2019 Loksabha Elections: यूपीए की मजबूती से एनडीए में बढ़ेगी 'बेचैनी'!
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नई दिल्ली। कहा जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। राजनीति में कब, क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। अभी कुछ दिन पहले तक केन्द्र की एनडीए सरकार में बैठे रालोसपा नेता उपेन्द्र कुशवाहा अब विपक्षी खेमा यूपीए के हिस्सा बन गए हैं। अब वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ कर रहे हैं। इनके अलावा केन्द्र में मंत्री और लोजपा नेता रामविलास पासवान भी सरकार को तेवर दिखाने लगे हैं। पासवान को राजनीति का मौसम विज्ञानी कहा जाता है। पासवान को यह पहले ही अंदाजा लग जाता है कि केन्द्र में अगली सरकार किसकी बनने वाली है, उसी हिसाब से उनका आचरण बनने-बिगड़ने लगता है। खैर, केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए में बेचैनी बढ़ गई है। इसकी वजह स्पष्ट है कि उसके घटक एक-एक कर भाजपा नीत एनडीए का साथ छोड़कर यूपीए का हिस्सा बनते जा रहे हैं। चाहे वह चंद्रबाबू नायडू हों या उपेन्द्र कुशवाहा। बेशक, यूपीए मजबूत हो रहा है। स्वाभाविक है, यूपीए की मजबूती में ही एनडीए की बेचैनी छिपी है। दिलचस्प यह है कि जो घटक एनडीए का साथ छोड़ रहे हैं वो भाजपा के आला नेताओं पर गजब तरह के भावनात्मक आरोप लगा रहे हैं। निश्चित रूप से इस तरह के आरोप आगामी चुनावों में भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित होंगे। उदाहरण के तौर पर उपेन्द्र कुशवाहा को ही लीजिए। उन्होंने कहा कि एनडीए में उन्हें सम्मान नहीं मिल रहा था। वो खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे। ताजा मामला उपेन्द्र कुशवाहा का ही है, इसलिए पहले चर्चा इसी पर होनी चाहिए।
उपेन्द्र कुशवाहा अब विपक्षी खेमे यूपीए के हिस्सा बन गए हैं
बिहार में उपेन्द्र कुशवाहा का असर ठीक-ठाक माना जाता है। अब वे यूपीए के घटक बन गए हैं। यह एनडीए के लिए किसी झटके से कम नहीं है। जो वोट एनडीए के पक्ष में थे यदि वो प्रभावित होते हैं तो जाहिर है यह बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए नुकसानदेह होगा। कुशवाहा ने कहा कि बीजेपी-जेडीयू के साथ उनका अपमान हो रहा था। कुशवाहा के दबाव वाले बयान और तेवर, दोनों की बीजेपी ने अनदेखी की। 'जाना हो तो जाइये' वाला रुख अपनाया। इसमें बीजेपी से ज़्यादा जेडीयू और खास कर नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए से अलग होने देने में बड़ी भूमिका निभाई। ये भी सोचने वाली बात है कि उनके पार्टी के एमएलए, एमएलसी गठबंधन में नहीं गए हैं। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से महागठबंधन में कांग्रेस का वज़न बढ़ा है, यह दिखने लगा है। बिहार में भी पार्टी स्तर पर और राजनीतिक हलके में सभी यह महसूस कर रहे हैं। लेकिन बिहार की बात करें तो कुछ ही साल पहले यहां मरणासन स्थिति में पहुंची कांग्रेस को महागठबंधन ने फिर से उठ खड़े होने और आगे बढ़ने जैसी ताकत दी थी और यह ताक़त फिर से उसे मिली है। जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा बहुत बड़ी ताक़त लेकर भले ही नहीं जुड़े हैं लेकिन जुड़ कर एक हुए हैं तो एक चुनौती के रूप में यह गठबंधन आएगा। यदि रामविलास पासवान की लोजपा नाराज़गी का संकेत देने लगे हैं तो यह बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी ज़रूर है। जिस रामविलास पासवान के मुखर दबाव ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को केंद्र सरकार से पलटवाया, वहीं अब युवाओं और किसान से जुड़े मुद्दे को उठा कर मोदी सरकार की ही मुश्किलें बढ़ाने लगे हैं।
पासवान की पार्टी LJP ने भी दिखाए तेवर
