Nitish Kumar Politics: लोहिया और जेपी से नीतीश बाबू ने क्या सीखा?
Nitish Kumar Politics: नीतीश कुमार वक्त वक्त पर राजनीतिक पाला ही नहीं बदलते रहे हैं, बल्कि विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय भी बदलते रहे हैं। वह मौक़ा देख कर चौका मारते हैं। जब भाजपा के साथ होते हैं, तो आएएसएस के खिलाफ कुछ नहीं बोलते, आरएसएस के कई कामों की तारीफ़ भी करने लगते हैं। लेकिन जब भाजपा के साथ नहीं होते तो उन्हें संघ और भाजपा में सब बुराईयाँ नजर आने लगती हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वह भारतीय जनता पार्टी के साथ थे, तो एक न्यूज चैनल पर इंटरव्यू के दौरान उनसे पांच मिनट तक संघ से जुड़े मुद्दों पर सवाल पूछे गए। एक बार भी उन्होंने संघ की बुराई नहीं की, अलबत्ता हर सवाल पर संघ के विस्तार, संघ की संगठनात्मक क्षमता और देश के हर कोने में संघ के कार्यों की तारीफ़ के पुल बांधते रहे।
उन्होंने यह जरुर कहा था कि उन्होंने संघ, मार्क्स और समाजवाद का सारा लिटरेचर 23 साल की उम्र में पढ़ लिया था। लेकिन गांधी, जेपी और लोहिया की विचारधारा से ज्यादा प्रभावित हुए। हैरानी वाली बात यह है कि उन्होंने जिन राम मनोहर लोहिया का जिक्र किया, वह लोहिया खुद 1960 के बाद संघ की विचारधारा से प्रभावित हो गए थे, और संघ के कार्यक्रमों में भी जाने लगे थे।
जहां
तक
जेपी
का
सवाल
है
तो
इसी
इंटरव्यू
में
नीतीश
कुमार
ने
एक
घटना
की
याद
करके
बताया
कि
जेपी
ने
एक
चर्चा
के
दौरान
कहा
था
कि
संघ
के
पूरे
काम
का
सातवाँ
हिस्सा
ही
बाकी
लोगों
को
दिखता
है।
लेकिन
इस
बार
फिर
नीतीश
कुमार
पाला
बदल
चुके
हैं
तो
उन
के
विचार
भी
बदल
गए
हैं,
जिन
जेपी
ने
उन्हें
संघ
का
विहंगम
दृश्य
दिखाया
था,
उन्हीं
जेपी
की
जयंती
पर
उन्होंने
संघ
पर
तीखे
प्रहार
किए।
जेपी
जयंती
पर
आयोजित
कार्यक्रम
में
भाषण
देते
हुए
नीतीश
कुमार
ने
वहां
मौजूद
लोगों
से
पूछा
कि
क्या
आपको
मालूम
है
कि
बापू
को
किसने
मारा?
इस
पर
वहां
मौजूद
लोगों
में
से
कईयों
ने
जवाब
दिया,
'आरएसएस'।
नीतीश
कुमार
वही
तो
कहना
और
सुनना
चाहते
थे,
क्योंकि
अब
वह
कांग्रेस
का
समर्थन
पा
कर
प्रधानमंत्री
बनने
के
सपने
देख
रहे
हैं।
और
कांग्रेस
के
युवराज
अपनी
भारत
जोड़ो
यात्रा
में
संघ
विरोध
का
एजेंडा
ले
कर
चल
रहे
हैं।
कांग्रेस
को
किसी
न
किसी
तरह
प्रभावित
करना
अब
नीतीश
कुमार
की
प्राथमिकता
बन
गई
है।
राहुल
गांधी
ने
भी
हाल
ही
में
महात्मा
गांधी
की
हत्या
से
संघ
को
जोड़ने
का
बयान
दिया
था।
जेपी
की
जयंती
पर
जब
वह
संघ
पर
प्रहार
कर
रहे
थे,
तो
वह
यह
बताना
भूल
गए
कि
1974
में
जब
अब्दुल
गुफ्फूर
सरकार
के
खिलाफ
आन्दोलन
शुरू
हुआ
था
तो
जेपी
ने
संघ
के
बारे
में
क्या
कहा
था।
जेपी ने कहा था कि - "कुछ लोग आरएसएस को फासिस्ट और साम्प्रदायिक बता रहे हैं, अगर आरएसएस फासिस्ट और साम्प्रदायिक है, तो मैं भी फासिस्ट और साम्प्रदायिक हूँ।" जेपी की जयंती पर नीतीश कुमार का दूसरा उत्तेजित सवाल था कि "आजादी की लड़ाई किसने लड़ी थी? जिन्होंने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी, वही लोग आजकल उसकी बात कर रहे हैं। आजादी की लड़ाई को जब 75 साल पूरे हो गए, तो नए-नए नामकरण की बात कर रहे हैं। उनका आजादी की लड़ाई से कोई लेना देना नहीं। आजादी की लड़ाई में जो कुछ भी हुआ, बापू के नेतृत्व में हुआ। इन सभी चीजों को याद रखना होगा।"
वैसे तो संघ के संस्थापक हेडगेवार खुद आज़ादी के आन्दोलन में दो बार जेल गए थे, लेकिन अब सवाल पैदा होता है कि क्या आज़ादी का आन्दोलन सिर्फ गांधी ने लड़ा था, क्या लोकमान्य तिलक, सुभाषचंद्र बोस, चन्द्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे लाखों देशभक्तों की आज़ादी की लड़ाई में कोई भूमिका नहीं थी?
