Rahul Gandhi on China: चीन पर राहुल गांधी के बयानों को गंभीरता से लेना चाहिए
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही के अपने ब्रिटेन दौरे के दौरान भारत के बारे में जो बातें कहीं, उनका भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार ने तो जोरदार प्रतिकार किया है।
राहुल गांधी ने हाल ही के अपने ब्रिटेन दौरे के दौरान भारत के बारे में जो बातें कहीं, उनका भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार ने तो जोरदार प्रतिकार किया ही, मीडिया में भी उनके खिलाफ खूब लिखा गया। मोटे तौर पर राहुल गांधी ने तीन बातें कही हैं। पहली- चीन अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में घुस आया है और सरकार इस मुद्दे पर सच्चाई को छिपा रही है, संसद में विपक्ष को बोलने नहीं दिया जा रहा। दूसरी- भारतीय लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है, मोदी सरकार तानाशाहीपूर्ण व्यवहार कर रही है, उसने संसद तक को पंगु बना दिया है। अमेरिका और यूरोप को आगे आ कर भारत का लोकतंत्र बचाने के लिए भूमिका निभानी चाहिए। तीसरी- मोदी सरकार ने भारतीय मीडिया को इतना दबाव में ला दिया है कि मीडिया में किसी की सच लिखने की हिम्मत नहीं बची।
क्या हम राहुल गांधी की इन बातों की सिर्फ इसलिए आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने विदेश की धरती पर जाकर भारत की छवि खराब करने की कोशिश की है? भारतीय जनता पार्टी, मोदी सरकार के मंत्रियों और मीडिया में इसी तर्क के साथ राहुल की आलोचना की गई है। इसके अलावा उनकी हर बात का जवाब आपातकाल की याद दिला कर दिया गया है। यह सही है कि उन्हें भारतीय परंपराओं का ख्याल रखना चाहिए था। इससे पहले विपक्ष के नेता विदेश जाकर भारतीय राजनीति की बातें इस तरह नहीं किया करते थे, जैसे वह पिछले छह सात साल से कर रहे हैं।
राहुल गांधी की लोकतांत्रिक और स्वायत्त संस्थाओं और मीडिया की आज़ादी की चिंता जायज हो सकती है, इनमें हनन के कई उदाहरण भी मौजूद हैं। जैसे संसद के सेंट्रल हाल को कंट्रोल करने के लिए बनाई गई जनरल पर्पज कमेटी की बैठक बुलाए बिना सेंट्रल हाल में मीडिया का प्रवेश रोक दिया गया है। संसद के सत्र के दौरान सीनियर पत्रकारों का प्रवेश निलंबित कर दिया गया है। मंत्रालयों में पत्रकारों का प्रवेश बंद कर दिया गया है। सरकारी जांच एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल बढ़ा है, लेकिन राहुल गांधी इन विषयों को भारत में ही उठाएं तो अच्छा रहेगा। विदेशों में उठाने से सरकार की नहीं देश की बदनामी होती है, भारत की छवि को नुकसान पहुंचता है।
विदेशों में राहुल गांधी के भाषणों का इंतजाम 77 साल के सैम पित्रोदा करते हैं, जो शिकागो में रहते हैं और अमेरिकन की तरह सोचते हैं। वह 1966 से 1984 तक अमेरिकन नागरिक थे, 1984 में जब इंदिरा गांधी उन्हें सी-डाट का चेयरमेन बनाकर भारत लाई, तब उन्होंने अमेरिकन नागरिकता छोड़ दी, तब से वह गांधी परिवार से जुड़े हुए हैं। जब जब कांग्रेस की सरकार आती है, वह भारत लौट आते हैं, जब जब कांग्रेस सत्ता से हटती है, वह वापस अमेरिका लौट जाते हैं।
मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल के आख़िरी साल उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। राहुल गांधी शुरू से सैम पित्रोदा की सलाह पर बोलते हैं। सैम पित्रोदा की सलाह पर ही 26/11 के बाद मनमोहन सिंह सरकार ने पाकिस्तान पर हमला नहीं किया था, सैम पित्रोदा की दलील थी कि अगर 8 पाकिस्तानियों ने मुम्बई पर हमला किया, तो उसकी सजा सारे पाकिस्तानी नागरिकों को नहीं दी जा सकती।
सैम पित्रोदा ने ही पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 1984 के सिख विरोधी दंगों पर कहा था कि "हुए तो हुए"। सैम पित्रोदा की सलाह पर ही राहुल गांधी ने पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद बालाकोट पर किए गए सर्जिकल स्ट्राईक के सबूत मांगे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 26 फरवरी को किए गए सर्जिकल एयर स्ट्राईक ने ही चुनाव में कांग्रेस की करारी हार और भाजपा की बंपर जीत तय की थी।
राहुल गांधी विदेशों में जाकर जो कुछ भी बोलते हैं, उसकी पटकथा सैम पित्रोदा ही लिखते हैं, इसलिए पिछले चार साल से उनका कोई विदेशी भाषण ऐसा नहीं रहा, जिसपर भारत में कड़ी प्रतिक्रिया नहीं हुई हो। अब चीन के मामले में राहुल गांधी वही बोल रहे हैं, जो सैम पित्रोदा उन्हें पढ़ाते हैं।
