दुनिया का स्टार्टप इकोसिस्टम इससे प्रभावित होगा। दुनियाभर के बैंकिंग सेक्टर के शेयर भी इससे प्रभावित होंगे। फिलहाल तो संकट को देखते हुए बैंकिंग रेगुलेटर्स ने फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (FDIC) को इसका रिसीवर नियुक्त किया है, जो बैंक के वित्तीय कामों और जमाकर्ताओं के हितों को देखेगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बैंक में निवेशकों और ग्राहकों की 14 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राशि जमा है, लेकिन समस्या यह है कि इनमें से 89 फीसदी राशि का बीमा नहीं हुआ है। इन पैसों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अब FDIC के पास ही है।
रिसीवरशिप का आमतौर पर मतलब है कि एक बैंक की जमा राशि को किसी अन्य स्वस्थ बैंक की ओर से ग्रहण किया जाएगा या एफडीआईसी जमाकर्ताओं को बीमित सीमा तक भुगतान किया जाएगा। यह राशि अधिकतम 2,50,000 डॉलर होती है। FDIC के मुताबिक, सिलिकॉन वैली बैंक की कुल संपत्ति 17 लाख करोड़ रुपये (209 बिलियन डॉलर) से ज्यादा है।
एसवीबी अमेरिकी स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिहाज से बड़ा निवेशक था। यह बैंक सिलिकॉन वैली और तकनीकी स्टार्टअप्स में निवेश पर केंद्रित था। इसकी वेबसाइट के अनुसार, इसने कुल अमेरिकी स्टार्टअप के लगभग आधे और अमेरिकी उद्यम-समर्थित तकनीकी और स्वास्थ्य कंपनियों में 44% के साथ कारोबार किया। नेशनल वेंचर कैपिटल एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार, इस बैंक में अधिकांश छोटे बिजनेस के खाते हैं और इनमें प्रति एकाउण्ट 2,50,000 डॉलर की ऐसी धनराशि जमा है जिसका बीमा है। बैंक के दिवालिया होने के बाद ये राशि अब उनके लिए लंबे समय तक उपलब्ध नहीं रहने की आशंका जताई जा रही है, जो संकट को और बढ़ाने वाला है।
दुनिया चूंकि एक जाल में बंधी है इसलिए इस वर्तमान संकट का मेटा-इको इफ़ेक्ट भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम पर पड़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसने भारत में कई स्टार्टअप में निवेश कर रखा है। ऐसे में भारत सरकार भी प्रोएक्टिव हो गई है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने रविवार को बताया कि वह स्टार्टअप के संस्थापकों और सीईओ के साथ अगले सप्ताह बैठक करेंगे, ताकि इस संकट से निबटा जा सके। फिलहाल तो इस मेटा-इको इफ़ेक्ट का लक्षण आधारित इलाज ही करना होगा।
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