देश में ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु नहीं, अपने प्रियजनों को खोने वाले लोगों की भावनाओं से खेलना उचित नहीं!
ऑक्सीजन की कमी से कोई मृत्यु नहीं का जिन्न देश में एकबार फिर बोतल से बाहर आ गया है, क्योंकि हरियाणा सरकार की तरफ से 20 अगस्त शुक्रवार को विधानसभा में जानकारी दी गई है कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी से किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है। वैसे तो किसी के जख्मों पर नमक छिड़कना कोई हमारे देश के ताकतवर सिस्टम में बैठे चंद लोगों से सीखें, देश में कोरोना की दूसरी जबरदस्त लहर के भयावह दौर में जिस समय हर तरफ मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने के लिए मारामारी मची हुई थी, लोग अपनों का अनमोल जीवन बचाने के लिए रात-दिन भूलकर लाईनों में लगकर ऑक्सीजन का इंतजाम करवाने में लगे हुए थे, लेकिन फिर भी समय पर ऑक्सीजन का इंतजाम ना होने के चलते देश के छोटे-बड़े बहुत सारे अस्पतालों में लोगों की जान बचाने के लिए हाहाकार मचा हुआ था, वह मरीजों के परिजनों को स्पष्ट जवाब दे रहे थे कि अस्पताल में ऑक्सीजन की भारी कमी है, जिसके चलते लोग अपनों को ऑक्सीजन के अभाव में असमय काल का ग्रास बनते देखने पर मजबूर थे।
हालांकि इस बेहद नाजुक हालात पर नियंत्रण करने के लिए उस वक्त देश में केंद्र व राज्यों की सरकार व सरकारी सिस्टम के शीर्ष नेतृत्व से लेकर के न्यायालय तक भी ऑक्सीजन की उपलब्धता के मामले को रोजाना देख रहा था, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बेहद अफसोस की बात यह है कि फिर भी देश में बहुत सारी जगहों पर ऑक्सीजन की भारी किल्लत की वजह से हमारा सरकारी व निजी तंत्र बहुत सारे लोगों के अनमोल जीवन को बचाने के लिए बेहद आवश्यक साँसों का इंतजाम करने में नाकाम रहा था। अब देश में जब कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप कम हुआ तो आम जनमानस को उम्मीद जागी थी कि भविष्य में हमारी सरकार व हमारा सरकारी सिस्टम इस तरह के हालात बनने से रोकने के लिए धरातल पर ठोस प्रभावी कदम उठाएगा, क्योंकि विशेषज्ञों के द्वारा लगातार देश में कोरोना की तीसरी लहर आने का अंदेशा व्यक्त किया जा रहा है, जिसके लिए समय रहते पूर्व के हर तरह के सही आकंड़ों को जानकर धरातल पर समस्या का ठोस निदान करते हुए भविष्य के लिए जल्द तैयारी करनी होगी।
इसलिए संसद के मानसून सत्र में विपक्ष सरकार से कोरोना काल को लेकर बहुत सारे सवाल पूछ रहा है, जिसमें कोरोना के मरीजों आंकड़ें छिपाने के आरोपों से लेकर के, कोरोना से मौत के सही आकड़ें छिपाने व ऑक्सीजन की कमी जैसे ज्वंलत सवाल भी शामिल हैं। लेकिन जब से राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के सांसद केसी वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार से यह सवाल पूछा है कि "क्या यह सच है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से देश में बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हुई" तब से देश के राजनेताओं, मीडिया, आम व खास जनमानस के बीच ऑक्सीजन की कमी वाला मसला एकाएक फिर जबरदस्त ढंग से चर्चाओं में आ गया है। क्योंकि इस पर केंद्र सरकार की ओर से केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉक्टर भारती प्रवीण पवार ने सदन को दिये लिखित जवाब में कहा कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, उनकी ओर से कोरोना से हुई मौत की सूचना दी जाती है, लेकिन उसमें ऑक्सीजन की कमी से किसी मौत की सूचना नहीं है। सभी को आश्चर्यचकित करने वाले इस दिलोदिमाग को झकझोर देने वाले जवाब के बाद देश में जमकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गयी है।
