क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

साधारण से दिखने वाले असाधारण भारतीय जनमानस का लोकमंथन

Google Oneindia News

उस दिन (21 सितंबर को) मौसम में उमस थी। यों भी गुवाहाटी में सूरज जल्दी निकल आता है सो सबेरे दस बजे भी ठीकठाक गर्मी थी। पसीने के बीच श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के विशेष रूप से बनाये भव्य पंडाल में 2500 से ज़्यादा अभ्यागत उत्सुकता से उपराष्ट्रपति के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उपराष्ट्रपति बनने के बाद जगदीप धनकड़ की दिल्ली से बाहर यह पहली यात्रा जो थी।

Lokmanthan unites diverse Indian cultural traditions

अवसर था लोकमंथन के उद्घाटन का। कलात्मक रूप से सजाये बड़े मंच पर साधारण सफ़ेद सोफों के बीच उपराष्ट्रपति के प्रोटोकॉल के अनुरूप सिंहासन रूपी ऊँची कुर्सी लगाई गयी थी। असम के लोकवाद्यों की थाप के बीच असम के राज्यपाल जगदीश मुखी, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और लोकमंथन के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार सम्मान के साथ उन्हें मंच पर ला रहे थे।

पर ये क्या हुआ? अचानक सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ये सब मंच के कोने में रूक क्यों गए? वहाँ होती खुसर पुसर नीचे से साफ़ दिख रही थी। अचानक हमने देखा कि उपराष्ट्रपति ने वह बड़ी कुर्सी हटवा दी। उसकी जगह अन्य सोफों के बराबर का सोफा मंगवाया गया। उपराष्ट्रपति धनकड़ आकर सबके बराबर उस आसन पर ही बैठे। मेरे साथ बैठे हरियाणा उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रो बृजकिशोर किशोर कुठियाला ने कहा कि ये तो देश की सत्ता का ही 'लोकीकरण' हो गया। कला, शिल्प और संस्कृति क्षेत्र के कर्मशीलों और विचारशीलों के राष्ट्रीय जमावड़े लोकमंथन का इससे बेहतर आगाज़ और क्या हो सकता था?

आप चाहे तो इसे इसे नव निर्वाचित उपराष्ट्रपति के व्यक्तित्व की विलक्षणता कह सकते हैं या इसे वहां के कलामय माहौल का असर। मूल बात तो ये है कि हज़ारों सालों से अक्षुण्ण गति से अविरल बह रही भारतीय संस्कृति की धारा कभी भी सत्ता केंद्रित या राजोन्मुख नहीं रही। उसकी ताकत है साधारण सा दिखने वाला असाधारण भारतीय जनमानस।

जिन समाजों में संस्कृति सत्ता का मुँह देखती है उसका प्रवाह सत्ता के खत्म होने के साथ रुक जाता है। जब संस्कृति समाप्त हो जाती है तो वो समाज भी जिन्दा नहीं रहता। यही कारण है कि भारतीय या हिन्दू संस्कृति इस पृथ्वी पर जीवित और आज भी चल रही एकमात्र सभ्यता है।

यह भी पढ़ें: जब बोले उपराष्ट्रपति धनखड़ कि आज धन्य हो गया, कभी नहीं भूलूंगा, नतमस्तक हूं, तो फिर...

गुवाहाटी में पिछले हफ्ते आयोजित तीसरा लोकमंथन इस जीवन्तमान लोकाचार का एक राष्ट्रीय उत्सव ही था। इसके समापन समारोह के मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने उस दिन ठीक ही कहा कि भारतीयता के आदर्श- ऋषि-मुनि रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिल्डिंगें खत्म हो जाएंगी, लेकिन रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ खत्म नहीं होंगे।

उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्द्धन के लिए जानी जाती है। ज्ञान की प्राप्ति करना और उसे दूसरे के साथ साझा करना ही तप है। इसलिए लोकमंथन में लोक संस्कृति के वाहकों का प्रदर्शन तपस्या से कम नहीं था।

भारत के खानपान, वेशभूषा, नाटक, संगीत और नृत्य आदि कलाओं का इंद्रधनुष अपनी पूरी सुंदरता के साथ लोकमंथन में दिखाई दिया। रंगमंच पर कभी कर्नाटक के यक्षगान की प्रस्तुति हुई तो कभी अरुणाचल प्रदेश के रिखामपद, असम के बिहू नृत्य एवं बरदैसिखला, मणिपुर के पुंग एवं ढोल-ढोलक चोलोम एवं थांग टा, मेघालय के वांगाला, मिजोरम के चेराव, नगालैंड के थुवु शेले फेटा (चाखेसांग चिकेन डांस), सिक्किम के सिंघी छाम, त्रिपुरा के हो जिगरी, महाराष्ट्र के शक्ति आराधना तथा राजस्थान के लोकनृत्य का आयोजन हुआ।