आशंका तो यह है कि 2008 में राहुल गांधी ने कांग्रेस की तरफ से चीन के तत्कालीन उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग और सोनिया गांधी की मौजूदगी में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जिस गोपनीय समझौते पर दस्तखत किए थे, उसका ड्राफ्ट सैम पित्रोदा ने तैयार किया था। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना की तरफ़ से वांग चियारुई ने दस्तख़त किए थे। यह आज तक कांग्रेस कार्यसमिति को भी नहीं बताया गया कि वह क्या समझौता था जिस पर राहुल गांधी ने दस्तखत किए थे।
प्रोटोकाल का किस तरह उलंघन हुआ था, यह याद करना भी जरूरी है। क्योंकि बीजिंग ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में न्योता तो मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को था, लेकिन वीआईपी गैलरी में सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, राबर्ट वाड्रा और उनके दोनों बच्चे दुनिया भर के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों के साथ मौजूद थे, जबकि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नदारद थे।
जब से ये समझौता हुआ है, तब से राहुल गांधी चीन पर ज्यादा बोल रहे हैं, बल्कि उनके हर बयान में चीन को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। जिस तरह उस समझौते को छिपाया गया, उसी तरह डोकलाम पर तनाव के समय राहुल गांधी की चीनी राजदूत से हुई मुलाक़ात को भी छिपाया गया था। तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राहुल गांधी पर चीन के साथ गुपचुप बातचीत करके भारत का पक्ष कमज़ोर करने का आरोप लगाया था।
राहुल गांधी जब कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए थे, चीन के राजदूत ने उनका नेपाल में स्वागत किया था। अपनी मानसरोवर यात्रा के दौरान वह चीन के कई अधिकारियों से मिल आए थे। उनमें से कुछ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के वरिष्ठ नेता भी थे। कोई भी सांसद अपनी विदेश यात्रा के दौरान विदेश मंत्रालय से अनुमति लिए बिना किसी विदेशी अधिकारी से मुलाक़ात नहीं कर सकता, लेकिन गांधी परिवार द्वारा यह सब लगातार जारी है।
सवाल खड़ा होता है कि राहुल गांधी भारत और भारत से बाहर क्या चीन के लिए बैटिंग कर रहे हैं। क्या वह भारत में और भारत से बाहर अमेरिका विरोधी लॉबी तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार के दौरे में राहुल गांधी ने कहा कि रूस ने यूक्रेन से कहा था कि वह अमेरिका और यूरोपियन देशों के साथ अपने संबंध न बढाएं। अगर उसने नाटो का सदस्य बनने और अमेरिका और यूरोपियन देशों से संबंध बढ़ाने की नीति नहीं छोड़ी तो रूस उसके रूसी बोलने वाले दो राज्यों डोनाबास (दोनेस्क और लुहांस्क) और रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण दो अन्य सीमान्त राज्यों खेरसान और जपोरिझिया को रूस में मिला लेगा। यूक्रेन ने अपनी नीति में परिवर्तन नहीं किया, तो रूस ने हमला कर के इन चारों प्रान्तों पर कब्जा कर लिया।
राहुल गांधी का कहना है कि रूस की तरह चीन चाहता है कि भारत अमेरिका के साथ अपने संबध न बढ़ाए, अगर भारत ने अमेरिका से संबंध बढ़ाने की नीति नहीं छोड़ी तो वह सीमान्त इलाकों अरुणाचल और लद्दाख पर कब्जा करेगा। अब यह बात राहुल गांधी ने चीन की तरफ से कही है, जबकि चीन ने खुद यह बात कभी नहीं कही, इससे यह साबित होता है कि वह चीन के लिए बैटिंग कर रहे हैं। विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने राहुल गांधी के इस दावे को हास्यस्पद बताया था।
इसके अलावा राहुल गांधी ने कहा कि चीन की सेना अरुणाचल और लद्दाख में घुस आई है। यह बात राहुल भारत में भी कई बार कह चुके हैं, जिसे विदेश मंत्री जयशंकर, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के भीतर और संसद के बाहर कई बार नकार चुके हैं। एस. जयशंकर ने तो यहां तक कहा कि उनके पिता के नाना के वक्त चीन ने भारतीय जमीन पर कब्जा किया था, अब कोई कब्जा नहीं किया है।
जबकि 20 नवंबर 2019 को अरुणांचल से भाजपा के सांसद तापिर गाव ने भी लोकसभा में दावा किया था कि चीन ने अरुणाचल की 50 किमी से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर रखा है। उन्होंने यह भी कहा था कि अरुणाचल प्रदेश में भी डोकलाम जैसी स्थिति बन सकती है। उन्होंने कहा कि चीन भारतीय क्षेत्र में कब्जा करता है, पर किसी मीडिया में कोई खबर नहीं आती। सदन और राजनीतिक दलों के नेताओं की तरफ से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आती।
राहुल गांधी की चीन से नजदीकियों के चलते उनके दोनों दावों में दम हो सकता है। राहुल गांधी अगर चीन के लिए बैटिंग नहीं कर रहे, तो उन्हें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय को अपने दोनों दावों के पक्ष में सबूत देने चाहिए, ताकि अगर सरकार सो रही है, तो वह नींद से जागे, सीमाओं की रक्षा करे और देश को सही जानकारी दे। क्योंकि राहुल गांधी का यह भी कहना है कि चीन उसी तरह भारत पर हमले की तैयारी कर रहा है, जैसे रूस ने यूक्रेन पर किया है।