राज्यसभा में ऑक्सीजन पर सवाल पूछने वाले कांग्रेस पार्टी के नेता केसी वेणुगोपाल के साथ-साथ विपक्ष ने केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रवीण भारती पवार पर सदन को गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है और उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की चेतावनी दी है, वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की और कहा कि "सिर्फ़ ऑक्सीजन की ही कमी नहीं थी, संवेदनशीलता और सत्य की भारी कमी - तब भी थी, आज भी है।" लेकिन ऑक्सीजन की कमी से मौत के आकड़ों पर राहुल गांधी के साथ-साथ समुचे सत्ता पक्ष व विपक्ष को भी यह विचार करना होगा कि चाहे भाजपा, कांग्रेस या अन्य दलों के शासित राज्य हो किसी के भी आकडों में ऑक्सीजन से मौत का जिक्र नहीं है, इस मसलें पर राजनेता एक दूसरे पर दोषारोपण करके ओछी राजनीति ना करें तो देश व समाज हित में उचित होगा। वैसे भी दूसरी लहर के भयावह 43 दिन में देश के विभिन्न 110 अस्पतालों में 629 लोगों की मौतों की खबर तो मीडिया रिपोर्ट में ही आ चुकी थी। राज्य सरकारों के द्वारा दिये गये आकड़ों की वजह से उत्पन्न यह स्थिति ऑक्सीजन के अभाव में अपनों को खो देने वाले लोगों की भावनाओं से खेलने का बहुत बड़ा जघन्य अपराध है। कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता व छत्तीसगढ़ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने तो राज्य में ऑक्सीजन की कमी से मौत को सिरे से खारिज कर दिया है, उन्होंने कहा कि यह सच है कि छत्तीसगढ़ में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, छत्तीसगढ़ ऑक्सीजन सरप्लस वाला राज्य था, लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई मैनेजमेंट में दिक्कत ज़रूर आई है। लेकिन बेहद कड़वी सच्चाई यह भी है कि राज्यों में सरकार चाहें किसी भी दल की हो सभी राज्यों के यही हाल हैं किसी ने भी आकड़ेंबाजी में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है और उनके द्वारा दिये गये आकड़ों के आधार पर ही केंद्रीय मंत्री ने जवाब दिया है। हालांकि केंद्र सरकार ने माना है कि कोरोना की दूसरी लहर में अचानक ऑक्सीजन की मांग बढ़ गयी थी, पहली लहर के मुकाबले ऑक्सीजन की मांग तीन तक गुना बढ़ गई थी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना काल में मेडिकल ऑक्सीजन की पहली लहर में मांग 3095 मीट्रिक टन थी, वही यह मांग दूसरी लहर के दौरान बढ़ कर करीब 9000 मीट्रिक टन तक पहुचं गई थी।
वैसे अप्रैल व मई के उस बेहद क्रूर समय की बात करें तो पूरी दुनिया ने देश के विभिन्न राज्यों में भरे हुए ऑक्सीजन सिलेंडर पाने के लिए लग रही बहुत लंबी कतारों को देखा है, देश के विभिन्न भागों में स्थित हॉस्पिटल प्रबंधन की ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने के लिए शासन-प्रशासन से लगाई जा रही गुहारों को देखा है, सोशल मीडिया के सशक्त माध्यम पर अपनों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने के लिए गुहार लगाते देखा है, ऑक्सीजन के लिए जगह-जगह लगते हुए लंगरों को देखा है, बिना ऑक्सीजन के झटपटाते लोगों को देखा है, देश की प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टों में ऑक्सीजन कमी से अस्पतालों में हुई मौतों को सुर्खियां बनते देखा है, लेकिन राज्य सरकारों की रिपोर्ट के आकड़ें इस स्थिति को ठेंगा दिखा रहे हैं। जबकि देश का बच्चा-बच्चा भी जानता है कि उस वक्त देश में इलाज व ऑक्सीजन के लिए धरातल पर कितने चिंताजनक हालात थे।
लेकिन अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर हमारे देश में इंसान के जीवन व इंसानियत की अहमियत कब समझीं जायेगी, हर मसलें में आकड़ेंबाजी में लिप्त रहने वाले हमारे सिस्टम के द्वारा देश में आकड़ों की बाजीगरी करना कब तक जारी रहेगा, देश में कब तक सरकार में बैठे कुछ लोग अपने क्षणिक राजनैतिक लाभ हासिल करने के लिए लोगों की अनमोल जानमाल से यूं खिलवाड़ करते रहेंगे। हमें विचार करना होगा कि आखिर हमारे देश के सिस्टम में बैठे कुछ लोगों की संवेदनहीनता की भी कोई सीमा है या नहीं। क्योंकि दूसरी लहर में अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होने के लिए तड़पते लोगों को देखकर, ऑक्सीजन के लिए मारे-मारे फिरते लोगों को देखकर, दवाओं के लिए धक्के खाते लोगों को देखकर, नदियों में तैरती हुई लाशें देखकर, धधकती चिताओं का मेला देखकर भी यह लोग सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं। सोचने वाली बात यह है कि आखिर सिस्टम में बैठे कुछ लोग सरकार के सामने सत्य क्यों नहीं आने देना चाहते हैं, सत्य को स्वीकार कर भविष्य में उसके आकड़ों के आधार पर समय रहते लोगों की जान बचाने के लिए उचित तैयारी करने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं, क्या उन लोगों के लिए इंसान की अनमोल जान एक आकड़ेंबाजी मात्र है?