सत्ता के लिए कांग्रेस का समर्थन हासिल करने के लिए सिर्फ गांधी और कांग्रेस को आज़ादी का श्रेय देकर क्या नीतीश बाबू उन हजारों क्रांतिकारियों के बलिदानों का अपमान नहीं कर रहे, जिन्होंने आज़ादी के लिए प्राणों की आहूति दी और फांसी के फंदे को चूमा। नीतीश कुमार सिर्फ यह दावा करना चाहते थे कि आज़ादी के आन्दोलन में संघ की भूमिका नहीं थी। तो इसके लिए उन्हें सिर्फ गांधी को आज़ादी की लड़ाई का श्रेय देने की क्या जरूरत थी। गांधी की हत्या का जिक्र भी उन्होंने संघ पर प्रहार करने के लिए ही किया।
यह एक सार्वजनिक तथ्य है कि नेहरू सरकार द्वारा गांधी की हत्या में संघ की भूमिका बता कर संघ पर प्रतिबन्ध भी लगाया गया था और हत्या का मुकद्दमा भी चला था। संघ के कार्यकर्ताओं को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन अंतत: हुआ क्या? कोर्ट में गांधी की हत्या में संघ पर लगा आरोप साबित नहीं हुआ। डेढ़ साल के प्रतिबंध के बाद संघ से बैन भी हटाना पड़ा था।
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1962 के भारत चीन युद्ध में आरएसएस के स्वयं सेवकों ने सीमा पर सैनिकों को जिस तरह रसद पहुंचाई और देश भर से जिस तरह सैन्य सहायता एकत्र की थी , उससे संघ के बारे में बनाई गई धारणा टूटी थी। कांग्रेस के भीतर भी संघ को लेकर मंथन हुआ था। इसलिए जवाहर लाल नेहरू ने खुद 1963 में संघ के स्वयं सेवकों को गणतन्त्र दिवस की परेड में हिस्सा लेने के लिए बुलाया था, संघ के स्वयं सेवकों ने अपनी उसी नेकर वाली वर्दी पहन कर हिस्सा लिया था, जिस में आग लगाने की तस्वीर बना कर कांग्रेस ने कुछ दिनों पहले ट्विट किया था।
नीतीश कुमार ने राम मनोहर लोहिया की विचारधारा से प्रभावित होने की बात कही है। तो नीतीश कुमार के जन्म से पहले ही लोहिया तो खुद संघ की विचारधारा से प्रभावित हो गए थे। 1960 से समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने जनसंघ के नेता दीन दयाल उपाध्याय के साथ बातचीत का दौर शुरू किया था। दीनदयाल के माध्यम से उन्होंने संघ को पहचाना और संघ के नजदीक जाते रहे।
यह विचारधारा की निकटता ही थी कि राम मनोहर लोहिया और दीन दयाल उपाध्याय ने 1967 में कांग्रेस के विरोध में सभी राजनीतिक दलों के मिल कर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई। हालांकि जार्ज फर्नाडिस और मधु लिमए के संघ विरोध के कारण यह तो संभव नहीं हुआ, लेकिन 1967 के चुनावों के बाद 9 राज्यों में संविंद सरकारें बनी, जिनमें सोशलिस्ट पार्टियां, स्वतंत्र पार्टी, सीपीएम और जनसंघ भी शामिल थीं।
तब से समाजवादियों का जनसंघ और बाद में भाजपा के साथ धूप छाँव का खेल चलता रहा है। आपातकाल के दौरान जेलों में जनसंघी और समाजवादी फिर एक दूसरे के करीब आए। क्योंकि संघ और जनसंघ ने आपातकाल का कड़ा विरोध किया था। संघ ने आपातकाल के खिलाफ देश भर में सत्याग्रह भी किया, जिस में 45 हजार स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी। जेल में समाजवादी और संघी एक दूसरे के करीब आए।
इस तरह 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी का जन्म हुआ था, जिस में दोनों विचारधाराओं के लोग थे, लेकिन यह प्रयोग ज्यादा नहीं चला और समाजवादियों ने पूर्व जनसंघियों पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगा कर जनता सरकार और जनता पार्टी दोनों ही तोड़ दी थी।
इसके
बाद
से
कांग्रेस
और
कांग्रेस
की
तासीर
वाले
राजनीतिक
दलों
ने
संघ
के
खिलाफ
जो
अभियान
शुरू
किया,
वह
अब
तक
जारी
है।
लेकिन
आरएसएस
के
जिस
कट्टर
विरोधी
जार्ज
फर्नाडिस
ने
1967
में
जनसंघ
के
साथ
मिल
कर
चुनाव
लड़ने
का
विरोध
किया
था,
उन्हीं
जार्ज
फर्नाडिस
ने
खुद
1998
में
अटल
बिहारी
वाजपेयी
की
सरकार
बनवाने
में
महत्वपूर्ण
भूमिका
निभाई
और
उन्हीं
जार्ज
फर्नाडिस
के
साथ
शरद
यादव
और
नीतीश
कुमार
खुद
वाजपेयी
सरकार
में
मंत्री
बने।
मंत्री
और
मुख्यमंत्री
पद
पर
सत्ता
का
आनंद
लेते
हुए
उन्हें
कभी
संघ
और
भाजपा
में
कोई
दोष
नजर
नहीं
आया।
नीतीश कुमार जैसे समाजवादी सत्ता के लिए इधर उधर झूलते रहते हैं, जो कभी संघ की तारीफ़ करने लगते हैं और कभी विरोध में उतर आते हैं। अब जब वह फिर से पलटी मार चुके हैं, तो संघ का दिखावटी विरोध करने की मजबूरी है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)