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Rajouri Terror Attack: कश्मीर में 'जिहाद' को ग्रैंड स्ट्रेटजी के रूप में कैसे इस्तेमाल कर रहा है पाकिस्तान?

जम्मू कश्मीर में जिन्हें हम छिटपुट आतंकी हमले समझते हैं वो पाकिस्तान की "ग्रैंड स्ट्रेटजी" का हिस्सा है। जब तक इस्लामिक स्टेट के रूप में पाकिस्तान रहेगा, यह रुकनेवाला नहीं है।

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Pakistans Grand Strategy behind Rajouri Terror Attack in jammu kashmir

Rajouri Terror Attack: रविवार को जब देश दुनिया के लोग नये साल का उत्सव मना रहे थे तब जम्मू कश्मीर में इस्लामिक आतंकियों ने भी एक हत्याकांड को अंजाम देकर अपने साल की शुरुआत की। जम्मू संभाग के राजौरी जिले के डांगरी गांव में हिन्दू परिवारों पर हमला करके 5 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जबकि 6 लोग गंभीर रूप से घायल हो गये। तरीका वही इस्तेमाल किया गया जो कश्मीर में होता आया है। धर्म पूछकर गोली मार दी।

रविवार को किये गये सामूहिक हत्याकांड के बाद सोमवार को उन्हीं रतनलाल के घर के बगल में एक आईईडी ब्लास्ट हुआ जिनके घर पर इस्लामिक आंतकवादियों ने हमला किया था। उस ब्लास्ट में दो बच्चों की मौत हो गयी। अब एक ओर राजौरी में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं तो दूसरी ओर एनआईए इन 'आतंकी वारदातों' की जांच के लिए राजौरी पहुंच गयी है।

स्वाभाविक है इसके बाद आतंकवादियों की धरपकड़, उनका एनकाउंटर या फिर ऐसी घटनाओं की जांच के बाद वही सुनी सुनाई बातें फिर सुनाई देंगी कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है। बीते तीन दशक से कश्मीर में यही सब होता आया है लेकिन अब निशाने पर जम्मू आ गया है। जम्मू में भी राजौरी में हुई आतंकी वारदात को समझना जरूरी है कि जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उनकी ग्रैण्ड स्ट्रेटजी क्या है?

जम्मू कश्मीर का राजौरी सीमावर्ती जिला है जो पाक अधिकृत कश्मीर से लगा हुआ है। यहां की जनसंख्या को देखें तो करीब 65 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है जबकि 35 प्रतिशत हिन्दू आज भी यहां रहते हैं। 2008 से अब तक एक दर्जन से अधिक आतंकी वारदातें यहां हो चुकी हैं। लेकिन ये सभी सेना और आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ हैं। पाक अधिकृत कश्मीर में प्रशिक्षित आतंकी राजौरी के जरिए भारत में प्रवेश करने की कोशिशे करते रहते हैं, ऐसे में आतंकियों और सेना के बीच मुठभेड़ भी होती रही है।

लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ कि आतंकवादियों ने यहां के नागरिकों को धर्म के आधार पर कभी इस तरह निशाना बनाया हो, जैसा डांगरी गांव में बनाया है। स्पष्ट है कि पाकिस्तान में बैठे जो रणनीतिकार इस्लामिक आतंकवाद का सहारा लेकर जम्मू कश्मीर पर कब्जा करना चाहते हैं, उन्होंने अपना फोकस कश्मीर के बाद अब जम्मू पर कर दिया है। संभवत: उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि जम्मू को हिन्दू विहीन किये बिना वो जम्मू कश्मीर पर अपना दावा मजबूत नहीं कर सकते।

इसलिए ठीक वही नीति अब जम्मू में अपनायी जा रही है जो तीन दशक पहले कश्मीर में अपनायी गयी थी। पहले वहां आतंकी हमला करो जहां हिन्दू आबादी मुस्लिमों की अपेक्षा कम है। इन हमलों से परेशान होकर वहां के हिन्दू धीरे धीरे पलायन करेंगे और इस तरह वह जिला या शहर धीरे धीरे मुस्लिम बहुल हो जाएगा। ऐसा हो जाने के बाद टू नेशन थ्योरी के अतीत में जीवित रहने वाले लोगों के लिए भविष्य में पूरे जम्मू कश्मीर पर दावा आसान हो जाएगा।