अन्य आयोजनों के साथ ही तमिलनाडु, केरल, मणिपुर और राजस्थान की प्रचलित वैवाहिक रीतियों, रिवाजों और परम्पराओं का प्रदर्शन भी हुआ। यहाँ सिर्फ ये प्रदर्शन ही नहीं हुए, बल्कि इसके साथ ही कला, संस्कृति, सभ्यता, लोकाचार और परम्पराओं के अनेकानेक विषयों पर गंभीर चर्चा और विमर्श भी अनेक विद्वानों ने किया।

देश के दैनन्दिन जीवन में मौजूद इस वैविध्य को कुछ लोग भारत को बाँटने के मकसद से अलगाव के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते आये हैं। यह वास्तव में एक गहरा षड्यंत्र ही है। कन्याकुमारी से आसेतु हिमाचल और कामरूप से गुजरात तक फैले इस एकरूप समाज के वैविध्य को देश का जनमानस स्वीकारता ही नहीं बल्कि उसका अभिनन्दन करता है। वह बगिया में खिले रंगबिरंगे फूलों की तरह इनका उत्सव मनाता है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले ने अपने भाषण में इस पर कहा कि सभ्यता और संस्कृति लोक के कारण ही जीवित रहीं है। और, लोक परंपरा में विविधता कभी आड़े नहीं आती। बल्कि यह हमारी अंतर्निहित एकता को और मज़बूत बनाती है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस लोकाचरण को भारतीय विरासत की लोकतान्त्रिक आस्था के साथ जोड़कर देखा। उन्होंने कहा कि भारत सिर्फ एक संवैधानिक लोकतंत्र ही नहीं है। बल्कि वह 'सिविलाईजेशनल डेमोक्रेसी' यानि विरासत और आस्था से लोकतान्त्रिक है। उन्होंने कहा की 'संविधान हमारे लिए पूज्य है तो, विरासत हमारे लिए परमपूज्य है।'

लोकमंथन का पहला संस्करण भोपाल में आयोजित हुआ था तो दूसरा रांची में हुआ था। इसका आयोजन अन्य संस्थाओं के साथ मिल कर 'प्रज्ञा प्रवाह' करती है। प्रज्ञा प्रवाह 'राष्ट्र प्रथम' संकल्प के साथ जुड़े चिंतकों, शिक्षाविदों, कलाकारों, मीडियाकर्मियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का समूह है।

गुवाहाटी के लोकमंथन के विमर्श में देशभर के 25 राज्यों से कोई 1500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। चार दिन चले लोक कलाओं के प्रदर्शनों को देखने लगभग एक लाख स्थानीय लोग भी आये।

यूं तो देश के अनेक ख्यातिप्राप्त विद्वानों, कलाकारों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति लोकमंथन में रही। पर नगालैंड के उच्च शिक्षा एवं जनजाति मामलों के मंत्री श्री तेमजेन इम्ना ने जो कहा वह भीतर तक छू गया। वे उत्तरपूर्व के सांस्कृतिक हालात पर बेबाक होकर बोले। उन्होंने कहा कि नगालैंड में ही 17 जनजातियां हैं लेकिन उनकी भाषा की कोई लिपि नहीं है।

उन्होंने कहा कि पश्चिमीकरण ने नगा समाज को तोड़ कर रख दिया है और उसकी ऐतिहासिक शक्ति खो चुकी है। उन्होंने कहा कि हम अपने अस्तित्व को पूरी तरह से नहीं खोज पाए हैं। अपने मूल अस्तित्व को खोजे बिना कुछ कर पाना मुश्किल है।

वैसे लोकमंथन समझने नहीं, अनुभव का विषय है। इस दौरान सबका कोई न कोई अनूठा अनुभव रहा। इन अनुभवों में से एक देखिए। अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कर्नाटक से प्रख्यात माता मन्जम्मा जोगाथी और उनकी टोली गुवाहाटी आयी थी। पद्मश्री मन्जम्मा एक किन्नर हैं और कर्नाटक जनपद अकादमी की पहली किन्नर अध्यक्ष हैं। उनको आवागमन के लिए एक कार दी गयी थी जिसका चालक स्थानीय असमिया व्यक्ति था।

कार्यक्रम के अंतिम दिन उनका चालक अपने परिवार को उनसे मिलाने लाया। जब उसकी पत्नी ने मन्जम्मा के चरण स्पर्श कर साड़ी भेंट दी तो माता मन्जम्मा की आँखों में आंसू आ गए। उन्हें कल्पना नहीं थी कि उत्तरपूर्व भारत में उनकी भाषा तक नहीं समझने वाला एक वाहन चालक उनसे यों दिल से जुड़ जायेगा। यही जुडाव लोकमंथन की थाती है। असल भारत की विरासत भी यही है।

यह भी पढ़ें: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से जुड़ी 4 बड़ी बातें

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)

Comments
English summary
Lokmanthan unites diverse Indian cultural traditions
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X