बीते दिनों एनडीए गठबंधन को नाजुक मोड़ पर बताने वाले लोक जनशक्ति पार्टी नेता (एलजेपी) चिराग पासवान ने आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ कर बिहार में राजनीतिक हलचल को हवा दे दी है। पासवान के इस बयान के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। पासवान ने राहुल की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि उनके अंदर सकारात्मक बदलाव आया है। उन्होंने किसानों और बेरोजगारी के मुद्दे को बढ़िया से उठाया है। पासवान ने कहा कि कांग्रेस पार्टी लंबे समय बाद जीती है। अगर आप किसी की आलोचना करते हैं तो आपको उनके अच्छे प्रदर्शन पर उनकी तारीफ भी करनी चाहिए। चिराग पासवान ने कहा कि राहुल गांधी ने मुद्दों को सही ढंग से उठाया। जिस तरह उन्होंने बेरोजगारी और किसानों के मुद्दों को जनता के सामने उठाया, वह अच्छा था। जबकि धर्म और मंदिर की बात करते रहे। मैं सरकार से निवेदन करता हूं कि हम लोगों को फिर से अपना फोकस पूरी तरह विकास पर करना चाहिए। बता दें कि इससे पहले चिराग पासवान ने राज्य में सीटों के बंटवारे को लेकर कोई भी फैसला न होने पर नाराजगी जताई थी। चिराग पासवान के इन ट्वीट से पता चलता है कि राज्य में गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। आरएलएसपी का एनडीए से नाता तोड़ने के बाद चिराग के इस बयान के भी राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। चिराग ने एक ट्वीट में लिखा था कि टीडीपी और आरएलएसपी के एनडीए गठबंधन से जाने के बाद यह गठबंधन नाजुक मोड़ से गुजर रहा है। ऐसे समय में बीजेपी गठबंधन में फिलहाल बचे हुए साथियों की चिंताओं को समय रहते सम्मानपूर्वक तरीके से दूर करें। इसके बाद एक और ट्वीट करते हुए चिराग ने नुकसान के संकेत दिए थे। चिराग के संकेत बेहद गंभीर व भावपूर्ण हैं। इसे एनडीए के कर्ता-धर्ता कितना समझते हैं, यह उनके ऊपर निर्भर करता है।
तीन राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद क्या होगी भाजपा की रणनीति
तीन राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद भाजपा के सामने 2019 का रण मुश्किल हो गया है। अपनी टीम को एकजुट रखकर ही वह सत्ता वापसी का सपना पूरा कर सकेगी। लेकिन हालिया समय में उसने कई अहम साथी खो दिए हैं। उसपर से उत्तर प्रदेश के हालात भी दिक्कत पैदा कर रहे हैं। दिल्ली की सत्ता का दरवाजा उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, लेकिन यहां सपा-बसपा का गठजोड़ बनता दिख रहा है। ऐसा हुआ तो 30 सीटें आना भी मुश्किल हो जाएगा। दिल्ली में दोबारा कैसे कमल खिल पाएगा, ये भाजपा के लिए सबसे बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है। लोकसभा चुनाव में अभी थोड़ा वक्त है लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारी शुरू हो चुकी है। क्षेत्रीय दलों में खास तौर से अकुलाहट है और वे अपनी पोजिशनिंग में जुट गए हैं। देश के दोनों प्रमुख सियासी गठबंधनों में साफ दिख रही तनातनी का मुख्य कारण यही है। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में उथल-पुथल ज्यादा है। शिवसेना तो वर्षों से अलग राग अलापती आ रही है। बीते दिनों मुंबई में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का बहिष्कार कर उसने एक बार फिर अपनी नाराजगी दिखाई। बिहार में सीट बंटवारे को लेकर असल पेच फंसा हुआ है। बीजेपी अपनी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी जेडीयू को नाराज नहीं करना चाहती लेकिन इस चक्कर में छोटे पार्टनर परेशान हो गए हैं। हाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के बाद वे मुखर हुए हैं और कड़ी सौदेबाजी करना चाहते हैं। लेकिन रही बात विपक्ष की तो कांग्रेस के तीन राज्यों में सरकार बना लेने के बाद भी सभी विपक्षी दल उसका नेतृत्व स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
यूपी में भी महागठबंधन की तैयारी तेज
उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने की तैयारी चल रही है। यहां भी सपा-बसपा-कांग्रेस-रालोद के गठबंधन की चर्चाएं हैं। हालांकि अभी तक इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो सका है, लेकिन कहा जा रहा है कि देर-सबेर कोई न कोई ठोस फैसला हो ही जाएगा। बहरहाल, यह कह सकते हैं बिहार, यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में महाराष्ट्र में भाजपा को घेरने की यूपीए द्वारा पूरी तैयारी की जा रही है। अब देखना यह है कि यूपीए अपने मंसूबे में कितना कामयाब हो पाती है। पर इतना जरूर है कि जो भी घटक एनडीए का साथ छोड़कर जा रहे हैं वो भाजपा की मुश्किलें बढ़ाएंगे ही।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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