अरुणाचल के भाजपा सांसद के बयान और राहुल गांधी के बयान में कोई फर्क नजर नहीं आता। दोनों ने न सिर्फ भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की बात कही है, बल्कि मीडिया के भारी दबाव में होने और तथ्यों को जनता के सामने नहीं रखने की बात भी कही है। इसलिए चीन के बारे में राहुल गांधी की बातों को हवा में उड़ा देना ठीक नहीं होगा। सरकार और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे मिल बैठ कर अपनी अपनी सूचनाओं का आदान प्रदान करें, क्योंकि राष्ट्र सबका है, सिर्फ सत्ताधारी पार्टी का नहीं है।
जिस तरह राहुल गांधी अभी आरोप लगा रहे हैं कि चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख के अंदर घुस आई हैं, इसी तरह एक खबर 2013 में भी आई थी कि चीनी सेना लद्दाख के डेप्सांग, चुमार, पैंगांग सो इलाकों में घुस आई है। पैंगांग में 85 वर्ग किलोमीटर में घुसपैठ की खबर आई थी। खबर यह भी थी कि नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड के प्रमुख श्याम शरण ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें कहा गया है कि इन इलाकों में चीनी फौज भारतीय सेना को गश्त नहीं करने दे रही है।
इस रिपोर्ट में कथित तौर पर यह भी कहा गया था कि चीन ने भारत के 640 किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। श्याम शरण ने अपनी रिपोर्ट में सीमान्त क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे की कमी का उल्लेख भी किया था। यूपीए सरकार के रक्षामंत्री ए.के. एंटनी ने सदन के भीतर और सदन के बाहर उसी तरह खंडन किया था, जैसे अब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं। लेकिन एंटनी ने माना था कि वर्षों तक चीन सीमा पर बुनियादी ढाँचे की लापरवाहीपूर्ण अनदेखी हुई है। उन्होंने सदन में स्वीकार किया था कि यह सरकार की नीति थी कि सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचा विकसित न किया जाए, क्योंकि उसका चीन को फायदा मिल सकता है।
जहां तक सीमाओं की सुरक्षा की बात है, तो राहुल गांधी इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि मनमोहन सिंह सरकार तक कांग्रेस की सभी सरकारें चीन से लगती सीमाओं की सुरक्षा के प्रति लापरवाह रही हैं। रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने यह बात 6 सितंबर 2013 में संसद के दोनों सदनों में कही थी।
लेकिन अब यह स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है, मोदी सरकार के पिछले 9 सालों में चीन से लगती सीमाओं पर तीव्र गति के साथ बुनियादी ढांचा खड़ा किया गया है। कुछ महीने पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने छह राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में फैली 75 बीआरओ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को राष्ट्र को समर्पित किया था। इनमें 45 पुल, 27 सड़कें, दो हेलीपैड और एक कार्बन न्यूट्रल हैबिटेट शामिल थीं। इनमें से 20 परियोजनाएं जम्मू-कश्मीर संभाग में निर्मित की गई हैं। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में 18-18, उत्तराखंड में पांच और 14 अन्य सीमावर्ती राज्य सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में है।
भले ही राहुल गांधी चीन के लिए बैटिंग करते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उनकी आशंकाओं को सरकार को हल्के में नहीं लेना चाहिए कि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है, क्योंकि राहुल गांधी को चीन के बारे में ज्यादा जानकारी हो सकती है। यह खबर तो आती रही है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने के लिए चीन समय समय पर सैन्य बल का उपयोग करता रहा है। उसने विवादित क्षेत्रों में गांवों का निर्माण किया है, अरुणाचल के शहरों और क्षेत्रों के लिए मंदारिन भाषा के नामों के साथ मानचित्रों का प्रकाशन किया है।
अमेरिकी इन्टेलिजेन्स कम्युनिटी की एनुअल थ्रेट एसेसमेंट (खतरे का सालाना आकलन) की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों से भारत और चीन में तनाव और दोनों परमाणु ताकतों के बीच सशस्त्र टकराव का जोखिम बढ़ रहा है। अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन के बीच पिछली झड़पों ने साबित किया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी तनाव बहुत तेज़ गति से बढ़ सकता है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)