यह कोई ऐसी दबी छुपी रणनीति नहीं है जिसे हमारी सरकार या खुफिया एजंसियां नहीं जानतीं। फिर भी हमारी रणनीति जम्मू कश्मीर में हमेशा से शुतुरमुर्ग वाली रही है। हमें लगता है कि हम पाकिस्तान के भेजे इस्लामिक आतंकियों को मारकर इस दुश्चक्र को तोड़ देंगे। लेकिन बीते चालीस सालों से यह साफ दिख रहा है कि यह कभी नहीं टूटेगा। इसको तोड़ने के लिए भारत सरकार के प्रयास एक ओर तथा सीमापार बैठे लोगों की रणनीति दूसरी ओर। हम अपनी ही जमीन पर एक अंतहीन युद्ध लड़ रहे हैं और हर तरह से सिर्फ हार रहे हैं।

जबकि पाकिस्तानी रणनीतिकार इंच इंच की दर से कश्मीर में लगातार सफल हो रहे हैं। जो पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में यह आतंकी लड़ाई लड़ रहा है वह जानता हैं कि रातों रात कोई चमत्कार नहीं होगा। इसलिए 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद पाकिस्तान ने एक ग्रैण्ड स्ट्रेटजी तैयार की थी। उन्हें लगता था कि भारत ने पूर्वी बंगाल को उनसे अलग करके पांच हजार वर्गमील जमीन छीन लिया है। अब वो जम्मू कश्मीर को भारत से छीन लेंगे।

बांग्लादेश वॉर के बाद जुलाई 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुए शिमला समझौते के बाद ये माना गया था कि दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ युद्ध नहीं करेंगे। लेकिन चालाक भुट्टों ने इसे दूसरी तरह से परिभाषित किया। पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में बोलते हुए उस समय उन्होंने ऐलान किया था कि "अगर कल को कश्मीर के लोग आजादी की तहरीक शुरु करते हैं तो हम उनके साथ खड़े होंगे।"

भुट्टो जब ऐसा कह रहे थे तो वो उस जिहाद का भी संकेत कर रहे थे जिसका उभार एक दशक बाद कश्मीर में होना शुरु हुआ। इसके लिए पाकिस्तानी फौज, आईएसआई ने पाकिस्तानी सरकार के साथ मिलकर काम किया। अफगानिस्तान और कश्मीर दोनों जगहों पर जिहाद की ग्रैंड स्ट्रेटजी के लिए देओबंदी इस्लाम का इस्तेमाल किया गया। एक ओर सूफी प्रभाव वाले कश्मीर में देओबंदी इस्लाम के प्रचार को बढ़ावा दिया गया तो दूसरी ओर पाकिस्तान के ट्रेनिंग कैम्पों और देओबंदी मदरसों से आतंकी तैयार करके कश्मीर भेजे गये।

इस मिली जुली रणनीति का असर अस्सी के दशक में दिखना शुरु हुआ और नब्बे में एक झटके में कश्मीर हिन्दुओं से खाली हो गया। यह सब देखने के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो या जिया उल हक जिन्दा नहीं थे लेकिन जिया के जमाने में आईएसआई के चीफ और कश्मीर में जिहाद के मुख्य रणनीतिकार रहे हामिद गुल आईएसआई चीफ की कुर्सी पर बैठकर पूरी योजना को अंजाम दे रहे थे। हालांकि 1992 में वो रिटायर हो गये लेकिन 1993 में जब उनसे किसी ने कश्मीर नीति को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा था कि "हमें बस भारत के खिलाफ (कश्मीर में) लड़ते रहना है।"

स्वाभाविक है पाकिस्तान में भारत के खिलाफ चल रही यह लड़ाई किसी आईएसआई चीफ के बदलने, फौजी चीफ के आने जाने या सरकार बनने बिगड़ने से प्रभावित नहीं होती। इसका लक्ष्य दूरगामी है। इस दूरगामी लक्ष्य को हासिल करने के लिए 'इस्लामिक जिहाद' को एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कश्मीर में पाकिस्तान एक इस्लामिक स्टेट के रूप में वही कर रहा है जो इस्लामिक स्टेट की सुन्नत है। 'गैर मुस्लिमों के खिलाफ युद्ध लड़कर उन्हें या तो इस्लाम कबूल करवा दो या फिर वहां से भगा दो जहां वो सदियों से रहते आये हैं।'

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जम्मू कश्मीर में जिन्हें हम छिटपुट आतंकी वारदात समझते हैं वो पाकिस्तान की एक "ग्रैंड इस्लामिक स्ट्रेटजी" का हिस्सा है। जब तक पाकिस्तान रहेगा, यह कभी रुकनेवाला नहीं है। इसे रोकना है तो अपनी जमीन पर युद्ध लड़ने से आगे बढकर भारत को "कुछ और" करना होगा। यह "कुछ और" ही आतंकवाद के खिलाफ भारत की ग्रैंड स्ट्रेटजी कही जाएगी।

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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

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English summary
Pakistan's Grand Strategy behind Rajouri Terror Attack in jammu kashmir
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